Wednesday 19 July 2017

ख्यालों का चूल्हा


जगे मन के अनगिनत
परतों के नीचे
जलता रहता है
अनवरत ख्यालों का चूल्हा,
जिस पर बनते हैंं,
पके,अधपके,नमकीन,
मीठे,तीखे ,चटपटे ,जले
बिगड़े ,अधकच्चे
विचारों के व्यंजन,
जिससे पल-पल
बदलता रहता है मिज़ाज
और मिलता रहता है
हर बार एक नया स्वाद
ज़िंंदगी को।
ख़्यालों की भट्टी की धीमी
आँच पर
सुलगते है
कोमल एहसास,
असंख्य ज़ज़्बात के पन्ने
और उनके सुनहरे
लपटों में सेेंंके जाते हैंं
चाश्नी से तरबतर रिश्ते
बहुत एतिहात से
ताकि बनी रहे मिठास
ज़िंदगी की कडुवाहटों की थाली मेंं।
न बुझने दीजिए
ख्यालों के सोंधे चूल्हे
बार-बार नयी हसरतों
की लकड़ी डालकर
आँच जलाये रहिये
ताकि फैलती रहे
नयी पकवानों की खुशबू
और बनी रहे भूख
ज़िंदगी का
एक टुकड़ा चखने की।
    #श्वेता🍁

*चित्र साभार गूगल*

Tuesday 18 July 2017

बादल पर्वत पर ठहरे है

किरणों के बाल सुनहरे है
लुक छिप सूरज के पहरे है

कलकल करती जलधाराएँ
बादल पर्वत पर ठहरे है

धरती पे बिखरी रंगोली
सब इन्द्रधनुष के चेहरे है

रहती है अपने धुन में मगन
चिड़ियों के कान भी बहरे है

टिपटिप करती बूँदों से भरी
जो गरमी से सूखी नहरे है

चुप होकर छूती तनमन को
उस हवा के राज़ भी गहरे है




Monday 17 July 2017

हायकु



आवारा मन
भटके आस पास
बस तेरे ही

कोई न सही
पर हो सब तुम
मानते तो हो

तुम्हें सोचूँ न
ऐसा कोई पल हो
जाना ही नहीं

खुश रहो तो
तुमको देख कर
मुसकाऊँ मैं

बरस रही 
बूँद बूँद बरखा
नेह से भरी

श्वेत चुनर
रंगी प्रीत में तेरी
सतरंगी सी

अनंत तुम
महसूस होते हो
पल पल में

पास या दूर
फर्क नहीं पड़ता
एहसास हो

   #श्वेता🍁

व्यर्थ नहीं हूँ मैं

व्यर्थ नहीं हूँ मैं,
मुझसे ही तुम्हारा अर्थ है
धरा से अंबर तक फैले
मेरे आँचल में पनपते है
सारे सुनहरे स्वप्न तुम्हारे
मुझसे ही तो तुम समर्थ हो
स्त्री हूँ मैं,तुम्हारे होने की वजह
तुम्हारे जीवन के सबसे खूबसूरत
पड़ाव की संगिनी मैं,
हुस्न हूँ,रंग हूँ ,बहार हूँ
अदा हूँ ,खुशबू हूँ नशा हूँ
तुम्हारे लिए मन्नत का धागा बाँधती
एक एक खुशी के लिए रब के आगे,
अपनी झोली फैलाती
सुख समृद्धि को जाने कितने
टोटके अपनाती
लंबी उमर को व्रत ,उपवास से
ईश को रिझाती
तुम्हारे चौखट को मंदिर समझ
तुम्हें देव रूप मे सम्मान करती
मुहब्बत हूँ ,इबादत हूँ वफा हूँ
तुम्हारी राह के काँटे चुनती
मैं तुम्हारे चरणों का धूल हूँ,
अपने अस्तित्व को भूलकर
तुम में संपूर्ण हृदय से समाहित
तुम्हारी जीवन की नदी में
बूँद बूँद समर्पित मैं,
सिर्फ तुम्हारी इच्छा अनिच्छा
के डोर में झुलती
कठपुतली भर नहीं
"तुम भूल जाते हो क्यों
मैं मात्र एक तन नहीं,
नन्हीं इच्छाओं से भरा
एक कोमल मन भी हूँ।"

         #श्वेता🍁

Friday 14 July 2017

रात के सितारें

अंधेरे छत के कोने में खड़ी
आसमान की नीले चादर पर बिछी
नन्हें बूटे सितारों को देखती हूँ
उड़ते जुगनू के परों पर
आधे अधूरे ख्वाहिशें रखती
टूटते सितारों की चाह में
टकटकी बाँधे आकाशगंगा तकती हूँ
जो बीत गया है उन पलों के
पलकों पे मुस्कान ढ़ूढती हूँ
श्वेत श्याम हर लम्हे में
बस तुम्हें ही गुनती हूँ
क्या खोया क्या पाया
सब बेमानी सा लगे
जिस पल तेरे साथ मैं होती
मन के स्याह आसमान में
जब जब तेरे यादों के सितारे उभरते
बस तुझमें मगन पूरी रात
एक एक तारा गिनती हूँ
तुम होते हो न होकर भी
उस एहसास को जीती हूँ
     #श्वेता🍁


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...