Wednesday 23 August 2017

तीज

जय माता पार्वती जय हो बाबा शंकर
रख दीजे हाथ माथे कृपा करे हमपर
अटल सुहाग माँगे कर तीज व्रत हम
बना रहे जुग जुग साथ और सत सब
माँग का सिंदूर मेरा दम दम दमके
लाल हरी चुड़ियाँ खन खन खनके
प्रीत की सुगंध मेंहदी मह मह महके
बिछुआ पायल बजे छम छम छमके
सोलह सिंगार रूप लह लह लहके
बँधे खुशी आँचल में बरसे जमकर
जय माता पार्वती.........
पिया जी अँगना में स्वप्न दीप जलाई
सतरंगी सितारों से है रंगोली सजाई
सकल दुख संताप प्रभु चरण चढ़ाई
फूल मुसकाये गोदी में अरज लगाई
बना विश्वास रहे रामा यही है दुहाई
रहे पिया साथ मेरे मन से रमकर
जय माता पार्वती..........
जीवन की राहों में गाँठ एक जोड़ा
दुनिया जहान में ढूँढ लाए वर मोरा
नेह के नभ पिया मैं चाँद औ चकोरा
हाथ थाम चलूँ हिय प्रीत के हिलोरा
डोली में आई अब काँधे जाऊँ तोरा
प्रेम न पिया जी से भूल के  कमकर
जय माता पार्वती........
     #श्वेता🍁

Monday 21 August 2017

मैं रहूँ न रहूँ

फूलेंगे हरसिंगार
प्रकृति करेगी नित नये श्रृंगार
सूरज जोगी बनेगा
ओढ़ बादल डोलेगा द्वार द्वार
झाँकेगी भोर आसमाँ की खिड़की से
किरणें धरा को प्यार से चूमेगी
मैं रहूँ न रहूँ
मौसम की करवटों में
सिहरेगी मादक गुनगुनी धूप
पीपल की फुनगी पर
नवपात लजायेगी धर रक्तिम रूप
पपीहा, कोयल लगायेगे आवाज़
भँवर तितली रंगेगे मन के साज
फूट के नव कली महकेगी
मैं रहूँ न रहूँ
चार दिन बस चार दिन ही
मेरी कमी रूलायेगी
सजल नयनों में रिमझिम
अश्रुओं की बरखा आयेगी
थक कर किसी जीवन साँझ में
छोड़ चादर तन की चली जाऊँगी
मन की पाखी बनके उड़ उड़
यादों को सहलाऊँगी
अधर स्मित मुसकायेगे
मैं रहूँ न रहूँ
    #श्वेता🍁

Sunday 20 August 2017

हादसा


हंसते बोलते बतियाते लोग
पोटली में बँधे सफर की ख्वाहिशें
अपनों के साथ कुछ सपनों की बातें
अनजानों के साथ समसामयिक चर्चायें
अचार और पूरियों की गंध से भरे
कूपों में तृप्ति की डकार भरते
तरह तरह के रंग बिरंगे चादरों में
पाँव से कंधे तक ढके गर्दन निकाले
फोन,टैब पर मनोरंजन करते
कुशल क्षेम की खबर पहुँचाते
फुरसत के ये पल़ों को जीते
अपने सीटों के आरामदायक बिस्तर पर
हिलते डुलते आधे सोये जागे
माँ के आँचल से झाँकते
लजाते मनमोहक आँखों से बोलते
बेवजह खिलखिलाते
उछले कूदते रोते गाते लुभाते
नन्ही मासूम मुस्कान से रिझाते बच्चे
एक दूसरे को चोर निगाहों से देखते
अखबार पत्रिकाओं के बहाने से परिचय बनाते
सब प्रतीक्षा रत थे सफर के गंतव्य के लिए
ये सफर आखिरी बनेगा कौन जानता था
अचानक आए जलजले से
समय भी सहमकर थम गया कुछपल
चरमराकर लड़खड़ाते
चीखते थमते लोहे के पहिए बेपटरी
एक दूसरे के ऊपर चढ़े डिब्बे
सीना चीरते चीत्कारों से गूँज उठा
कराहों से पिघल जाए  पत्थर भी
चीखते मदद को पुकारते
बोगियों में दबे, आधे फँसे सुन्न होते तन
मिट्टी गर्द खून में लिथड़े
एक एक पल की साँस को लड़ते
बेकसूर लोगों के कातिल
अपंग तन का जीवनभर ढ़ोने को मजबूर
सहानुभूति के चार दिन और
जिल्लत को आजीवन झेलने को बेबस
इन आम लोगों के दर्द का जिम्मेदार
चंद नोटों के मुआवजे की चद्दर में
अपनी गलती ढकने की कोशिश करते
हवा में उड़ने वाले ओहदेदार
बड़ी बातें करते , हादसों की जाँच पर
कमिटियाँ बनाते एक दूसरे पर
आरोप प्रत्यारोप करते
समसामयिक कुकुरमुत्ते
खेद व्यक्त करते चार दिन में गायब हो जायेगे
और ज़िदगी फिर पटरी पर डगमगाती दौड़ेगी
ऐसे अनगित हादसे जारी रहेगे ,
सामर्थ्य वान, समृद्धशाली, डिजिटल भारत
की ओर कदम बढ़ाते
देश में ऐसी छोटी घटनाएँ आम जो है।
   #श्वेता

Friday 18 August 2017

युद्ध


       (1)
जीवन मानव का
हर पल एक युद्ध है
मन के अंतर्द्वन्द्व का
स्वयं के विरुद्ध स्वयं से
सत्य और असत्य के सीमा रेखा
पर झूलते असंख्य बातों को
घसीटकर अपने मन की अदालत में
खड़ा कर अपने मन मुताबिक
फैसला करते हम
धर्म अधर्म को तोलते छानते
आवश्यकताओं की छलनी में बारीक
फिर सहजता से घोषणा करते
महाज्ञानी बनकर क्या सही क्या गलत
हम ही अर्जुन और हम ही कृष्ण भी
जीवन के युद्ध में गांधारी बनकर भी
जीवित रहा जा सकता है
वक्त शकुनि की चाल में जकड़.कर भी
जीवन के लाक्षागृह में तपकर 
कुंदन बन बाहर निकलते है 
हर व्यूह को भेदते हुए
जीवन के अंतिम श्वास तक संघर्षरत
मानव जीवन.एक युद्ध ही है

          (2)
ऊँचे ओहदों पर आसीन
टाई सूट बूट से सुसज्जित 
माईक थामे बड़ी बातें करते
महिमंडन करते युद्ध का
विनाश का इतिहास बुनते
संवेदनहीन हाड़ मांस से बने 
स्वयं को भाग्यविधाता बताते 
पाषाण हृदय निर्विकार स्वार्थी लोग
देश के आत्मसम्मान के लिए
जंग की आवश्यकता पर 
आकर्षक भाषण देते 
मृत्यु का आहवाहन करते पदासीन लोग
युद्ध की गंध बहुत भयावह है
पटपटाकर मरते लोग
कीड़े की तरह छटपटाकर
एक एक अन्न.के दाने को तरसते
बूँद बूँद पानी को सूखे होंठ
अतिरिक्त टैक्स के बोझ से बेहाल
आम जनमानस
अपनों के खोने का दर्द झेलते
रोते बिसूरते बचे खुचे लोग
अगर विरोध करे युद्ध का 
देशद्रोही कहलायेगे
देशभक्ति की परीक्षा में अनुत्तीर्ण
राष्ट्रभक्त न होने के भय से मौन व्रत लिये
सोयी आत्मा को थपकी देते
हित अहित अनदेखी करते बुद्धिजीवी वर्ग
एक वर्ग जुटा होगा कम मेहनत से
ज्यादा से ज्यादा जान लेने की तरकीबों में
धरती की कोख बंजर करने को
धड़कनों.को गगनभेदी धमाकों और
टैंकों की शोर में रौंदते
लाशों के ढेर पर विजय शंख फूँकेगे
रक्त तिलक कर छाती फुलाकर नरमुड़ पहने
सर्वशक्तिमान होने का उद्घोष करेगे
शांतिप्रिय लोग बैठे गाल बजायेगे
कब तक नकारा जा सकता है सत्य को
युद्ध सदैव विनाश है 
पीढ़ियों तक भुगतेगे सज़ा 
इस महाप्रलय की अनदेखी का।

    #श्वेता🍁

Thursday 17 August 2017

तन्हाई के पल


तन्हाई के उस लम्हें में
जब तुम उग आते हो 
मेरे भीतर गहरी जड़े लिये
काँटों सी चुभती छटपटाहटों में भी
फैल जाती है भीनी भीनी
सुर्ख गुलाब की मादक सुगंध
आँखों में खिल जाते है
गुच्छों से भरे गुलमोहर
दूर तक पसर जाती है रंगीनियाँ
तुम्हारे एहसास में
सुगबुगाती गर्म साँसों से
टपक पड़ती है 
बूँदें दर्द भरी 
अनंत तक बिखरे 
ख्वाहिशों के रेगिस्तान में
लापता गुम होती
कभी भर जाते है लबालब
समन्दर एहसास के
ठाठें मारती उदास लहरें
प्यासे होंठों को छूकर कहती है
अबूझे खारेपन की कहानी
कभी ख्यालों को जीते तुम्हारे
संसार की सारी सीमाओं से
परे सुदूर कहीं आकाश गंगा
की नीरवता में मिलते है मन
तिरोहित कर सारे दुख दर्द चिंता
हमारे बीच का अजनबीपन
शून्य में भर देते है खिलखिलाहट
असंख्य स्वप्न के नन्हे बीज
जिसके रंगीन फूल
बन जाते है पल पल को जीने की वजह
तुम्हारी एक मुस्कान से
इंन्द्रधनुष भर जाता है 
अंधेरे कमरे में
चटख लाल होने लगती है 
जूही की स्निग्ध कलियाँ
लिपटने लगती है हँसती हवाएँ
मैं शरमाने लगती हूँ
छुप जाना चाहती हूँ 
अपनी हरी चुड़ियों
और मेंहदी के बेलबूटे कढ़े 
हथेलियों के पीछे 
खींचकर परदा 
गुलाबी दुपट्टे का 
छुपछुप कर देखना चाहती हूँ
तन्हाई के उसपल में
चुरा कर रख लेना चाहती हूँ तुम्हें
बेशकीमती खज़ाने सा
तुम्हे समेटकर अपनी पलकों पर
सहेजकर हर लम्हें का टुकड़ा
बस तुम्हें पा लेना चाहती हूँ
कभी न खोने के लिए।


#श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...