Sunday 30 April 2017

तुम्हारा एहसास

जाने क्यूँ
अवश हुआ
जाता है मन
खींचा जा रहा
तुम्हारी ओर
बिन डोर
तितलियों के
रंगीन पंखों
पर उड़ता
विस्तृत आसमां
पर तुम्हें छूकर
आयी हवाओं के
संग बहा जा रहा है
कस्तूरी सा व्याकुल
मन अपने में गुम
मदमस्त
पीकर मधु रस
तुम्हारे एहसास का,
बूँद बूँद पिघल रहा है
अन्तर्मन के शून्य में,
अमृत सरित तुम
बरसों से सूखे पडे़
वीरानियों में सोये
शिलाखंड को
तृप्त कर रहे हो
और शिलाखंड
अमृत सरित के
कोमल स्पर्श से
घुल रहा है
अवश होकर
धारा के प्रवाह में
विलीन हर क्षण
हर उस पल को
समाहित करता
जिसमें तुम्हारा
संदली एहसास
समाया हुआ है।

    #श्वेता🍁


Thursday 27 April 2017

तुम

ज़िदगी के शोर में खामोश सी तन्हाई तुम
चिलचिलाती धूप में मस्ती भरी पुरवाई तुम

भोर की पहली याद मेरी दुपहरी की प्यास
स्वप्निल शाम की नशीली अंगड़ाई तुम

अनसुना सा प्रेमगीत जेहन में बजती रागिनी
लफ्ज़ महके से तेरे मदभरी शहनाई तुम

हो रहा कुछ तो असर यूँ नहीं बहके ये मन
मुस्कुराए जा रहे मेरे लब की रानाई तुम

शांत ऊपर से लहर भीतर अनगिनत है भँवर
थाह न मिल पाये उस झील की गहराई तुम

        #श्वेता🍁

Wednesday 26 April 2017

कुछ पल तुम्हारे साथ

मीलों तक फैले निर्जन वन में
पलाश के गंधहीन फूल
मन के आँगन में सजाये,
भरती आँचल में हरसिंगार,
अपने साँसों की बातें सुनती
धूप को सुखाती द्वार पर,
निर्विकार देखती उड़ते परिंदें को
जो बादल से छाँह लिये कुछ तिनके
दे जाते गूँथने को रिश्तों की नीड़
आसमाँ के निर्जीव टुकड़े से
तारे तोड़कर साँझ को मुंडेर पर रखती
बिना किसी आहट का इंतज़ार किये,
सूखी नदी के तट पर प्यासी शिला
बदलाव की आशा किये बिना,
पड़ी दिन काटती रही
इन ढेड़े-मेढ़े राह के एक मोड़ पर
निर्मल दरिया ने पुकारा
कल-कल बहता मन मोहता
अपनी चंचल लहरों के आगोश में
लेने को आतुर, सम्मोहित करता
अपनी मीठी गुनगुनाहट से
खींच रहा अपनी ठंडी शीतल लहरों में
कहता है बह चल संग मेरे
पी ले मेरा मदिर जल
भूल जा थकान सारी
खो जा मुझमें तू अमृत हो जा
पर तट पर खड़ी सोचती
शायद कोई मृग मरीचिका
तपती मरूभूमि का भ्रम
डरती है छूने से जल को
कही ख़्वाब टूट न जाये
वो खुश है उस दरिया को
महसूस करके,ठंडे झकोरे
जो उस पानी को छूकर आ रहे
उसकी संदीली खुशबू में गुम
उस पल को जी रही है
भर रही है कुछ ताज़े गुलाब
अपने आँगन की क्यारी में
आँचल में समेटती महकती यादें
पलकों में चुनती कुछ
अनदेखे ख़्वाब
समा लेना चाहती वो
जीवन की निर्झरी का संगीत
मौन धड़कनों के तार पर
टाँक लेना चाहती है
हृदय के साथ ,ताकि
अंतिम श्वास तक महसूस कर पाये
इस पल के संजीवन को

         #श्वेता🍁


Tuesday 25 April 2017

कहाँ छुपा है चाँद

साँझ से देहरी पर बैठी
रस्ता देखे चाँद का
एक एक कर तारे आये
न दीखे क्यूँ चंदा जाने
क्या अटका है पर्वत पीछे
या लटका पीपल नीचे
बादल के परदे से न झाँके
किससे पूछूँ पता मैं
मेरे सलोने चाँद का

अबंर मौन बतलाता नहीं
लेकर संदेशा भी आता नहीं
कौन देश तेरा ठौर न जानूँ
मैं तो बस तुझे दिल से मानूँ
क्यों रूठा तू बता न हमसे
बेकल मन बेचैन नयन है
भर भर आये अब पलकें भी
बोझिल मन उदास हो ढूँढें
दीखे न निशां मेरे चाँद का

          #श्वेता🍁

श्वेत श्याम मनोभाव

आत्म मंथन के क्षण में
विचारों के विशाल वन में,
दो भाग में बँटा मन पाया
चाहकर भी जुट नहीं पाया,
एक धरा से  पड़ा मिला
दूजा आसमां में उड़ा मिला,
एक काजल सा तम मन
दूजा जलता कपूर सम मन,
कभी भाव धूल में पड़े मिले
कभी राह में फूल भरे मिले,
गर्व का आईना चूर हो गया
जब मेरा मैं मुझसे दूर हो गया,
जीवन के चलचित्र के धागे
पलकों पे हर दृश्य है भागे,
काले उजले कर्म के दोधारों में
हम सब नित नये नये किरदारों में,
अदृश्य सूत्रधार छिपा है गगन में
बदल रहा पट क्षण प्रतिक्षण मे,
जीवन भर का सार ये जाना है
बँटे मन का भार अब पहचाना है,
दो रंगों के बिसात पर खेल रचे है
मन के भाव ही मोहरे बन ते है
वक्त के पासे की मरजी से चलकर
जीवन का अंत पाना है।

         #श्वेता🍁

Monday 24 April 2017

तुम ही तुम हो

मुस्कुराते हुये ख्वाब है आँखों में
महकते हुये गुलाब है आँखों में

बूँद बूँद उतर रहा है मन आँगन
एक कतरा माहताब  है  आँखों में

उनकी बातें,उनका ही ख्याल बस
रोमानियत भरी किताब है आँखों में

जिसे पीकर भी समन्दर प्यासा है
छलकता दरिया ए आब है आँखों में

लम्हा लम्हा बढ़ती बेताबी दिल की
खुमारियों का सैलाब है आँखों में

लफ्जों की सीढ़ी से दिल में दाखिल
अनकहे सवालों के जवाब है आँखों में

        #श्वेता🍁

गुम होता बचपन

ज़िदगी की शोर में
गुम मासूमियत
बहुत ढ़ूँढ़ा पर
गलियों, मैदानों में
नज़र नहीं आयी,
अल्हड़ अदाएँ,
खिलखिलाती हंसी
जाने किस मोड़ पे
हाथ छोड़ गयी,
शरारतें वो बदमाशियाँ
जाने कहाँ मुँह मोड़ गयी,
सतरंगी ख्वाब आँखों के,
आईने की परछाईयाँ,
अज़नबी सी हो गयी,
जो खुशबू बिखेरते थे,
उड़ते तितलियों के परों पे,
सारा जहां पा जाते थे,
नन्हें नन्हें सपने,
जो रोते रोते मुस्कुराते थे,
बंद कमरों के ऊँची
चारदीवारी में कैद,
हसरतों और आशाओं का
बोझा लादे हुए,
बस भागे जा रहे है,
अंधाधुंध, सरपट
ज़िदगी की दौड़ में
शामिल होती मासूमियत,
सबको आसमां छूने की
जल्दबाजी है।

          #श्वेता🍁

Sunday 23 April 2017

जीवन व्यर्थ नहीं हो सकता

हर रात नींद की क्यारी में
बोते है चंद बीज ख्वाब के
कुछ फूल बनकर मुस्कुराते है
कुछ दफ्न होकर रह जाते है
बनते बिगड़ते ज़िदगी के राह में
चंद सपनों के टूट जाने से
जीवन व्यर्थ नहीं हो सकता।

आस निराश के पंखो़ में उड़कर
पंछी ढ़ूढ़े बसेरा पेड़़ो से जुड़कर
कभी मिलती है छाँव सुखों की
धूप तेज लगती है दुखो की
हर दिन साँझ के रूठ जाने से
भोर का सूरज व्यर्थ नहीं हो सकता।

रोना धोना, रूठना मनाना
लड़ना झगड़ना बचपन सा जीवन
जिद में अड़ा कभी उदास खड़ा
खोने का डर पाने की हसरत
कभी बेवजह ही मुस्कुराता चला
मासूम ख्वाहिशों को हाथों मे लिये
चंद खिलौने के फूट जाने से
बचपन तो व्यर्थ नहीं हो सकता।

कुछ भी व्यर्थ नहीं जीवन में
हर बात में अर्थ को पा लो
चंद साँसों की मोहलत मिली है,
चाहो तो हर खुशी तुम पा लो
आँखों पे उम्मीद के दीये जलाकर
हर तम पे विजय तुम पा लो
कुछ गम के मिल जाने से
अर्थ जीवन का व्यर्थ नहीं हो सकता।

       #श्वेता🍁

Saturday 22 April 2017

धरती बचाओ

जनम मरण का खेल तमाशा
सुख दुख विश्वास अविश्वास
प्रेम क्रोध सबका संगम है
कर्मभूमि सबके जीवन की
धरती माँ का यही अँचल है
नहीं किसी से करती  भेद
सबको देती एकसमान भेंट
रंग बिरंगे मौसम कण कण में
पल पल करवट लेते क्षण में
कहीं हरीतिमा कही रेतीला
कही पर्वत पर बर्फ का टीला
ऊँची घाटी विस्तृत बगान
सब सुंदर पृथ्वी की जान
कल कल बहती जलधारा है
विशाल समन्दर बड़ा खारा है
बर्फ से ढका हुआ ध्रुव सारा है
कहीं उगलता आग का गुब्बारा है
चहकते पंछी के कलरव नभ में
असंख्य विचित्र जीव है जग में
अद्वितीय अनुपम रचना पर मोहित
प्रभु के हृदय पर धरा सुशोभित

पर मौन धरा का रूदन अब
तुमको ही समझना होगा
जितना दुलार मिला है धरती से
उतना ही तुम्हें वापस देना होगा
हे मानव तुम्हें ही अपने हाथों से
धरा के विनाश को रोकना होगा
वृक्षों को नष्ट कर कंकरीट न बोओ
वरना भविष्य में तुमको रोना होगा
अमृत है जल जीवन के लिए
न बहाया करो कभी व्यर्थ में
फिर बूँद बूँद को तरसना होगा
सबसे पहला घर धरा है तुम्हारा
ये विनष्ट हुआ तो जीवन क्या होगा
अपने घर की हर संपदा को तुमको
अपने प्रयास से सहेजना होगा
सुनो विनाश के बढ़ते कदमों की चाप
जो निगल रहा है सबकुछ चुपचाप
अब भी वक्त है सचेत हो जाओ
धरा की तुम छतरी बन जाओ

धरोहर समेटो ।धरती बचाओ।जीवन बचाओ।

       #श्वेता🍁

           

Thursday 20 April 2017

तुम साथ हो

मौन हृदय के स्पंदन के
सुगंध में खोये
जग के कोलाहल से परे
एक अनछुआ सा एहसास
सम्मोहित करता है
एक अनजानी कशिश
खींचती है अपनी ओर
एकान्त को भर देती है
महकती रोशनी से
और मैं विलीन हो जाती हूँ
शून्य में कहीं जहाँ
भावनाओं मे बहते
संवेदनाओं की मीठी सी
निर्झरी मन को तृप्त करने का
असफल प्रयास करती है,
उस प्रवाह में डूबती उतरती
भूलकर सबकुछ
तुम्हें महसूस करती हूँ
तब तुम पास हो कि दूर
फर्क नहीं पड़ता कोई
बस तुम साथ होते हो,
धड़कते दिल की तरह,
उस श्वास की तरह
जो अदृश्य होकर भी
जीवन का एहसास है।

            #श्वेता🍁

खुशबू आपकी

सुर्ख गुलाब की खुशबुएँ उतरने लगी
रूठी ज़िदगी फिर से अब सँवरने लगी

बाग में तितलियाँ फूलों को चूमे है जब
लेकर अँगड़ाईयाँ हर कली बिखरने लगी

एक टुकड़ा धूप जबसे आँगन मेरे उतरा
पलकों की नमी होंठों पे सिहरने लगी

दूर जाकर भी इन आँखों मे मुस्कुराते हो
दो पल के साथ को हसरतें तड़पने लगी

तुम मेरी ज़िदगी का हंसी किस्सा बन गये
एहसास को छूकर दीवानगी गुजरने लगी

       #श्वेता🍁


Wednesday 19 April 2017

राधा की पीड़ा

न भाये कछु राग रंग,
न जिया लगे कछु काज सखि।

मोती टपके अँचरा भीगे,
बिन मौसम बरसात सखि।

सूना पनघट जमना चुप सी,
गोकुल की गली उदास सखि।

दिवस जलावै साँझ रूलावै,
बड़ी मुश्किल में कटे रात सखि।

बैरन निदियां भयी नयन से,
भरी भरी आये ये आँख सखि।

निर्मोही को संदेशा दे दो,
लगी दरश की प्यास सखि।

दिन दिन भर मैं बाट निहारूँ,
कब आयगे मोरे श्याम सखि।

   #श्वेता🍁


एक ख्याल

जेहन की पगडंडियों पर चलकर
ए ख्याल,मन के कोरो को छूता है।
बरसों से जमे हिमखंड
शब्दों की आँच में पिघलकर,
हृदय की सूखी नदी की जलधारा बन
किनारों पर फैलै बंजर धरा पर
बूँद बूँद बिखरकर नवप्राण से भर देती है,
फिर प्रस्फुटित होते है नन्हें नन्हें,
कोमल भाव में लिपटे पौधे,
और खिल जाते है नाजुक
डालियों पर महकते
मुस्कुराहटों के फूल,
सुवासित करते तन मन को।
ख्वाहिशों की तितलियाँ
जो उड़कर छेड़ती है मन के तारों को
और गीत के सुंदर बोल
भर देते है जीवन रागिनी
और फिर से जी उठती है,
प्रस्तर प्रतिमा की
स्पंदनविहीन धड़कनें।
एक ख्याल, जो बदल देता है
जीवन में खुशियों का मायना।

            #श्वेता🍁

Tuesday 18 April 2017

पागल है दिल

पागल है दिल संग यादों के निकल पड़ता है,
चाँद का चेहरा देख लूँ नीदों में खलल पड़ता है।

बिखरी रहती थी खुशबुएँ कभी हसीन रास्तों पर,
उन वीरान राह में खंडहर सा कोई महल पड़ता है।

तेरे दूर होने से उदास हो जाती है धड़कन बहुत,
नाम तेरा सुनते ही दिल सीने में उछल पड़ता है।

तारों को मुट्ठियों में भरकर बैठ जाते है मुंडेरों पे,
चाँदनी की झील में तेरे नज़रों का कँवल पड़ता है।

याद तेरी जब तन्हाई में आगोश से लिपटती है,
तड़पकर दर्द दिल का आँखों से उबल पड़ता है।

            #श्वेता🍁

सोच के पाखी

अन्तर्मन के आसमान में
रंग बिरंगे पंख लगाकर
उड़ते फिरते सोच के पाखी
अनवरत अविराम निरंतर
मन में मन से बातें करते
मन के सूनेपन को भरते
शब्दों से परे सोच के पाखी

कभी नील गगन में उड़ जाते
सागर की लहरों में बलखाते
छूकर सूरज की किरणों को
बादल में रोज नहाकर कर आते
बारिश में भींगते सोच के पाती

चंदा के आँगन में उतरकर
सितारों की ओढ़नी डालकर
जुगनू को बनाकर दीपक
परियों के देश का रस्ता पूछे
ख्वाब में खोये सोच के पाखी

नीम से कड़वी नश्तर सी चुभती
मीठी तीखी शमशीर सी पड़ती
कभी टूटे टुकडों से विकल होते
खुद ही समेट कर सजल होते
जीना सिखाये सोच के पाखी

जाने अनजाने चेहरों को गुनके
जाल रेशमी बातों का बुनके
तप्त हृदय के सूने तट पर मौन
सतरंगी तितली बन अधरों को छू
कुछ बूँदे रस अमृत की दे जाते
खुशबू से भर जाते सोच के पाखी

     #श्वेता🍁

जीवन एक खिलौना है।

माटी के कठपुतले हम सब,जीवन एक खिलौना है।

हँसकर जी ललचाए, कभी यह काँटो भरा बिछौना है।

सोच के डोर के उलझे धागे सोचों का ही सब रोना है।

सुख दुख के पहिये पे घूमे,कभी माटी तो कभी सोना है।

मिल जाये इंद्रासन फिर भी,असंतोष में पलके भिगोना है।

मानुष फितरत कभी न बदले,बस खोने का ही रोना है।

सिर पटको या तन को धुन लो,होगा वही जो होना है।

चलता साँसों का ताना बाना, तब तक ये खेल तो होना है।

             #श्वेता🍁

Monday 17 April 2017

थोड़ा.सा पा लूँ तुमको

अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको

तू चाँद मखमली तन्हा अंधेरी रातों का
चाँदनी सा ओढ़ खुद पे बिछा लूँ तुमको

खो जाते हो अक्सर जम़ाने की भीड़ में
आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको

मेरी नज़्म के हर लफ्ज़ तेरी दास्तां कहे
गीत बन जाओ होठों से लगा लूँ तुमको

महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
टूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको

        #श्वेता🍁

ज़िदगी की चाय

ख्वाहिशों में लिपटी
खूबसूरत भोर में,
उम्मीद के पतीले में
सपनों का पानी भरा
चंद चुटकी पत्तियाँ
कर्मों की डालकर
मेहनत के शक्कर
सच्चाई की दूध और
 रिश्तों के मसाले मिला
प्रेम के ढक्कन लगाकर
ज़िदगी के चूल्हें पर रखी है,
वक्त की धीमी आँच पर
पककर जब तैयार हो जाए
फिर चखकर बताना
कैसी लगी अनोखे स्वाद
से भरी हसरतों की चाय

                                 #श्वेता🍁


Sunday 16 April 2017

तारे

भोर की किरणों में बिखर गये तारे
जाने किस झील में उतर गये तारे

रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
आँख लगी कहीं निकल गये तारे

रात पहाड़ों पर जो फूल खिले थे
उन्हें ढूँढने वादियों में उतर गये तारे

तन्हाईयों में बातें करते रहे बेआवाज़
सहमकर सुबह शोर से गुज़र गये तारे

चमक रहे है फूलों पर शबनमी कतरे
खुशबू बनकर गुलों में ठहर गये तारे

           #श्वेता🍁

Saturday 15 April 2017

शाम

सूरज डूबा दरिया में हो गयी स्याह सँवलाई शाम
मौन का घूँघट ओढ़े बैठी, दुल्हन सी शरमाई शाम

थके पथिक पंछी भी वापस लौटे अपने ठिकाने में
बिटिया पूछे बाबा को, झोली में क्या भर लाई शाम

छोड़ पुराने नये ख्वाब अब नयना भरने को आतुर है
पोंछ के काजल ,चाँदनी भरके थोड़ी सी पगलाई शाम

चुप है चंदा चुप है तारे वन के सारे पेड़ भी चुप है
अंधेरे की ओढ़ चदरिया, लगता है पथराई शाम

भर आँचल में जुगनू तारे बाँट आऊँ अंधेरों को मैं
भरूँ उजाला कण कण में,सोच सोच मुस्काई शाम

             #श्वेता🍁

खुशबू


साँसों से नहीं जाती है जज़्बात की खुशबू
यादों में घुल गयी है मुलाकात की खुशबू


चुपके से पलकें चूम गयी ख्वाब चाँदनी
तनमन में बस गयी है कल रात की खुशबू

नाराज़ हुआ सूरज जलने लगी धरा भी
बादल छुपाये बैठा है बरसात की खुशबू

कल शाम ही छुआ तुमने आँखों से मुझे
होठों में रच गयी तेरे सौगात की खुशबू

तन्हाई के आँगन में पहन के झाँझरे
जेहन में गुनगुनाएँ तेरे बात की खुशबू

        #श्वेता🍁

आस का पंछी

कोमल पंखों को फैलाकर खग नील गगन छू आता है।
हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है।।

गिरने से न घबराना तुम  गिरकर ही सँभलना आता है।
पतझड़ में गिरा बीज वक्त पे नया पौध बन जाता है।।

जीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
बुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।

टूटे सपनों के टुकड़ों को न  देख कर आहें भरा करो।
तराशने का दर्द सहा तभी तो हीरा अनमोल बन पाता है।।

     #श्वेता🍁

Friday 14 April 2017

गुलाब

भोर की प्रथम रश्मि मुस्काई
गुलाब की पंखुड़ियों को दुलराई
जग जाओ ओ  फूलों की रानी
देख दिवस नवीन लेकर मैं आई

संग हवाओं की लहरों में इठलाकर
रंग बिरंगी परिधानों में बल खाकर
तितली भँवरों ने गीत गुनगुनाए है
गुलाब के खिले रूख़सारों पर जाकर

बिखरी खुशबुएँ मन ललचाएँ
छूने को आतुर हुई है उंगलियाँ
काश कि कोई जतन कर पाती
न मुरझाती फूलों की कलियाँ

देख सुर्ख गुलाब की भरी डालियाँ
जी डोले अँख भरे रस पियालियाँ
खिल जाते मुख अधर कपोल भी
पिया की याद में महकी जब गलियाँ

          #श्वेता🍁




Thursday 13 April 2017

मेरा चाँद

ओ रात के चाँद
तेरे दीदार को मैं
दिन ढले ही
छत पर बैठ जाती हूँ
घटाओं के बीच
ढ़ूँढ़ती हूँ घंटों
अनगिनत तारे भी गिनती हूँ
झलक तेरी दिख जाए
तुझे छूने को मैं दिवानी
अपनी अंजुरी में भर लेती
कभी उंगलियों के पोरों से
उन कलियों को छू लेती
जहाँ गिरती है चँदनियाँ
उस ओसारे पे रख पाँव
किरणों से मैं खेलूँ
कभी बाहें पसारे
पलकें मूँदे महसूस करती हूँ
तेरा शीतल उजाला मैं
अक्सर बाहों में भर लेती
जी भरता नहीं मेरा
कितना भी तुमको मैं देखूँ
उठा परदे झरोखों के
अंधेरे कमरे के बिछौने पर
तुझे पाकर मैं खुश होती
तकिये पर हर टिकाकर
अपनी आँखों से
जाने कितनी ही बात करती हूँ
तुझे पलकों भरती जाने
कब नींद से सो जाती
तेरी रेशम सी किरणों का
झिलमिल दुशाले को ओढकर
ख्वाब में खो जाती हूँ
मेरे तन्हा मन के साथी
चाँद तुम दूर हो लेकिन
तुम्हें मैं पा ही लेती हूँ।

     .#श्वेता🍁




मेरी पहचान बाकी है

अभी उम्मीद  ज़िदा है   अभी  अरमान बाकी है
ख्वाहिश भी नहीं मरती जब तक जान बाकी है

पिघलता दिल नहीं अब तो पत्थर हो गया सीना
इंसानियत मर रही है  नाम का  इंसान बाकी है

कही पर ख्वाब बिकते है कही ज़ज़्बात के सौदे
तो बोलो क्या पसंद तुमको बहुत सामान बाकी है

कहने में क्या जाता है बड़ी बातें ऊसूलों की
मुताबिक खुद के मिल जाए वही ईमान बाकी है

आईना रोज़ कहता है कि तुम बिल्कुल नहीं बदले
बिना शीशे के भी खुद से मेरी  पहचान बाकी है

            #श्वेता🍁

उदित सूर्य

नीले स्वच्छ नभ पर
बादलों से धुँध के बीच
केसरी रंगों ने
पूरब के क्षितिज को धो डाला
आहिस्ता आहिस्ता
आकाश के सुंदर माथ पर
अलसाता मुस्काता
लाल मुखड़ा  लिये
सूर्य उदित हुआ।
सोयी धरा के पलकों को अपनी
सुनहरी किरणों से चूमकर जगाया
खामोश पड़े कण कण में
स्फूर्ति का संचरण हुआ
किरणों के स्पर्श से ही
सोयी धरा में जीवन का
मौन स्पंदन हुआ
उदिय सूर्य जीवन में
प्राणवायु सदृश है
जिसके बिना जगत नीरवता
में डूबा सुसुप्त,उदास ,स्पंदनविहीन
अनंत तक फैलीअंधेरी गुफा मात्र है।

उदित सूर्य धरा का संजीवन है
सूर्य से ही धरती पर जीवन है।

      #श्वेता🍁

Wednesday 12 April 2017

रात

मेरे बड़े से झरोखे के सामने
दूर तक फैली नीरवता
नन्हें नन्हें दीयों सी झिलमिलती
अंधेरों में लिपटे इमारतों के
दरारों से छनकर आती रोशनी
दिन भर के मशक्कत से थके लोग
अब रैन बसेरे में ख्वाबों में
चलने की तैयारी में होगे
एक अलग दुनिया दिखती है
दिनभर का शोर अब थम गया है
दूर से सड़क के एक ओर
कतारों में सजी पीली रोशनी
राहें अब सुबह तक इंतज़ार करेगी
फिर से राहगीरों को उनकी
मंज़िल तक पहुँचाने के लिए
और नज़र आता है
दूर तक फैला गहन शून्य में डूबा
कुछ कुछ स्याह हुआ आसमां
उस पर चुपचाप मुस्कुराते सितारे
जो लगभग नियत जगह ही उगते है
स्थिर  अचल अनवरत टिमटिमाते
और एक आधा पूरा चाँद
जिसकी रोशनी म़े कभी पीपल के पत्ते
खूब झिलमिलाते है तो कभी
नीम अंधेरे में डूब जाते है
एक अलग ही संसार होता है रात का
खामोश अंधेरों में धड़कती है
ख्वाबों में खोयी बेखबर ज़िदगी
पहरेदारी करता उँघता चाँद
और भोर का बेसब्री से इंतज़ार करती
आहिस्ता आहिस्ता सरकती रात।

       #श्वेता🍁


प्रेम की धारा

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे
दिल ऐसा इकतारा है।

झूमे गाये प्यार की सरगम
ये गीत बहुत ही प्यारा है।

मन हीरा बेमोल बिक गया
तन का मोल ही सारा है।

अवनी अंबर सौन्दर्य भरा है
नयनों में प्रेम की धारा है।

कतरा कतरा दरिया पीकर भी
सागर प्यास का मारा है।

पास की सुरभि दूर का गीत
सुंगधित मन मतवारा है।

तड़प तड़प अश्क बहकर कहे
नमक इश्क का खारा है।

बेबस दिल की बस एक कहानी
ये इश्क बड़ा बेचारा है।

कल कल अंतर्मन में प्रवाहित
बहती मदिर रसधारा है।

जब तक जिस्म से उलझी है साँसें
दिल में नाम तुम्हारा है।

               #श्वेता🍁

(कुमार विश्वास की एक कविता की दो पंक्तियों से
प्ररित रचना)



Tuesday 11 April 2017

पूनम की रात

चाँदनी मृग छौने सी भटक रही
उलझी लता वेणु में अटक रही

पूनम के रात का उज्जवल रुप
दूध में केसरी आभा छिटक रही

ओढ़ शशि धवल पुंजों की दुशाला
निशि के नील भाल पर लटक रही

तट,तड़ाग,सरित,सरोवर के जल में
चाँदनी सुधा बूँदो में है टपक रही

अधखुली पलकों को चूम समाये
ख्वाब में चाँदी वरक लगाए लिपट रही

            #श्वेता🍁

ठाठ पत्तों के उजड़ रहे है

टूटकर फूल शाखों से झड़ रहे है
ठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है

भटके परिंदे छाँव की तलाश में
नीड़ो के सीवन अब उधड़ रहे है

अंजुरी में कितनी जमा हो जिंदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे है

ख्वाहिशो की भीड़ से परेशान दिल
और हसरत आपस में लड़ रहे है

राह में बिछे फूल़ो का नज़ारा है
फिर आँख में काँटे कैसे गड़ रहे है

       #श्वेता🍁

Monday 10 April 2017

उम्मीद का दीया

जेहन की पगडंडियों पर चलकर
साँझ की थकी किरणों को चुनती
बुझते आसमां के फीके रंग समेट
दिल के दरवाजे पे दस्तक देती है
तन्हाई का हाथ थामें खड़ी मिलती
खामोश नम यादें आँखों में,
टूटते मोतियों को स्याह शाम के
बहाने से चेहरे पर दुपट्टा बिछाकर
करीने से हरएक मोती पोंछ लेती
फिर बुझते शाम के गलियारे में
रौशन टिमटिमाते यादों के हर लम्हे
सहेजकर ,समेटकर ,तहकर
वापस रख देती है सँभालकर फिर से,
चिराग दिल में उम्मीद का तेल भर देती
ताकि रौशन रहे दर तेरी यादों का
इस आस में कि कभी इस गली
भूले से आ जाए वक्त चलकर
दोहराने हर बात शबनमी शामों की
और वापस न लौट जाए कहीं
दर पे अँधेरा देखकर।
 
     #श्वेता🍁

पाँच लिंकों का आनन्द: 633...बात बनाने की रैसेपी या कहिये नुस्खा

पाँच लिंकों का आनन्द: 633...बात बनाने की रैसेपी या कहिये नुस्खा

Saturday 8 April 2017

रोशनी की तलाश

रोशनी की तलाश
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मन का घना वन,
जिसके कई अंधेरे कोने से
मैं भी अपरिचित हूँ,
बहुत डर लगता है
तन्हाईयों के गहरे दलदल से,
जो खींच ले जाना चाहते है
अदृश्य संसार में,
समझ नहीं पाती कैसे मुक्त होऊँ
अचानक आ लिपटने वाली
यादों की कटीली बेलों से,
बर्बर, निर्दयी निराश जानवरों से
बचना चाहती हूँ मैं,
जो मन के सुंदर पक्षियों को
निगल लेता है बेदर्दी से,
थक गयी हूँ भटकते हुये
इस अंधेरे जंगल से,
भागी फिर हूँ तलाश में
रोशनी के जो राह दिखायेगा
फिर पा सकूँगी मेरे सुकून
से भरा विस्तृत आसमां,
अपने मनमुताबिक उड़ सकूँगी,
सपनीले चाँद सितारों से
धागा लेकर,
बुनूँगी रेशमी ख्वाब और
महकते फूलों के बाग में
ख्वाहिशों के हिंडोले में बैठ
पा सकूँगी वो गुलाब,
जो मेरे जीवन के दमघोंटू वन को,
बेचैनियों छटपटाहटों को,
खुशबूओं से भर दे।

                        #श्वेता🍁

Friday 7 April 2017

व्यथा एक मन की

व्यथा एक मन की
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एक कमरा छोटा सा
एक बेड,उस पर
बिछे रंगीन चादर
आरामदायक कुशन
जिसपर काढ़े गये
गुलाब के ढेर सारे फूल
दो लकड़ी के
खूबसूरत अलमीरे
एक शीशा उस पर
बेतरतीब से बिखरे
कुछ प्रसाधन
कोने के छोटे मेज पर
सुंदर काँच के गुलदान
में रखे रजनीगंधा के फूल
और झरोखे में लटके
सरसराते रेशमी परदे
इस खूबसूरत सजे
निर्जीव कमरे की एक
सजीव सजावट हूँ मैं
किसी शो पीस की तरह
जिसकी इच्छा अनिच्छा
का मतलब नहीं शायद
तभी तो हर कोई
अपने मुताबिक सजा देता
अपने ख्वाहिशों के दीवार पर।

                #श्वेता🍁       

ज़िदगी

बहाना ढ़ूँढ़ लो तुम हँसने और हँसाने का
मुट्ठीभर साँसों को क्यों गम में गँवाने का

अगर मुमकिन नहीं आसमां में उड़ पाना
हौसला रखो फ़लक ही जमीं पर लाने का

हर फसल ख्वाब की तैयार हो जरूरी नहीं
बोना न भूलो नये ख्वाब जरुर सच होने का

इस ज़िदगी के कारोबार को समझना मुश्किल
एक आँख में पाने की खुशी दूजे में रंज खोने का

टूटकर चकनाचूर होता दिल किसी बहाने से
न बनाओ अपनी खुशी काँच के खिलौने का

      #श्वेता🍁

Monday 3 April 2017

सूरज ताका धीरे से

Gud morning🍁
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रात की काली चुनर उठाकर
सूरज ताका धीरे से
अलसाये तन बोझिल पलकें
नींद टूट रही धीरे से
थोड़ा सा सो जाऊँ और पर
दिन चढ़ आया धीरे से
कितनी जल्दी सुबह हो जाती
रात क्यूँ होती है धीरे से
खिड़की से झाँक गौरेया गाये
चूँ चूँ चीं चीं धीरे से
गुलाब,बेली की सुंगध से महकी
हवा चली है धीरे से
किरणों के छूते जगने लगी धरा
प्रकृति कहे ये धीरे से
नियत समय पर कर्म करो तुम,
सूरज सिखलाये धीरे से।

                          #श्वेता🍁




Saturday 1 April 2017

थका हुआ दर्द

दर्द थका रोकर अब बचा कोई एहसास नही
पहचाने चेहरे बहुत जिसकी चाहत वो पास नही

पलभर के सुकूं को उम्रभर का मुसाफिर बना
जिंदगी में कहीं खुशियों का कोई आवास नहीं

बादलों की सैर कर लौट आना है वापस फिर
टहनी पर ही रहना घर परिंदों का आकास नहीं

दो जून की रोटी भी मयस्सर मुश्किल से हो जिसे
उसके जीवन में त्योहार का कोई उल्लास नहीं

टूट जाता है आसानी से धागा दिल के नेह का
समझो वहाँ मतलब था प्यार का विश्वास नहीं

   #श्वेता🍁




तेरी सुगंध

जबसे आये हो ज़िदगी के चमन में,
हृदय तेरी सुगंध से सुवासित है।
नहीं मुरझाता कभी भी गुलाब प्रेम का,
खिली मुस्कान लब पे आच्छादित है।
कोई काँटा चुभ भी जाए अगर दर्द का,
तुमसे हरपल में खुशी समाहित है।
मेरे जीवन की बहारें कौन कम करे जब,
तेरे साथ से मौसम परिभाषित  है।
                                             #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...