Friday 30 June 2017

बचपन

बचपन का ज़माना बहुत याद आता है
लौटके न आये वो पल आँखों नहीं जाता है

न दुनिया की फिक्र न ग़म का कहीं जिक्र
यादों में अल्हड़ नादानी रह रहके सताता है

बेवज़ह खिलखिलाना बेबाक नाच गाना
मासूम मुस्कान को वक्त तड़प के रह जाता है

परियों की कहानी सुनाती थी दादी नानी
माँ के आंचल का बिछौना नहीं मिल पाता है

हर बात पे झगड़ना पल भर में मान जाना
मेरे दोस्तो का याराना बहुत याद आता है

माटी में लोट जाना बारिश मे खिलखिलाना
धूप दोपहरी के ठहकों से मन भर आता है

अनगिनत याद में लिपटे असंख्य हीरे मोती
मुझे अनमोल ख़जाना बहुत याद आता है

क्यूँ बड़े हो गये दुनिया की भीड़ में खो गये
मुखौटे लगे मुखड़े कोई पहचान नहीं पाता है

लाख मशरूफ रहे जरूरत की आपाधापी में
बचपना वो निश्छलता दिल भूल नहीं पाता है

      #श्वेता🍁



Thursday 29 June 2017

यादों में तुम

यादों में तुम बहुत अच्छे लगते हो
याद तेरी जैसे गुलाब महकते है
अलसायी जैसे सुबह होती है
नरम श्वेत हल्के बादलों के
बाहों में झूलते हुये,
रात उतरती है धीमे से
साँझ के तांबई मुखड़े को
पहाड़ो के ओट में छुपाकर
और फैल जाती है घाटियों तक
गुमसुम यादें कहीं गहरे
तुम्हें मेरे भीतर
हृदय में भर देती है
दूर तक फैली हुयी तन्हाई
तेरी यादों की रोशनी से मूँदे
पलकों को ख्वाब की नज़र देती है
तुम ओझल हो मेरी आँखों से
पर यादों में चाँदनी
मखमली सुकून के पल देती है
भटकते तेरे संग तेरी यादों मे
वनों,सरिताओं के एकान्त में
स्वप्निल आकाश की असीम शांति में
हंसते मुस्कुराते तुम्हें जीते है,
फिर करवट लेते है लम्हें
मंज़र बदलते है पलक झपकते
मुस्कुराते धड़कनों से
एक लहर कसक की उठकर
आँखों के कोरो को
स्याह मेघों से भर देती है
कुछ बूँदें टूटी हसरतों की
अधूरी कहानियों को भिंगों देती है
जाने ये कैसी बारिश है
जिसमें भींगकर यादें संदली हो जाती है।
   
         #श्वेता🍁

Wednesday 28 June 2017

सौगात

मुद्दतों बाद रूबरू हुए आईने से
खुद को न पहचान सके
जाने किन ख्यालों में गुम हुए थे
जिंदगी तेरी सूरत भूल गये

ख्वाब इतने भर लिए आँखों में
हकीकत सारे बेमानी लगे
चमकती रेत को पानी समझ बैठे
न प्यास बुझी तड़पा ही किये

एक टुकड़ा आसमान की ख्वाहिश में
जमीं से अपनी रूठ गये
अपनों के बीच खुद को अजनबी पाया
जब भरम सारे टूट गये

सफर तो चलेगा समेट कर मुट्ठी भर यादें
कुछ तो सौगात मिला तुमसे
ऐ जिंदगी चंद अनछुए एहसास के लिए
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा

             #श्वेता🍁


Tuesday 27 June 2017

खिड़कियाँ ज्यादा रखो

दीवारें कम खिड़कियाँ ज्यादा रखो
शोर क्यों करो चुप्पियाँ ज्यादा रखो

न बोझ हो सीने में कोई न मलाल हो
बिना उम्मीद के नेकियाँ ज्यादा रखो

दिखावे का जमाना है पिछड़ जाओगे
मेहमां कम सही कुर्सियाँ ज्यादा रखो

चल रहे हो भीड़ में चीखना बेमानी है
बँधे हुये हाथों में तख्तियाँ ज्यादा रखो

सुख दुख की लहरों से लड़ना हो गर
हौसलों से भरी कश्तियाँ ज्यादा रखो

दौड़ती हाँफती ज़िदगी के लम्हों से
परे हटा गम़ो को मस्तियाँ ज्यादा रखो

       #श्वेता🍁

Sunday 25 June 2017

उम्मीदों की फेहरिश्त

आज के ख्वाहिशें इंतज़ार में पड़ी होती है
कल की उम्मीदों की फेहरिश्त बड़ी होती है

बहते है वक्त की मुट्ठियों से फिसलते लम्हें
कम होती ज़िदगी के हाथों में घड़ी होती है

क्यों गिरबां में अपने कोई झाँकता नहीं है
निगाहें ज़माने की झिर्रियों में खड़ी होती है

टूटना ही हश्र रात के ख्वाबों का फिर भी
नहीं मानती नींदें भी ज़िद में अड़ी होती है

श्वेत श्याम रंगीन तस्वीरें बंद किताबों में
मृत हो चुकी यादों की जिंदा कड़ी होती है

          #श्वेता🍁

Saturday 24 June 2017

उदासी तुम्हारी

पल पल तुझको खो जीकर
बूँद बूँद तुम्हें हृदय से पीकर
एहसास तुम्हारा अंजुरी में भर
अनकहे तुम्हारी पीड़ा को छूकर
इन अदृश्य हवाओं में घुले
तुम्हारें श्वासों के मध्म स्पंदन को
महसूस कर सकती हूँ।

निर्विकार , निर्निमेष कृत्रिम
आवरण में लिपटकर हंसते
कागज के पुष्प सदृश चमकीले
हिमशिला का कवच पहन
अन्तर्मन के ताप से पिघल
भीतर ही भीतर दरकते
पनीले आसमान सदृश बोझिल
तुम्हारी गीली मुस्कान को
महसूस कर सकती हूँ।

कर्म की तन्मता में रत दिन रात
इच्छाओं के भँवर में उलझे मन
यंत्रचालित तन पे ओढ़कर कर
एक परत गाढ़ी तृप्ति का लबादा,
अपनों की सुख के साज पर
रूँधे गीतों के टूटते तार बाँधकर,
कर्णप्रिय रागों को सुनाकर
मिथ्या में झूमते उदासी को तुम्हारी
महसूस कर सकती हूँ।
       #श्वेता🍁



Friday 23 June 2017

एक दिन

खुद को दिल में तेरे छोड़ के चले जायेगे एक दिन
तुम न चाहो तो भी  बेसबब याद आयेगे एक दिन

जब भी कोई तेरे खुशियों की दुआ माँगेगा रब से
फूल मन्नत के हो तेरे दामन में मुसकायेगे एक दिन

अंधेरी रातों में जब तेरा साया भी दिखलाई न देगा
बनके  इल्मे ए चिरां ठोकरों से बचायेगे एक दिन

तू न देखना चाहे मिरी ओर कोई बात नहीं,मेरे सनम
आईने दिल अक्स तेरा बनके नज़र आयेगे एक दिन

तेरी जिद तेरी बेरूखी इश्क में जो मिला,मंजूर मुझे
मेरी तड़पती आहें तुझको बहुत रूलायेगे एक दिन

आज तुम जा रहे हो मुँह मोड़कर राहों से मेरे घर के
दोगे सदा फिर कभी खाली ही लौटके आयेगे एक दिन

      #श्वेता🍁


Thursday 22 June 2017

रिश्ते

रिश्ते बाँधे नहीं जा सकते
बस छुये जा सकते है
नेह के मोहक एहसासों से
स्पर्श किये जा सकते है
शब्दों के कोमल उद्गारों से
रिश्ते दरख्त नहीं होते है
लताएँ होती है जिन्हें
सहारा चाहिए होता है
भरोसे के सबल खूँटों का
जिस पर वो निश्चिंत होकर
पसर सके मनचाहे आकार में
रिश्ते तुलसी के बिरवे सरीखे है
जिन्हे प्यार और सम्मान
के जल से सींचना होता है
तभी पत्तों से झरते है आशीष
चुभते काँटों से चंद बातों को
अनदेखा करने से ही
खिलते है महकते रिश्तों के गुलाब
सुवासित करते है घर आँगन
बाती बन कर रिश्तों के दीये में
जलना पड़ता है अस्तित्व भूल कर
तभी प्रकाश स्नेह का दिपदिपाता है
रिश्ते ज़बान की तलवार से नहीं
महीन भावों के सूई से जोड़े जाते है
जिससे अटूट बंधन बनता है
पूजा के मौली जैसे ,
रिश्ते हवा या जल की तरह
बस तन को जीवित रखने के
नहीं होते है,
रिश्ते मन होते है जिससे
जीवन का एहसास होता है।

       #श्वेता🍁



बरखा ऋतु

तपती प्यासी धरा की
देख व्यथित अकुलाहट
भर भर आये नयन मेघ के
बूँद बूद कर टपके नभ से
थिरके डाल , पात शाखों पे
टप टप टिप टिप पट पट
राग मल्हार झूम कर गाये है
पवन के झोंकें से उड़कर
कली फूल संग खिलखिलाए
चूम धरा का प्यासा आँचल
माटी के कण कण महकाये है
उदास सरित के प्रांगण में
बूँदों की गूँजें किलकारी
मौसम ने ली अंगड़ाई अब तो
मनमोहक बरखा ऋतु आयी है।

कुसुम पातों में रंग भरने को
जीवन अमृत जल धरने को
अन्नपूर्णा धरा को करने को
खुशियाँ बूँदों में बाँध के लायी है
पनीले नभ के रोआँसें मुखड़े
कारे बादल के लहराते केशों में
कौंधे तड़कती कटीली मुस्कान
पर्वतशिख का आलिंगन करते घन
घाटी में रसधार बन बहने को
देने को नवजीवन जग को
संजीवनी बूटी ले आयी है
बाँह पसारें पलकें मूँदे कर
मदिर रस का आस्वादन कर लो
भर कर अंजुरी में मधुरस
भींगो लो तन मन पावन कर लो
छप छप छुम छुम रागिनी पग में
रूनझुन पाजेब पहनाने को
बूँदों का श्रृंगार ले आयी है
जल तरंग के मादक सप्तक से
झंकृत प्रकृति को करने को
जीवनदायी बरखा ऋतु आयी है।

      #श्वेता🍁

Tuesday 20 June 2017

चुपके से

चुपके से उतरे दिल में हंसी लम्हात दे गये
पलकें अभी भी है भरी वो  बरसात दे गये

भर लिए ख्वाब आँखों मे न पूछा तुमसे
चंद यादों के बदले दर्द  की सौगात दे गये

एक नज़र प्यार की चाहत ज्यादा तो न थी
खामोश रहे  तुम उलझे से ख्यालात दे गये

दिल मे गहरे चढ गये रंग तेरे  एहसासों के
मिटाए से न मिटे महकते से जज़्बात दे गये

हसरते दिल की अधूरी है न पूरी होगी कभी
गर्म आहों में लिपटी तन्हा सर्द  रात दे गये

    #श्वेता🍁

Sunday 18 June 2017

मेरी बिटिया के पापा


कल रात को अचानक नींद खुल गयी, बेड पर तुम्हें न पाकर मिचमिचाते आँखों से सिरहाने रखा फोन टटोलने कर टाईम देखा तो  1:45 a.m हो रहे थे।बेडरूम के भिड़काये दरवाजों और परदों के नीचे से मद्धिम रोशनी आ रही थी , शायद तुम ड्राईंंग रूम में हो, आश्चर्य और चिंता के मिले जुले भाव ने मेरी नींद उड़ा दी। जाकर देखा तो तुम सिर झुकाये एक कॉपी में कुछ लिख रहे थे।इतनी तन्मयता से कि मेरी आहट भी न सुनी।
ओह्ह्ह....,ये तो बिटिया की इंगलिश  लिट्रेचर की कॉपी है! तुम उसमें कुछ करैक्शन कर रहे थे।कल उसने एक निबंध लिखा था बिना किसी की सहायता के और तुमसे पढ़ने को कहा था , तब तुमने उससे वादा किया था आज जरूर पढ़ोगे, पर तुम्हारे व्यस्त दिनचर्या की वजह से आज भी तुम लेट ही आये और निबंध नहीं चेक कर पाये थे। मैंने धीरे से तुम्हारा कंधा छुआ तो तुमने चौंक कर देखा और शांत , हौले से  मुस्कुराते हुये कहा कि ' उसने इतनी मेहनत से खुद से कुछ लिखा है अगर कल पर टाल देता तो वो निराश हो जाती न।'
ऐसी एक नहीं अनगिनत घटनाएँ और छोटी छोटी बातें है बिटिया के लिए तुम्हारा असीम प्यार अपने दायित्व के साथ क़दमताल करता हुआ दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। उसके जन्म के बाद से ही एक पिता के रूप में  तुमने हर बार विस्मत किया है।
मुझे अच्छी तरह याद है बिटिया के जन्म के बाद पहली बार जब तुमने उसे छुआ था तुम्हारी आँखें भींग गयी थी आनंदविभोर उसकी उंगली थामें तुम तब तक बैठे रहे जब तक अस्पताल के सुरक्षा कर्मियों ने आकर जाने को नहीं कहा। उसकी एक छींक पर मुझे लाखों हिदायतें देना,उसकी तबियत खराब होने पर रात भर मेरे साथ जागना बिना नींद की परवाह किये जबकि मैं जानती हूँ 5-6  घंटों से ज्यादा सोने के लिए कभी तुम्हारे पास वक्त नहीं होता। उसकी पहले जन्मदिन से ही भविष्य के सपनों के पूरा करने के लिए जाने क्या-क्या योजनाएँँ बना रहे। बिटिया भी तो उसकी कोई बात बिना पापा को बताये पूरी कब होती है। जितना भी थके हुए रहो तुम पर जब तक दिन भर की सारी बातें न कह ले तुम्हें दुलार न ले सोती ही नहीं, तुम्हारे इंतज़ार में छत से अनगिनत बार तुम्हारी गाड़ी झाँक आती है। मम्मा पा फोन किये थे क्या उनको लेट होगा? अब तक आये क्यों नहीं..? तुम्हारे आने के समय में देर हो तो अपना फेवरेट टी.वी. शो भूलकर सौ बार सवाल करती रहती है।
जब तुम दोनों मिलकर मेरी हँसी उड़ाते मुझे चिढ़ाते हो,खिलखिलाते हो... भले ही मैं चिड़चिडाऊँ पर मन को मिलता असीम आनंद शब्दों म़े बता पाना मुश्किल है।

तुम दोनों का ये प्यार देखकर मेरे पापा के प्रति मेरा प्यार और गहरा हो जाता है, जो भावनाएँ मैं नहीं समझ पाती थी उनकी, अब सारी बातें समझने लगी हूँ उन सारे पलों को फिर से जीने लगी हूँ।
पापा को कभी नहीं बता पायी मैं उनके प्रति मेरी भावनाएँ, पर आज सोच रही हूँ कि इस बार उनसे जाकर जरूर कहूँगी कि उनको मैं बहुत प्यार करती हूँ।

तुम्हें अनेको धन्यवाद देना था ,नहीं तुम्हारी बेटी के प्रति तुम्हारे प्यार के लिए नहीं बल्कि मेरे मेरे पापा के अनकहे शब्दों को उनकी अव्यक्त भावनाओं को तुम्हारे द्वारा समझ पाने के लिए।

  #श्वेता सिन्हा

Saturday 17 June 2017

मौन

बस शब्दों के मौन हो जाने से
न बोलने की कसम खाने से
भाव भी क्या मौन हो जाते है??
नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के
एहसास भी क्या मौन हो जाते है??

एक प्रतिज्ञा भीष्म सी उठा लेने से
अपने हाथों से स्वयं को जला लेने से
बहते मन सरित की धारा मोड़ने से
उड़ते इच्छा खग के परों को तोड़ने से
नहीं महकते होगे गुलाब शाखों पर
चुभते काँटे मन के क्या मौन हो जाते है??

ख्वाबों के डर से न सोने से रात को
न कहने से अधरों पे आयी बात को
पलट देने से ज़िदगी किताब से पन्ने
न जीने से हाथ में आये थोड़े से लम्हें
वेदना पी त्याग का कवच ओढकर
अकुलाहट भी क्या मौन हो जाते है??

       #श्वेता🍁

Friday 16 June 2017

एक बार फिर से

मैं ढलती शाम की तरह
तू तनहा चाँद बन के
मुझमे बिखरने आ जा
बहुत उदास है डूबती
साँझ की गुलाबी किरणें
तू खिलखिलाती चाँदनी बन
मुझे आगोश मे भरने आजा
दिनभर की मुरझायी कली
कोर अब भींगने  लगे
भर रातरानी की महक
हवा बनके लिपटने आजा
परों को समेट घर लौटे
परिदें भी अब मौन हुए
तू साँझ का दीप बन जा
मन मे मेरे जलने आ जा
सारा दिन टटोलती रही
सूने अपने दरवाजे को
कोई संदेशा भेज न
तू आँखों मे ठहरने आजा
बेजान से फिरते है
बस तेरे ख्याल लिए
एहसास से छू ले फिर से
धड़कनों मे महकने आजा

     #श्वेता🍁


Thursday 15 June 2017

पापा

पापा,घने, विशाल वट वृक्ष जैसे है
जिनके सघन छाँह में,
हम बनाते है बेफ्रिक्र होकर
कच्चे पक्के जीवन के घरौंदे
और बुनियाद में रखते है
उनके अनुभवों की ईंट,
पापा के मजबूत काँधे पर चढ़कर
आसमान में उड़ने का स्वप्न देखते है
इकट्ठे करते है सितारे ख्वाहिशों के
और पापा की जेब में भर देते सारे,
उनके पास दो जादू भरे हाथ होते है
जिसमें पकडकर अनुशासन,
स्नेह और सीख की छेनी हथौड़ी
वो तराशते है बच्चों के
अनगिनत सपनों को,
अपने हृदय के भाव को
व्यक्त नहीं करते कभी पापा
सहज शांतचित्त गंभीर
ओढ़कर आवरण चट्टान का
खड़े रहते है हमसे पहले
हमारे छोटी से छोटी परेशानी में
कोई नहीं जानता पापा की
सोयी इच्छाओं के बाबत
क्योंकि पापा जीते है हमारे
अतीत, वर्तमान और भविष्य,
की कामनाओं को
पापा की उंगली पकड़कर
जब चलना सीखते है
हम भूल जाते है
जीवन राह के कंटकों को
डर नहीं लगता जग के
बीहड़ वन की भयावहता में
दिनभर के थके पापा के पास
लोरियाँ नहीं होती बच्चों को
सुलाने के लिए
पर उनकी सबल बाहों के
आरामदायक बिस्तर पर
चिंतामुक्त नींद आती है
पापा वो बैंक है
जिसमें जमा करते है
अपनी सारे दुख, तकलीफ,
परेशानी,ख्वाहिशें और अनगिनत आशाएँ,
और बदले में पाते है एक निश्चत
चिरपरिचित विश्वास ,सुरक्षा घेरा
और अमूल्य सुखी जीवन
की सौगात उनके आशीष के रूप मे।
    #श्वेता🍁

Wednesday 14 June 2017

तेरी तलबदार

तन्हाई मेरी बस तेरी ही तलबदार है
दिल मेरा तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है

तेरे चेहरे पे उदासी के निशां न हो
आँख़े तुम्हारी मुस्कां की तरफदार है

बिन बहार महकी है बगिया दिल की
तेरी रूह की तासीर ही खुशबूदार है

जी नहीं पायेगे तेरी आहटों के बिन
पलभर का साथ तेरा इतना असरदार है

जो भी दिया तुमने रहमत लगी खुदा की
हर एक पल के एहसास तेरे कर्जदार है

       #श्वेता🍁

Tuesday 13 June 2017

भँवर

स्याह रात की नीरवता सी
शांत झील मन में
तेरे ख्यालों के कंकर
हलचल मचाते है
एक एक कर गिरते
जल को तरंगित करते
लहरें धीरे धीरे तेज होती
किनारों को छूती है
भँवर बेचैनी की तड़प बन
खींचने लगते है
बेबस बेकाबू मन सम्मोहित
अनन्त में उतर जाता है
निचोड़कर प्राण  फिर
छोड़ देता है सतह पर
निर्जीव देह जिसे सुध न रहती
बहता जाता है मानो
जीवन के प्रवाह में अंत की तलाश में

#श्वेता🍁




तुम्हारे लिए

ज़हन के आसमान पर
दिनभर उड़ती रहती,
ढूँढ़ती रहती कुछपल का सुकून,
बेचैन ,अवश, तुम्हारी स्मृतियों की तितलियाँ
बादलों को देख मचल उठती
संग मनचली हवाओं के
छूकर तुम्हें आने के लिए,
एक झलक तुम्हारी
अपनी मुसकुराहटों मे
बसाने के लिए,
टकटकी लगाये चाँद को
देखती तुम्हारी आँखों में
चाँदनी बन समाने के लिए,
अपनी छवि तुम्हारी उनींदी पलकों में
छिपकर देखने को आतुर
तुम्हारे ख़्यालों के गलियारे में
ख़्वाब में तुमसे बतियाने के लिए,
तुम्हारे लरजते ज़ज़्बात में
खुद को महसूस करने की
चाहत लिए
तन्हाई में कसमसाती,
कविताओं के सुगंधित
उपवन मे विचरती,
शब्दों में खुद को ढ़ूँढ़ती
तितलियाँ उड़ती रहती हैंं,
व्याकुल होकर
प्रेम पराग की आस में,
बस तुम्हारे ही ख़्यालों के
मनमोहक फूल पर।


      #श्वेता


Monday 12 June 2017

कुछ बात होती

बहुत लंबी है उम्र, चंद लम्हों में ,सिमट जाती तो कुछ बात होती
मेरी ख़्वाहिश है तू, कुछ पल को,मिल जाती तो कुछ बात होती

रातें महकती है चाँदनी बनके मेरी आँखों के राहदारी में
धूप झुलसती, बदन को चूम,संदल सी भर जाती तो कुछ बात होती

दिल धडकनें लगता है बेतहाश़ा देखो न तेरा जिक्र सुन के
ये खबर झूठी नही,तुम तक उड़ती,,पहुँच जाती तो कुछ बात होती

पीकर जाम तेरे एहसास का झूमता है मन मलंग दिन रात
तुझे ख्वाब बना, आँखों से आँखों में पी जाती तो कुछ बात होती

तन्हाई को छूकर तो हर रोज बरस जाती है यादें तेरी
सूखी जमीं दिल की ,नेह की बूँदे,बिखर जाती तो कोई बात होती

        #श्वेता🍁


Sunday 11 June 2017

हिय के पीर

माने न मनमोहना समझे न हिय के पीर
विनती करके हार गयी बहे नयन से नीर

खड़ी गली के छोर पे बाट निहारे नैना
अबहुँ न आये साँवरे बेकल जिया अधीर

हाल बताऊँ कैसे मैं न बात करे निर्मोही
खत भी वापस आ गये कैसे धरूँ अब धीर

जीत ले चाहे जग को तू नेह बिन सब सून
मौन तेरे विष भरे लगे घाव करे गंभीर

सूझे न कुछ और मोहे उलझे मन के तार
उड़ उड़ जाये पास तेरे रटे नाम मन कीर

भरे अश्रु से मेघ सघन बरसे दिन और रात
गीली पलकें ले सुखाऊँ जमना जी के तीर

         #श्वेता🍁



Saturday 10 June 2017

जब भी

जब भी जख्म तेरे यादों के भरने लगते है
किसी बहाने हम तुम्हे याद करने लगते है

हर अजनबी चेहरा पहचाना दिखाई देता है
जब भी हम तेरी गली से गुजरने लगते है

जिस  रात को चाँद से तेरी बातें की हमने
सुबह की आँख मे आँसू उभरने लगते है

जिसने भर दिया दामन को बेरंग फूलों से
उनके एक दर्द पर हम क्यों तड़पने लगते है

दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक नही होती
तेरा जिक्र होते ही दरो दीवार महकने लगते है

मिटा दे हर ख्याल जेहन की किताब से लेकिन
इबारत पे उनका नाम देखकर सिसकने लगते है

        #श्वेता🍁



Thursday 8 June 2017

अजनबी ही रहे

हम अजनबी ही रहे इतने मुलाकातों के बाद
न उतर सके दिल में कितनी मुलाकातों के बाद

चार दिन बस चाँदनी रही मेरे घर के आँगन में
तड़पती आहें बची अश्कों की बरसातों के बाद

है बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद

चाहा तो बेपनाह पर उनके दिल में न उतर सके
दामन मे बचे है कुछ आँसू चंद सवालातों के बाद

ऐ दिल,चल राह अपनी किस आसरे मे बैठा तू
रुकना मुनासिब नहीं लगता खोखली बातों के बाद

#श्वेता🍁

Wednesday 7 June 2017

पुरानी डायरी

सालों बाद
आज हाथ आयी
मेरी पुरानी डायरी के
खोये पन्ने,
फटी डायरी की
खुशबू में खोकर,
छूकर उंगलियों के
पोर से गुजरे वक्त को
जीने लगी उन
साँसें लेती यादों को,
मेरी लिखी पहली कविता,
जिसके किनारे पर
काढ़ी थी मैंने
लाल स्याही से बेलबूटे,
जाने किन ख़्यालों में बुनी
आड़ी तिरछी लकीरें
उलझी हुयी अल्पनाएँ
जाने किन मीठी
कल्पनाओं में लिखे गये
नाम के पहले अक्षर,
सखियों के खिलखिलाते
हँसते- मुस्कुराते कार्टून,
मेंहदी के नमूने,
नयी-नयी रसोई बनाने
की उत्साह में लिखे गये
संजीव कपूर शो के व्यंजन
कुछ कुछ अस्पष्ट
टेलीफोन  नम्बर
कुछ पन्नों पर धुँधले शब्द
जिस पर गिरे थे
मेरे एहसास के मोती,
अल्हड़,मादक ,यौवन
की सपनीली अगड़ाईयाँ,
बचकाने शब्दों में अभिव्यक्त,
चाँद, फूल और परियों की
आधी-अधूरी कहानियाँ
कुछ सूखे गुलाब की पंखुड़ियाँ
दो रूपये के नये नोट का
अनमोल उपहार,
जिसे कभी माँ ने दिया था
जिसका चटख गुलाबी रंग
अब फीका हो गया है,
दम तोड़ते पीले पन्नों पर
लिखी मेरी भावनाओं
के बेशकीती धरोहर
जिसके सूखे गुलाब
महक रहे हैं
गीली पलकों पर समेटकर
यादें सहेजकर रख दिया
अपने गुलाबी दुपट्टे में लपेटकर,
फुरसत के पलों में
इन फीके पन्नों से
गुजरे वक्त की चमकीली
तस्वीर पलटने के लिए।

#श्वेता सिन्हा

Tuesday 6 June 2017

पहली फुहार


तपती धरा के आँगन में
उमड़ घुमड़ कर छाये मेघ
दग्ध तनमन के प्रांगण में
शीतल छाँव ले आये मेघ
हवा होकर मतवारी चली
बिजलियो की कटारी चली
लगी टपकने अमृत धारा
बादल के मलमली दुपट्टे
बरसाये अपना प्रथम प्यार
इतर की बोतलें सब बेकार
लगी महकने मिट्टी सोंधी
नाचे मयूर नील पंख पसार
थिरक बूदों के ताल ज्यों पड़ी
खिली गुलाब की हँसती कली
पत्तों की खुली जुल्फें बिखरी
सरित की सूखी पलकें निखरी
पसरी हथेलियाँ भरती बूँदें
करे अठखेलियाँ बचपन कूदे
मौन हो मुस्काये मंद स्मित धरा
बादल के हिय अमित प्रेम भरा
प्रथम फुहार की लेकर सौगात
रूनझुन बूँदे पहने आ रही बरसात


        #श्वेता🍁


Saturday 3 June 2017

एक रात ख्वाब भरी

गीले चाँद की परछाई
खोल कर बंद झरोखे
चुपके से सिरहाने
आकर बैठ गयी
करवटों की बेचैनी
से रात जाग गयी
चाँदनी के धागों में
बँधे सितारे
बादलों में तैरने लगे
हवा लेकर आ गयी
रातरानी की खुशबू में
लिपटे तेरे ख्याल
हवाओं की थपकियाँ देकर
आगोश में लेकर सुलाने लगे
मदभरी पलकों को चूमकर
ख्वाबों की परियाँ
छिड़क कर
तुम्हारे एहसास का इत्र
पकड़ कर दामन
खींच रही है स्वप्निल संसार में

       #श्वेता🍁






तेरा रूठना


तन्हा हर लम्हें में यादों को खोलना,
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

ओढ़ के मगन दिल प्रीत की चुनरिया
बाँधी है आँचल से नेह की गठरिया,
बहके मलंग मन खाया है भंग कोई
चढ़ गया तन पर फागुन का रंग कोई,
हिय के हिंडोले में साजन संग डोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रेशम सी चाहत के धागों का टूटना
पलकों के कोरों से अश्कों का फूटना,
दिन दिनभर आँखों से दर को टटोलना
गिन गिनकर दामन में लम्हें बटोरना,
पूछे है धड़कन क्यों बोले न ढोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रूठा है जबसे तू कलियाँ उदास है
भँवरें न बोले तितलियों का संन्यास है,
सूनी है रात बहुत चंदा के मौन से
गीली है पलकें ख्वाब देखेगी कौन से,
बातें है दिल की तू लफ्ज़ो से तोल ना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।
               #श्वेता🍁

Friday 2 June 2017

मन्नत का धागा


मुँह मोड़ कर मन की
आशाओं को मारना
आसां नहीं होता
बहारों के मौसम में,
खुशियों के बाग में.
काँटों को पालना
बहती धार से बाहर
नावों को खीचना
प्रेम भरा मन लबालब
छलकने को आतुर
कराने को तत्पर रसपान
भरे पात्र मधु के अधरों से
आकर लगे हो जब,
उस क्षण प्यासे होकर भी
ज़ाम को ठुकरा देना,
जलते हृदय के भावों को
मुस्कान में अपनी छुपा लेना,
अश्कों का कतरा  पीकर
खोखली हँसी जीकर,
स्वयं को परिपूर्ण बतलाना
दंभ से नज़रें फेर कर गुजरना,
हंसकर मिलने का आडम्बर
भींगी पलकों की कोरों से
टपकते ख्वाबों को देखना,
तन्हा खामोश ख्यालों में
एक एक पल बस तुमको जीना
कितना मुश्किल है
तुम न समझ पाओगे कभी,
पत्थर न होकर भी
पत्थरों की तरह ठोकरों में रहना,
मन दर्पण में तेरी
अदृश्य मूरत बसाकर,
अनगिनत बार शब्द बाणों से
आहत टूटकर चूर होना
फिर से स्पंदनहीन,भावहीन
बनकर तुम्हारे लिए
बस तुम्हारी खातिर,
दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
मन्नत के धागे के सिवा और
क्या हो सकती हूँ मैं
तुम्हारे तृप्त जीवन में।

         #श्वेता🍁


Thursday 1 June 2017

मन का बोझ

मन का बोझ
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         बेचैन करवट बदलती मैं उठ बैठ गयी। तकिये के नीचे से टटोलकर क्लच ढूँढकर बिखरे बालों को समेटकर उस पर लगाया ,थके मन के ,बोझिल आँखों से अंधेरे कमरे में हवा के झोंके से सरसराते परदे के पीछे से खुले आसमान पे चमकता आधा चाँद देखने लगी जो मेरी तरह ही उदास लगा।धीरे से पलंग से उतरकर कमरे से बाहर आ गयी।निःशब्द चलकर छत का दरवाजा खोलकर अलसायी निढाल सी आराम कुर्सी पर पसर गयी।

               बार बार उसका चेहरा आँखों के सामने आ रहा,आज की घटना ने पुरानी गाँठें खोल दी थी। मन के परदे पर चलचित्र की भाँति वो दिन तैरने लगे।
     
                  ऐसा लग रहा कल की ही बात हो कोई। कॉलेज का मेरा अंतिम वर्ष कब आ गया पता ही न चला, मेरी कक्षा में मेरे अलावा दस लड़कियाँ थी ।मैं थोड़ी संकोची,अंतर्मुखी अपने में खोये रहने वाली मितभाषी लड़की थी,बातें हाय हल्लो सबसे करती पर खुलकर बातें करूँ ऐसे दोस्त नहीं बने थे मेरे । अंजु ने दूसरी कॉलेज से B.A आनर्स किया था और M.A में हमारे महिला महाविद्यालय में एडमिशन लिया था।वो मेरे स्वाभाव से अलग खुशमिजाज, सुंदर, चुलबुली, बिंदास जब स्कूटी चलाकर आती तो उसके छोटे लहराते बाल और आत्मविश्वास से भरे चेहरा मुझे बहुत प्रभावित करते।कुछ दिनों मे ही हम अच्छे दोस्त बन गये थे। M.A फाईनल परीक्षा की तिथि घोषित हो चुकी थी।मैं अपनी सखी अंजु के साथ जी जान से पढाई में जुट गयी।

  बहुत दिनों से अंजु कॉलेज नहीं आ रही थी फोन भी बंद था ,बहुत परेशान थी उसे लेकर मैं उसकी परिचित एक दो लड़कियों से उसके बारे में पूछा पर उन्होंने अनभिज्ञता ज़ाहिर की। बहुत गुस्सा आ रहा था उसपे।
मन ही मन सोच रही थी,आने दो उस अंजु की बच्ची को फिर खबर लूँगी।" पूरे दस दिन बाद वो आयी खुशी से चहकती हुयी,बताया उसकी शादी तय हो गयी है।लड़का किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छे पद पर था मोटी तनख्वाह पाता था।
  उसने कहा," चल आज कॉफी पीते है"
मैंने कहा,"नहीं यार माँ वेट कर रही होगी,मैं उनसे बोलकर आयी हूँ आज पक्का उनके आँखों का टेस्ट करवाने ले जाऊँगी।" पापा को टाईम नहीं मिल पा रहा न।
पर वो नहीं मानी बोली "आज कॉलेज का लास्ट डे है फिर एक्ज़ाम शुरु हो जायेगे और फौरन बाद मेरी शादी तू चल न यार। "
इतना मनुहार करने से मेरा मन भी पिघल गया सोचा आधे घंटे में क्या बिगड़ जायेगा।
           उसकी स्कूटी में उसके पीछे बैठ कर कॉलेज से 5 कि.मी.
दूर एक नामी कॉफी शॉप पहुँची ।छत के एक कोने के टेबल पर चीज़ सैंडविच और दो ब्लैक कॉफी का ऑडर देकर हम बातों में मशरूफ हो गये। हल्की शाम होने लगी थी,अक्टूबर का तीसरा सप्ताह था वो गुनगुनी ठंड सी हो आयी थी।करीब एक घंटे बाद हम वहाँ से निकले,अंजु ने कहा वो मुझे बस स्टॉप छोड़ देगी।

                 अंधेरा होने लगा था कभी इतना लेट नहीं हुआ था मुझे डर लगने लगा कही मेरी आखिरी बस न छूट जाए ,अंजु ये बात जानती थी कि 6 बजे के बाद फिर ऑटो रिजर्व करके जाना पड़ेगा मुझे घर शायद इसी वजह से अंजु बहुत तेज स्कूटी चला रही थी । अब अंधेरा घिरने लगा था स्ट्रीट लाईट्स की कतारें सड़क पे झिलमिलाने लगी थी, बस स्टॉप तक पहुँचने के लिए शॉट कट रास्ते पर वो मुड़ी तो एक झुरझुरी सी फैल गयी बदन में। इस गली से निकलते ही चार कदम पर बस स्टॉप था वरना मेन रोड का लंबा चक्कर लगाकर स्टॉप तक में 15 मिनट चले जाते। बहुत  संकरी-सी गली थी, ये दो बड़े और नामी अपार्टमेंट्स गौतम विहार और अलकनंदा के बीच का पिछवाड़ा था ,अपेक्षाकृत इस तरफ कोई आता नहीं था,गली सुनसान पडी रहती थी। 

"इस तरफ से हम जल्दी पहुँच जायेगे अंजु ने कहा।
"हम्म्म्"मैं चुप थी गली में झुटपुटा अंधेरा था, थोड़ी-बहुत रोशनी कुछ घरों की खुली खिड़कियों से आ रही थी।
गली के मुहाने कुछ ठीक पहले अचानक स्कूटर किसी पत्थर से लगा और उछल पड़ा, डगमगाता  किसी चीज से टकरायी इससे पहले कि कुछ समझ आता  स्कूटी पलट गयी।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ।

  5 मिनट बाद अंजु की धीमी आवाज सुनाई दी मुझे पुकार रही थी,मेरे पैर और कुहनी छिल गये थे बैग कंधे से निकलकर दूर गिरा दिखा,मैं लड़खड़ाते कदमों से उसके पास गयी वो भी उठ बैठी हेलमेट की वजह से खास चोट नहीं आयी थी उसे बाँह पर कुरता फटकर झूल गया था गालों के पास रगड़ से खून निकल आया था।
अंजु हिम्मत बटोर कर मेरे सहारे उठी और स्कूटी को देखने लगी,घरों से छनकर आती मध्म रोशनी में देखने पर पता चला स्कूटी की हेडलाईट टूट गयी थी,हैंडिल भी टेढ़ा हो गया था।और कुछ दीख नही रहा था ।

उसने कहा," तू जा तेरी बस की हॉर्न सुनाई पड़ रही मैं भी चली जाऊँगी तू चिंता न कर।"

चप्पल ढूँढकर शरीर में होने वाली पीड़ा को जब्त कर जैसे दो आगे कदम बढ़ी चौंककर ठिठक गयी ।मैं चीख पडी़ तब तक अंजु भी आ गयी देखा सामने एक आदमी औंधें मुँह गिरा हुआ था निश्चल निःशब्द, मुझे चक्कर आ गया,अंजु भी घबरा गयी ,हम दोनों बहुत डर गये थे,पसीने से भींग गयी मैं हाथ पैर काँपने लगे अंजु ने कहा, "तू जा देख बस आ रही है"।मेरे मुँह से एक शब्द न निकला।
उस आदमी को वैसी ही हालत में छोड़कर बस में बैठकर  मैं कैसे घर पहुँची कुछ भी याद नहीं।माँ मेरी हालत देखकर परेशान थी लगातार पूछे जा रही क्या हुआ मैं बस इतना कह पायी कि गट्ठे में गिर पड़ी थी मैं, तबियत खराब हो गयी है कॉलेज में ही,  आराम कर लूँगी तो ठीक हो जाऊँगी। सारी रात छटपटाहट में बीती बार बार वो आदमी आँखों के सामने घूम जाता ,खुद को कोसती रही क्यूँ छोड़ आयी ऐसे हाल में उसे।अंजु सेे कोई संपर्क न हो पाया उस वक्त।

                सुबह सुबह पापा की बड़बड़ाहट सुनी, "जाने क्या हो गया है लोगों को कितने असंवेदनशील हो गये है.माँ ने पूछा तो जोर से पढ़कर  सुनाने लगे,

"अलकनंदा अपार्टमेंट के पीछे वाली गली में एक गरीब मज़दूर गंभीर घायल अवस्था में पाया गया।आधी रात को दस बजे अलकनंदा के सिक्योरिटी गार्ड लघुशंका के लिए जब गया तो इस मज़दूर को देखा फिर उसने पुलिस पेट्रोलिंग वाहन को सूचना दी उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। फिलहाल वो खतरे से बाहर है पर देर से अस्पताल पहुँचाने की वजह से पैर में लगी लगी चोट से खून ज्यादा बह गया टिटनेस का खतरा था इसलिए एक टाँग काट दी गयी है उसके परिवार में उसकी अंधी बूढ़ी माँ के अलावा बीबी और दो छोटी बेटियाँ है।"

    मुझे समझ न आया कि उसके ज़िदा होने कि खबर पे खुश होऊँ या उसके अपाहिज होने का शोक मनाऊँ।किसी से मन का ये बोझ नहीं बाँट पायी।फिर परीक्षा मे डुबो लिया खुद को ,बाद में अंजू.से शादी के समय मिली पर इस बारे में बात नहीं हो पायी और उसकी शादी के बाद उससे सम्पर्क टूट गया।

            वक्त की तह में दब गयी थी ये दुर्घटना पर आज शाम की एक घटना ने फिर से मुझे वहीं लाकर खड़ा कर दिया।
दो सप्ताह के बाद रिश्तेदारी में एक शादी थी जिसमें मुझे सम्मिलित होना था, उसी के  लिए शॉपिग करने बाज़ार जा रही थी ।मुख्य मार्ग के किनारे एक जगह भीड़ देख ऑटो वाला रूक गया उत्सुकतावश मैं भी उतर गयी भीड़ के बीच में देखा तो एक रिक्शा चालक खून से लथपथ बेसुध पड़ा था। लोग बातें करने में मशगुल थे कुछ विडियो बना रहे थे पर मदद के लिए कोई पहल नहीं दीखी। मैंने अपने ऑटोरिक्शा वाले को कहा कि चलो इसे उठाओ तो वो बहाने बनाने लगा कहा,"फालतू पुलिस के लफड़े में फँसना मैडम।मुझे किसी की परवाह नहीं थी मैंने पक्का इरादा कर लिया कैसे भी इसे पहुँचाना है अस्पताल।मैंने वहाँ खडे़ लोगों से कहा ,"सोचो कल आपके परिवार के किसी सदस्य के साथ ऐसा हो जाये और कोई मदद न करे तो कैसा लगेगा??"एक दूसरा रिक्शावाला तैय्यार हो गया साथ चलने को एक दो लोग की मदद से ऑटो में लिटाकर उसे अस्पताल में भर्ती करवाया।पुलिस और अस्पताल की सारी प्रक्रिया पूरी करके घर लौट आयी। मन बहुत व्याकुल है।जाने वो बच पायेगा भी कि नहीं डॉक्टर कह रहे थे बहुत गंभीर हालत है सिर पे चोट आयी है खून काफी बह गया है।खून चढ़ाना पड़ेगा,मेरा ब्लड ग्रुप O+ है सो काम आ गया।
       अचानक सेलफोन का रिंगटोन बजा मैं घबराये मन और थरथराते हाथों से फोन कान से लगाया उधर से आवाज़ आयी,"मैडम आपके पेशेंट को होश आ गया है अब वो खतरे से बाहर है।" पलकें गीली हो गयी,मन से जैसे कोई बोझ कम गया हो।
पूरब के आसमां की लाली मन का उजाला बनकर फैल गयी।

            #श्वेता🍁
   
 



मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...