Monday 9 October 2017

उम्र की हथेलियों से


नज़्म

ख़्वाहिशों के बोझ से  
दबी ज़िदगी की
सीली मुट्ठियों में बंद 
तुड़े-मुड़े परों की 
सतरंगी तितलियाँ
अक्सर कुलबुलाती हैंं
दरारों से उंगलियों की 
उलझकर रह जाती हैं।


ढककर हथेलियों से
सूरज की फीकी कतरनें
ढलती शाम के स्याह अंधेरों में
च़राग लिये ढूँढ़ते हैं
बुझे तारे ख़्वाहिशों के
जलाकर जगमगाने को
बोझिल ख़्वाबों की राहदारी को।


उमर की हथेलियों से
फिसलते लम्हों की
चंद गिनती की साँसों पर
तुम्हारी छुअन के महकते निशां हैं
भीगी पलकों के चिलमन में
गुनगुनाती तस्वीर तेरी
कसमसाती धड़कनों की
गूँजती ख़ामोश सदाओं में
एहसास के शरारे से
तन्हाइयों की गलियाँ रोशन हैं।

       #श्वेता🍁


Saturday 7 October 2017

तेरा साथ प्रिय

जीवन सिंधु की स्वाति बूँद
तुम चिरजीवी मैं क्षणभंगुर,
इस देह से परे मन बंधन में
मादक कुसुमित तेरा साथ प्रिय।

पल पल स्पंदित सम्मोहन
दृग छू ले तो होती सिहरन,
विह्वल उर की व्याकुलता
अंतस तृप्ति तेरा साथ प्रिय।

अव्यक्त व्यक्त भावों का गीत
विस्मृत स्वप्नों के तुम मनमीत,
कंटक से भरे जीवन पथ पर
मृदु मोरपंखी तेरा साथ प्रिय।

स्वर्ण मृग जग छलती माया में
क्षण क्षण मिटती इस काया में,
निशि कानन के विस्तृत अंचल 
रवि किरणों सा तेरा साथ प्रिय।

    श्वेता🍁



Wednesday 4 October 2017

आँख के आँसू छुपाकर


आँख के आँसू छुपाकर
मीठी नदी की धार लिखना,
घोंटकर के रूदन कंठ में
खुशियों का ही सार लिखना।

सूखते सपनों के बिचड़े
रोपकर मुस्कान लिखना,
लूटते अस्मत को ढककर
बातों के आख्यान लिखना,
बुझ गये चूल्हों पर लोटते
बदन के अंगार लिखना।

कब्र बने खेतों की माटी में
लहलहाते फसल लिखना,
कटते वन पेड़ों के ठूँठों पर
खिलखिलाती गज़ल लिखना,
वनपखेरू बींधते आखेटकों का
प्रकृति से अभिसार लिखना।

दूधमुँहों से छीनी क्षीर पर
दान,गर्व का स्पर्श लिखना,
लथपथे जिस्मों के खूं पर
राष्ट्र का उत्कर्ष लिखना,
गोलियों से छलनी बदन पर
रूपयों की बौछार लिखना।

देशभक्त कहलवाना है तो
न कोई तुम अधिकार लिखना,
न भूलकर लिखना दर्द तुम
न वोटों का व्यापार लिखना,
फटे जेब में सपने भरे हो
उस देश का त्योहार लिखना।

      #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...