Wednesday 18 October 2017

शहीद....हायकु

हमारे लिए
दीवार बने खड़े
वीर जवान

बुझा दीपक
शहीद के घर में
कैसी दिवाली

जला के दीप
शहीदों के नाम पे
सम्मान देना

माँ बाबू रोये
अंधियारा छाया है
अँगना आज

भींगी रंगोली
अँसुवन की धार 
जीवन सूना

वीर शहीद
तारे बन चमके
दीवाली रात

मातृभूमि का
हृदय से मान ही 
श्रद्धांजलि है


Tuesday 17 October 2017

दीवाली

1)
लड़ियाँ नेह के धागों वाली,
झड़ियाँ हँसी ठहाकों वाली।

जगमग घर का कोना-कोना,
कलियाँ मन के तारों वाली।

रंग-रंगीली सजी रंगोली,
गुझिया मीठे पागों वाली।

घर-आँगन दमके चौबारा,
गलियाँ अल्हड़ साजों वाली।

एक दीवाली दिल को जोड़े,
खुशियाँ दिल के रागों वाली।

पूजन मात-पिता के प्रेम का
सखियाँ बहना भाबो वाली।

दीप जला ले प्रेमिल मन से,
बतियाँ हृदय के तागों वाली।

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2)
इतराई निशा पहनकर 
झिलमिल दीपक हार
आया है जगमग जगमग
यह दीपों का त्योहार

रंगोली सतरंग सुवासित
बने गेंदा चमेली बंदनवार
किलके बालवृंद घर आँगन
महकी खुशियाँ अपरम्पार

मिट जाये तम जीवन से
लक्ष्मी माँ दे दो वरदान
हर लूँ निर्धनता हर घर से
हर होंठ खिले मुस्कान

भर भरकर मुट्ठी तारों से 
भरना उन बाड़ी बस्ती में
दिन का सूरज भी न पहुँचे
निकले चाँद भी कश्ती में

इस दीवाली बन जाऊँ दीया
फैलूँ प्रकाश बन सपनों की
विहसे मुख मलिन जब किलके
मैं साक्षी बनूँ उन अपनों की

   #श्वेता🍁

Sunday 15 October 2017

नयन बसे

नयन बसे घनश्याम,
मैं कैसे देखूँ जग संसार।
पलकें झुकाये सबसे छुपाये, 
बैठी घूँघटा डार।
मुख की लाली देखे न कोई,
छाये लाज अपार।
चुनरी सरकी मैं भी उलझी,
लट में उंगली डार।
कंगन चुड़ी गिन-गिन हारी,
बैरी रैन की मार।
जियरा डोले श्याम ही बोले,
हार विरह की रार।
सखिया छेड़े जिया जलाये,
लेके नाम तुम्हार।
न बूझै क्यों तू निर्मोही,
देखे न अँसुअन धार।
मन से बँध गयी नेह की डोरी,
तोसे प्रीत अपार।
मेरे मोह बंध जाओ न,
मैं समझाऊँ प्रेम का सार।
कुछ न चाहूँ हे,मुरलीधर,
कुछ पल साथ अपार।
करने को सर्वस्व समर्पण,
ले द्वार खड़ी उर हार।

      #श्वेता🍁

Saturday 14 October 2017

रोहिंग्या

रोहिंग्या
इस विषय पर आप क्या सोचते है...कृपया अपने विचारों से जरूर अवगत करवाये।
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कौन है रोहिंग्या मुसलमान

म्यांमार में करीब 8 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं और वे इस देश में सदियों से रहते आए हैं, लेकिन बर्मा के लोग और वहां की सरकार इन लोगों को अपना नागरिक नहीं मानती है। बिना किसी देश के इन रोहिंग्या लोगों को म्यांमार में भीषण दमन का सामना करना पड़ता है। बड़ी संख्या में रोहिंग्या लोग बांग्लादेश और थाईलैंड की सीमा पर स्थित शरणार्थी शिविरों में अमानवीय स्थितियों में रहने को विवश हैं। 
वर्ष 1785 में बर्मा के बौद्ध लोगों ने देश के दक्षिणी हिस्से अराकान पर कब्जा कर लिया। तब उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों को या तो इलाके से बाहर खदेड़ दिया या फिर उनकी हत्या कर दी। इस अवधि में अराकान के करीब 35 हजार लोग बंगाल भाग गए जो कि तब अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में था। वर्ष 1824 से लेकर 1826 तक चले एंग्लो-बर्मीज युद्ध के बाद 1826 में अराकान अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। रोहिंग्या मूल के मुस्लिमों और बंगालियों को प्रोत्साहित किया गया कि वे अराकान (राखिन) में बसें। स्थानीय बौद्ध राखिन लोगों में विद्वेष की भावना पनपी और तभी से जातीय तनाव पनपा जो कि अभी तक चल रहा है।

रोहिंग्या की स्थिति

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया में जापान के बढ़ते दबदबे से आतंकित अंग्रेजों ने अराकान छोड़ दिया और उनके हटते ही मुस्लिमों और बौद्ध लोगों में एक दूसरे का कत्ले आम करने की प्रतियोगिता शुरू हो गई। इस दौर में बहुत से रोहिंग्या मुस्लिमों को उम्मीद थी कि वे ‍अंग्रेजों से सुरक्षा और संरक्षण पा सकते हैं। इस कारण से इन लोगों ने एलाइड ताकतों के लिए जापानी सैनिकों की जासूसी की। जब जापानियों को यह बात पता लगी तो उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ यातनाएं देने, हत्याएं और बलात्कार करने का कार्यक्रम शुरू किया। इससे डर कर अराकान से लाखों रोहिंग्या मुस्लिम फिर एक बार बंगाल भाग गए। 
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्त‍ि और 1962 में जनरल नेविन के नेतृत्व में तख्तापलट की कार्रवाई के दौर में रोहिंग्या मुस्लिमों ने अराकान में एक अलग रोहिंग्या देश बनाने की मांग रखी, लेकिन तत्कालीन बर्मी सेना के शासन ने यांगून (पूर्व का रंगून) पर कब्जा करते ही अलगाववादी और गैर राजनीतिक दोनों ही प्रकार के रोहिंग्या लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। सैनिक शासन ने रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया और इन्हें बिना देश वाला (स्टेट लैस) बंगाली घोषित कर दिया।
तब से स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्टों में कहा गया है कि रोहिंग्या दुनिया के ऐसे अल्पसंख्यक लोग हैं, जिनका लगातार सबसे अधिक दमन किया गया है।
लोग सुन्नी इस्लाम को मानते हैं और बर्मा में इन पर सरकारी प्रतिबंधों के कारण ये पढ़-लिख भी नहीं पाते हैं तथा केवल बुनियादी इस्लामी तालीम हासिल कर पाते हैं। 
बर्मा के शासकों और सै‍‍न्य सत्ता ने इनका कई बार नरसंहार किया, इनकी बस्तियों को जलाया गया, इनकी जमीन को हड़प लिया गया, मस्जिदों को बर्बाद कर दिया गया और इन्हें देश से बाहर खदेड़ दिया गया। ऐसी स्थिति में ये बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं, थाईलैंड की सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसते हैं या फिर सीमा पर ही शिविर लगाकर बने रहते हैं। 1991-92 में दमन के दौर में करीब ढाई लाख रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए थे।
संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं रोहिंया लोगों की नारकीय स्थितियों के लिए म्यांमार की सरकारों को दोषी ठहराती रही हैं, लेकिन सरकारों पर कोई असर नहीं पड़ता है। पिछले बीस वर्षों के दौरान किसी भी रोहिंग्या स्कूल या मस्जिद की मरम्मत करने का आदेश नहीं दिया गया है।

भारत और रोहिंग्या

हमारे देश में सत्ता और विपक्षी दलों को एक दूसरे के किये हर काम का विरोध करने की परंपरा रही है। फिर बात जब मुसलमानों की आती है तो कोई भी मुद्दा ज्यादा गंभीर हो जाता है।
अभी म्यांमार से विस्थापित करीब छह हजार रोहिंग्या मुस्लिम दिल्ली, हैदराबाद और कुछ अन्य भारतीय शहरों में बेहद बेचारगी की जिंदगी जी रहे हैं।इन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा भी बताया जा रहा है।

मेरी सोच
पर,सरकार और दलों की राजनीतिक विचारों से अलग एक आम नागरिक की दृष्टि से सोचने पर मुझे यही समझ आता है कि, "अपने देश के नागरिकों की समस्याएँ कम नहीं,गरीब,भूख,आवास और,बेरोजगारी से देश का कौन सा हिस्सा अछूता है?? उसपर इन शरणार्थियों का बोझ हम कितना सह पायेगे??"अपनी थाली के भोजन से पेट का एक हिस्सा खाली रह जाता है कौन सा हिस्सा काट कर उनका पेट भरेगे।
जब कथित शरणार्थी यहाँ रहेगे तो इतने लोगों की मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के लिए आम जनता पर अतिरिक्त टैक्स का बोझ बढ़ेगा जिससे सामान्य जनता और भी परेशान होगी।बस मानवता,इंसानियत और एक धर्मनिरपेक्ष सर्वहितकारी देश का तमगा लेने के नाम पर हम अपने देश के जरूरतमंद जनता का निवाला छीन नहीं सकते ।शरणार्थियों की मदद करना और बात होगी एवं अपने देश में उनका स्वागत करना  दूसरी बात।माना ये दुखी और बहुत जरूरत मंद भी है, किंतु हमारे देश में भी ऐसे अनेक जरूरत मंद है कृपया पहले उनकी समस्याओं का समाधान कीजिए।

यहाँ मेरी इस स्वार्थी सोच से शायद बहुत से लोग सहमत न हो आलोचना करे कि," मैंने  मजबूर ,लाचार, हालात के मारे उन शरणार्थियों प्रति मानवता और इंसानियत को परे रख दिया है।"
मुझे भी उनके लिए सहानुभूति है जो संभव हो उस मदद के पक्ष में भी हूँ। जरूर उनको उनका अधिकार मिलना चाहिए,परंतु उदारवादी,परोपकारी,और मानवतावादी सोच रखने वाला हमारा देश हमेशा ऐसे शरणार्थियों की वजह से परेशानी झेलता रहा है, फिर ऐसा ठीकरा हमारे ही देश में क्यूँ फूटे??

अच्छा हो अन्य सभी देश मिलकर इस बाबत बर्मा सरकार के साथ बैठकर कोई हल निकाले।उस पर दवाब डाले आखिर मूलतः वहाँ के निवासी है ये। यह सुझाव इतना आसान तो नहीं पर असंभव नहीं।पड़ोसी की मदद करना ही चाहिए,जहाँ तक मदद करना संभव हो।

कृपया,दलगत भावना ,हिंदु-मुसलमान के सांप्रदायिक सोच से ऊपर उठ कर देश हित के लिए एक बार गंभीरता से जरुर सोचियेगा कि क्या सही और क्या गलत है।

नोट: मेरा ये लेख किसी भी व्यक्ति, दल ,धर्म या जाति से प्रभावित नहीं ये मेरे व्यक्तिगत विचार है।


    #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...