Tuesday 14 March 2017

एक ख्वाब

ओ हसीन तन्हा चाँद
ओ झिलमिल सितारों
उतर आओ जमीं पर
रात के खामोश दामन पर
महफिल हम जमायेगे
चंदा तुम फूलों को चूमकर
अपनी दिल की बात कहना
सितारे मुंडेरों पर जगमगायेगे
मेरे पलकों के सारे ख्वाब
होठों पे मुस्कुरायेगे
कुछ चाँदनी हँसकर बिखरे
कुछ तारे दर्द के छिटके
फिर सारे सपने थककर
नम यादों के तकिये से लिपटे
उनींदी रात के सर्द
आगोश में सो जायेगे

     #श्वेता🍁

Sunday 12 March 2017

होली के रंग

हृदय भरा उल्लास 
हथेलियों में मल रंग लिये,
सुगंधहीन पलाश बिखरी 
तन में मादक गंध लिये।

जला के ईष्या,द्वेष की होलिका
राख मले मतवारे,
रंग-गुलाल भरी पिचकारी
निकले अपने संग लिये।

फगुआ छेड़े पवन बसंती 
नाचे झूमे सखियाँ सारी,
लाल,गुलाबी,हरे,बैंगनी 
मुख इंद्रधनुष सतरंग लिये।

रंगों ने धो दिये कलुषित मन 
न किसी से कोई वैर रहे,
 एक राग में थिरके तन-मन 
झूमे प्रेम उमंग लिये।

गुझिया,मालपुआ रसीली 
पकवानों की दावत है,
बाल वृंद भी इत-उत डोले 
किलकारी हुड़दंग लिये।

अवनि से अंबर तक बरसे 
रंग-अबीर,गुलाल-पिचकारी,
मन मकरंद बौराये रह-रह  
  रंगों का गुलकंद लिये...।

                                                    
    ---श्वेता सिन्हा



Friday 10 March 2017

आँख में पानी रखो


आँख में थोड़ा पानी होठों पे चिंगारी रखो
ज़िदा रहने को ज़िदादिली बहुत सारी रखो

राह में मिलेगे रोड़े,पत्थर और काँटें भी बहुत
सामना कर हर बाधा का सफर  जारी रखो

कौन भला क्या छीन सकता है तुमसे तुम्हारा
खुद पर भरोसा रखकर मौत से यारी रखो

न बनाओ ईमान को हल्का सब उड़ा ही देगे
अपने कर्म पर सच्चाई का पत्थर भारी रखो

गुजरते वक्त फिर न लौटेगे कभी ये ध्यान रहे
एक एक पल को जीने की पूरी तैयारी रखो

      #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...