Monday 4 September 2017

मधु भरे थे

जद्दोज़हद में जीने की, हम तो जीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

बचपन अल्हड़पन में बीता, औ यौवन मदहोशी में
सपने चुनते आया बुढ़ापा, वक्त ढला खामाशी में।
ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

आसमान के तोड़ सितारे, ख़ूब संजोये आँगन में
बंद हुये कमरों में ऐसे, सूखे रह गये सावन में।
गिनते रहे राह के काँटे, फूल मिले जो भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।

बरसों बाद है देखा शीशा, खुद को न पहचान सके
बदली सूरत दिल की इतनी, कब कैसे न जान सके।
धुँधले पड़ गये सफ़हे सारे, बंध अश्क़ के फूट गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
                                             #श्वेता🍁

Saturday 2 September 2017

देहरी

चित्र- साभार गूगल

तन और मन की
देहरी के बीच
भावों के उफनते
अथाह उद्वेगों के ज्वार 
सिर पटकते रहते है।
देहरी पर खड़ा
अपनी मनचाही
इच्छाओं को 
पाने को आतुर
चंचल मन,
अपनी सहुलियत के
हिसाब से
तोड़कर देहरी की 
मर्यादा पर रखी
हर ईंट
बनाना चाहता है
नयी देहरी 
भूल कर वर्जनाएँ
भँवर में उलझ
मादक गंध में बौराया
अवश छूने को 
मरीचिका के पुष्प
अंजुरी भर
तृप्ति की चाह लिये
अतृप्ति के अनंत
प्यास में तड़पता है
नादान है कितना
समझना नहीं चाहता
देहरी के बंधन से
व्याकुल मन
उन्मुक्त नभ सरित के
अमृत जल पीकर भी
घट मन की इच्छाओं का
रिक्त ही रहेगा।

    #श्वेता🍁


Thursday 31 August 2017

क्षणिकाएँ

ख्वाहिशें
रक्तबीज सी
पनपती रहती है
जीवनभर,
मन अतृप्ति में कराहता
बिसूरता रहता है
अंतिम श्वास तक।

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मौन
ब्रह्मांड के कण कण
में निहित।
अभिव्यक्ति
होठों से कानों तक
सीमित नहीं,
अंतर्मन के
विचारों के चिरस्थायी शोर में
मौन कोई नहीं हो सकता है।

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दुख
मानव मन का
स्थायी निवासी है
रह रह कर सताता है
परिस्थितियों को
मनमुताबिक
न देखकर।

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बंधन
हृदय को जोड़ता
अदृश्य मर्यादा की डोर है।
प्रकृति के नियम को
संतुलित और संयमित
रखने के लिए।

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दर्पण
छलावा है
सिवाय स्वयं के
कोई नहीं जानता
अपने मन के
शीशे में उभरे
श्वेत श्याम मनोभावों को।

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श्वेता🍁



Wednesday 30 August 2017

उनकी याद

*चित्र साभार गूगल*
तन्हाई में छा रही है उनकी याद
देर तक तड़पा रही है उनकी याद

काश कि उनको एहसास होता
कितना सता रही है उनकी याद

एक कतरा धूप की आस में बैठी
मौन कपकपा रही है उनकी याद

रख लूँ लाख मशरूफ खुद को
जे़हन में छा रही है उनकी याद

साथ घूमने ख्वाब की गलियों में
बार बार ले जा रही है उनकी याद

रूला कर ज़ार ज़ार सौ बार देखो
बेशरम मुस्कुरा रही है उसकी याद

बना लूँ दिल भी पत्थर का मगर
मोम सा पिघला रही है उनकी याद

   #श्वेता🍁

Tuesday 29 August 2017

जाते हो तो....


जाते हो तो साथ अपनी यादें भी लेकर जाया करो
पल पल जी तड़पा के  आँसू बनकर न आया करो

चाहकर भी जाने क्यों
खिलखिला नहीं पाती हूँ
बेचैनियों को परे हटा
तुम बिन  धड़कनों का
सिलसिला नहीं पाती हूँ
भारी गीली पलकों का
बोझ उठा नहीं पाती हूँ

फूल,भँवर,तितली,चाँद में तुम दिखते हो चौबारों में
पानी में लिखूँ नाम तेरा,तेरी तस्वीर बनाऊँ दीवारों में

दिन दिन भर बेकल बेबस
गुमसुम बैठी सोचूँ तुमको
तुम बन बैठे हो प्राण मेरे
हिय से कैसे नोचूँ तुझको
गम़ बन बह जा आँखों से
होठों से पी पोछूँ तुझको

सूनी सुनी सी राहों में पल पल तेरा रस्ता देखूँ
दुआ में तेरी खुशी माँगू  तुझको मैं हँसता देखूँ

चाहकर ये उदासी कम न हो
क्यूँ प्रीत इतना निर्मोही है
इक तुम ही दिल को भाते हो
तुम सा क्यूँ न कोई है
दिन गिनगिन कर आँखें भी
कई रातों से न सोई है

तुम  हो न  हो तेरा प्यार  इस  दिल का  हिस्सा है
अब तो जीवन का हर पन्ना बस तेरा ही किस्सा है

   #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...