Friday 22 September 2017

हरसिंगार


नीरव निशा के प्रांगन में हैं
सर सर  मदमस्त बयार,
महकी वसुधा चहका आँगन
खिले हैं हरसिंगार।

निसृत अमृत बूँदे टपकी
जले चाँद की मुट्ठी से,
दूध में चुटकी केसर छटकी
धवल दमकती बट्टी से,
सुंदर रूप नयन को भाये
खिले हैं  हरसिंगार।

संग सितारे बोले हौले 
मौन है उसका गीत,
कूजित है हरित पात पर
पीर भरा संगीत,
लिपटे टहनी के अधरों से
खिले हैं हरसिंगार।

भोर किरण को छूकर चूमे
दूब के गीले छोर,
शापित देव न चरण चढ़े
व्यथित छलकती कोर,
रवि चंदा के मिलन पे बिछड़े
खिले है हरसिंगार।

#श्वेता🍁

Thursday 21 September 2017

भगवती नमन है आपको

जय माता की🍁
शक्तिरूपा जगतव्यापिनी, भगवती नमन है आपको।
तेजोमय स्वधा महामायी ,भगवती  नमन है आपको।

दिव्य रूप से मोहती, मुख प्रखर रश्मि पुंज है
विकराल ज्वाला जागती ,नयनों में अग्नि खंज है
मंद मंद मुस्काती छवि तेरी विश्वमोहिनी ओज है
पतित पावनी उद्धारणी ,भगवती नमन है आपको।

खड्,त्रिशूल खप्पर कर लिये माँ दुष्टों को है संहारती
महाकालिका का रूप बन, चण्ड मुण्ड गले में धारती
सिंह पर सवार माँ दस भुजी,दानव को है ललकारती
हुंकारती महिषामर्दिनी  ,भगवती नमन है आपको।

किस रूप का वर्णन करूँ किस कथा का स्तवन करूँ 
ऊँ कार के आदि अनन्त तक, शब्दों का मोह जाल तू
कण कण में व्यापित माँ भवानी हर जीव में है प्राण तू
सर्व  ज्ञान चक्षु प्रदायिनी, भगवती नमन है आपको।

विश्व में कल्याण करना जन जन के दुख का नाश करना
प्राणियों के हिय में माता करुणा दया बन वास करना
रोग,शोक जीवन समर में लड़ने का बल प्रदान करना
शुचि,शुद्ध कर दो हिय मेरा,भगवती नमन है आपको।

              #श्वेता🍁

Tuesday 19 September 2017

कास के फूल

शहर के बाहर खाली पड़े खेत खलिहानों में,बिछी रेशमी सफेद चादर देखकर मन मंत्रमुग्ध हो गया।जैसे बादल सैर पर निकल आये हो।लंबे लंबे घास के पौधे पर लगे नाजुक कास के फूल अद्भुत लग रहे थे। अनायास ही तुलसीदास की पंक्तियाँ याद आ गयी-

 ‘वर्षा विगत शरद रितु आई, देखहूं लक्ष्मण परम सुहाई,
  फूले कास सकल मही छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढा़ई'

     कास के फूल खिलने का मतलब बरसा ऋतु की विदाई और शरद का आगमन।मौसम अंगड़ाई लेने लगता है।हवा की गरमाहट नरम होने लगती है,मौसम सुहावना होने लगता है।


कास के फूल
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बादल की झोली से झरे है
बूँदे बरखा की लडि़यों से
बनकर बर्फ के धवल वन
पठारों पे खिले कास के फूल

झुंड घटा के धरती पर उतरे
सरित, तालाब,मैदान किनारे
हरित धरा का आँचल भरने
सफेद फूलों की टोकरी धरने
धवल पंखों की चादर ओढ़े
हौले मुसकाये कास के फूल

रेशमी नाजुक डोर में लिपटे
श्यामल फुनगी सितारे चिपटे
बड़ी अदा से अंगडाई ले
छुईमुई  रूई के फाहे उड़े
करने स्वागत नयी ऋतु का
खिलखिलाये कास के फूल

झूमे पवन संग लहराये 
चूमे धरा को  बलखाये
मुग्ध नयन हो सम्मोहित
बाँधे नुपुर बड़े घास खड़े
करते निर्जन को श्रृंगारित
है मदमाये कास के फूल

   #श्वेता🍁


Monday 18 September 2017

तकदीर की रेखा


वो जो फिरते है लोग
फटे चीथड़े लपेटे
मलिन चेहरे पर
निर्विकार भाव ओढ़े,
रूखे भूरे बिखरे
बालों का घोंसला ढोते,
नंगे पाँव , दोरंगे फटे जूते पहने
मटमैली पोटली को
छाती से चिपकाये
अनमोल खजाने सा,
निर्निमेष ताकते
आते जाते लोगों को,
खुद में गुम कहीं
फेंकी गयी जूठन ढूँढते
निरूद्देश्य जीवन ढोते,
मासूम बिलबिलाते बच्चे
कचरे के ढेर में
खुशियाँ बीनते,
आवारा कुत्तों के संग
पत्तलों को साझा करते
खिलने से पहले मुरझाता बचपन,
सीने से कुपोषित बच्चे चिपकाये
चोर निगाहों से इधर उधर देखती
अधनंगी साँवली देह छुपाती
लालची,चोर का तमगा लगाये
बेबस लाचार औरतें,
पेट कमर पर चिपकाये
एक एक कदम घसीटते
ज़िदगी की साँसें गिनते,
कब्र में पैर लटकाये
वक्त की मार सहते असहाय बूढ़े ,
चारकोल के मौन सड़क
किनारों पर खडे
धूल, गर्द सें सने पेड़,
मैदानों के कोने में उगी घास
राह के कंकड़
की तरह उपेक्षित,
ये बेमतलब के लावारिस लोग
रब ने ही बनाए है,
शायद, हाथों में इनके
तकदीर की लकीर
खींचना भूल गया है।
जी चाहता है,
काँच के किसी जादुई टुकड़े से
हर एक के हथेलियों में
पलक झपकते खींच दूँ
खुशियों भरी तकदीर की रेखा।

                                #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...