Monday 11 September 2017

चाँद

*चित्र साभार गूगल*
मुक्तक

चाँद आसमान से बातें करता ऊँघने लगा
अलसाकर बादलों के पीछे आँखें मूँदने लगा
नीरवता रात की मुस्कुरायी सितारों को चूमकर
ख्वाबों मे हुई आहट फिजां में संगीत गूँजने लगा
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चाँदनी रातों को अक्सर छत पे चले जाते है
वो भी देखते होगे चंदा सोच सोच मुस्कुराते है
पलकों के पिटारे मे बंद कर ख्वाब नशीले
रेशमी यादों के आगोश में गुम हम सो जाते है
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झर झर झरती चाँदनी मुझसे है बतियाए
वो बैठा तेरे छाँव तले चँदनियाँ उसको भाए
गुन गुन करते पवन झकोरे तन मेरा छू जाए
उसकी याद की मीठी सिहरन मन मेरा बौराए
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चाँदनी के धागों से स्याह आसमान पे पैगाम लिखा है
दिल की आँखों से पढ़ लो संदेशा एक खास लिखा है
पी लो धवल चाँद का रस ख्यालों के वरक लपेटकर
सुनहरे ख्वाब मे मुस्कुराने को अपने एहसास लिखा है

          #श्वेता🍁




Sunday 10 September 2017

ज़िदगी

हाथों से वक़्त के रही फिसलती ज़िदगी
मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी

लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम
हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ज़िदगी

दाखिल हुये जज़ीरे में एहसास है नये
पीकर के आब-ए-इश्क है मचलती ज़िदगी

मीठी नहीं हैं उम्र की मासूम झिड़कियाँ
आँखों की दरारों से आ छलकती ज़िदगी

करने लगी तालाब पे आबोहवा असर
मछलियों की साँस सी तड़पती ज़िदगी

बिकने लगे मुखौटे भी हर इक दुकान पर
बेमोल लगी मौत में बदलती ज़िदगी

आते नहीं परिंदे भी जबसे हुई ख़िज़ाँ
सूखे शजर की साँस-साँस ढलती ज़िंदगी

       #श्वेता🍁

Friday 8 September 2017

मानवता की तलाश


धर्म,जातिऔर पार्टी के
आधार पर कर्मों को
अपने हिसाब से
विचारों के तराजू पर
व्यवस्थित कर तोलते,
एक एक दाने को 
मसल मसल कर
कंकड़ ढूँढते, 
पाप पुण्य सही गलत
के बही खाते में
जोड़ घटाव करते,
किसी के जीवन के
अंत पर अट्टहास करते
नर से पिशाच मे बदलते मानव,
इंसानियत से सरोकार नहीं
पहनकर खाल भेड़ की
निर्दयी रक्त पिपासु भेड़िये,
क्रांति की आड़ में 
जलाते देश का सुकून
धर्मग्रंथ का चश्मा पहने,
पकड़े दृढ़ संकल्प का चाकू
इंसान को कंकाल मे बदलने का,
पीठ पर बाँध कर चलते
सच की बुझी हुई मशालें
उठती आवाज़ों को बंद कर
कब्रों की लिजलिजी मिट्टी में
ठोककर ख़ामोशी की कील
ढ़ोग की श्रद्धांजलि चढ़ाते,
बदलते ज़माने के नगाड़े 
की कानफोडू आवाज़ में
बेबस,लाचारों के निरर्थक नारे,
 जुलूस में कुचली रोटियों को
चुनने में लहुलुहान मनुष्यता,
मानवता की तलाश में आज
टटोलते है पत्थर बने इंसानों
की सोयी ज़मीरों को।

    #श्वेता

साझा संकलन 'सबरंग क्षितिज' में प्रकाशित।

Thursday 7 September 2017

मोहब्बत की रस्में

*चित्र साभार गूगल*

मोहब्बत की रस्में अदा कर चुके हम
मिटाकर के ख़ुद को वफ़ा कर चुके हम

इबादत में कुछ और दिखता नहीं है

सज़दे में उन को ख़ुदा कर चुके हम

ये  कैसी  ख़ु
मारी  में  भूले  ज़माना
कितनों को जाने खफ़ा कर चुके हम

बड़े बेरहम,बेमुरव्वत हो जानम

शिकवा ये कितनी दफ़ा कर चुके हम

जाता नहीं दर्द दिल का है भारी

हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम


      #श्वेता🍁

Wednesday 6 September 2017

घोलकर तेरे एहसास


अश्आर
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घोलकर तेरे एहसास जेहन की वादियों में
मुस्कुराती हूँ तेरे नाम के गुलाब खिलने पर

तेरा ख्याल धड़कनों की ताल पर गूँजता है
गुनगुनाते हो साँसों में जीवन रागिनी बनकर

तन्हाई के आगोश में लिपटी रिमझिम यादें
भींगो जाती है कोना कोना मन के आँगन का

खामोशियों में फैलती तेरी बातों की खुशबू
महक जाते है जज़्बात तुम्हें महसूस करके

जबसे बाँधा है गिरह तेरे दिल से मेरे दिल ने
कोई दूजा ख्वाब आता नहीं पलकों के दायरे में

         #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...