Thursday 11 May 2017

बेबसी


ऊफ्फ्...कितनी तेज धूप है.....बड़बड़ाती दुपट्टे से पसीना पोंछती मैं शॉप से बाहर आ गयी।इतनी झुलसाती गरमी में घर से बाहर निकलने का शौक नहीं था....मजबूरीवश निकलना पड़ा था....
माँ की जरूरी दवा खत्म हो गयी थी इसलिए आना जरूरी था।
सुनसान दोपहर में वीरान सड़को को जलाती धूप और शरीर की हड्डी तक गला डाले ऐसी लू चल रही ।मेरे शहर का पारा वैसे भी अपेक्षाकृत चढ़ा ही रहता है।
   तेजी से कदम बढ़ाती सोच ही रही थी कोई रिक्शा या ऑटो मिल जाता....तभी मेरे सामने आकर ऑटो रूकी। ओहह ये तो मेरे ही एरिया के ऑटो वाले भैय्या थे।मैं मन ही राहत महसूस करती बैठ गयी।गली से थोड़ी दूर मेन रोड पर उन्होनें उतार दिया,उनका मकान दूसरी तरफ बस्ती में था।
      मन ही मन सोचती अभी घर जाकर आराम से ए.सी चलाकर फ्रिज से लस्सी निकालकर बैठेगे।अभी चार कदम चली ही थी कि
रोने आवाज़ सुनी....मैं चौंक कर देखने लगी अभी कौन ऐसे रो रहा....देखा तो वही एक चार मंजिला फ्लैट के नीचे कोने में खड़ी एक लड़की सुबक सुबक कर रो रही है।
पहले तो मैंने अनदेखा किया और आगे बढ़ गयी पर फिर रहा न गया वापस आई चुपचाप उसके पास खडी हो गयी।वो लगातार रोये जा रही थी।छः- सात साल की लड़की थी वो,घुटने तक सफेद फूलों वाली फ्रॉक पहने...जो मटमैले से हो रहे थे...पीठ की तरफ चेन खराब हो गयी थी....इसलिए उघड़ी हुयी थी आधी पीठ तक....
बिखरे भूरे पसीने से लथपथ बाल मुँह पे झूल रहे थे जिसे वो बार बार हटा रही थी....जलती धरती पर सहज रूप पर नंगे पाँव खडी रोये जा रही थी। हाथों  की कसकर मुट्ठियाँ बाँधे कर सीने से लगाये हुए थी।
 मुझे खड़ा पाकर उसने एक क्षण को रोती लाल आँखों से मासूमियत भरकर मेरी ओर देखा और फिर सुबकने लगी।
मेरे पास पानी की बोतल थी जो अब मौसम की तरह गरम हो गयी थी।पर मैंने उससे कहा वो पी ले।उसने सिर न में हिलाया...
फिर मैंने पूछा,क्यों रो रही हो ।तीन चार बार पूछने पर जो कहा वो अन्तर्मन तक चुभ गया।
उसने कहा उसके बापू रिक्शा चलाते है आज पैसा मिला है न उधर से ही पीकर आये है....उन्हें एक पाउच दारु और चाहिए और एक बंडल बीड़ी भी....उन्होंने पैसे दिये है उसे ये सब लाने को....उसने मना किया तो बहुत मारा और बाहर निकाल दिया घर से.....।।कहा जब तक दारु नहीं लाना घर मत आना...।लेकिन वो दारु के ठेके में जाना नहीं चाहती क्योंकि वहाँ भोला है न वो उसको तंग करता है।
उसकी फ्रॉक खींचता है....गालों पर चुटकी काटता है और वो ऐसा करने को मना करती है तो दो चार चाँटे भी लगा देता है। उसकी बात सुनकर मैं सुन्न पड़ गयी।समझ नहीं आया क्या कहूँ....किसे समझाऊँ......उस मासूम को ,उसके शराबी पिता को,ठेके वाले भोला को किसे कहूँ.....मन में विचारों का बबंडर लिये थके कदमों से वापस लौट आयी घर ।

       #श्वेता🍁

Wednesday 10 May 2017

कभी यूँ भी तो हो

कभी यूँ भी तो हो....

साँझ की मुँडेर पे चुपचाप
तेरे गीत गुनगुनाते हुए
बंद कर पलको की चिलमन को
एहसास की चादर ओढ़
तेरे ख्याल में खो जाये
हवा के झोंके से तन सिहरे
जुल्फें मेरी खुलकर बिखरे
तस्व्वुर में अक्स तेरा हो
और ख्यालों से निकल कर
सामने तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो.....

बरसती हो चाँदनी तन्हा रात में
हाथों में हाथ थामे बैठे हम
सारी रात चाँद के आँगन में
साँसों की गरमाहट से
सितारें पिघलकर टपके
फूलों की पंखुडियाँ जगमगाये
आँखों में खोये रहे हम
न होश रहे कुछ भी
और ख्वाब सारे उस पल में
सच हो जाए

कभी यूँ भी तो हो...

     #श्वेता🍁

ख्याल आपके

ख़्वाहिश जैसे ही ख़्याल आपके।
आँखें पूछे लाखों सवाल आपके।।

अब तक खुशबू से महक रहे है,
फूल बन गये है रूमाल आपके।

सुरुर बन चढ़ गये जेहन के जीने,
काश कि न उतरे जमाल आपके।

कर गये घायल लफ़्ज़ों से छु्कर,
मन को भा रहे है कमाल आपके।

दिल की ज़िद है धड़कना छोड़ दे,
न हो जिस पल में ख़्याल आपके।


#श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...