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Saturday, 18 July 2020

तुम्हारे जन्मदिन पर


मैं नहीं सुनाना चाहती तुम्हें
दादी-नानी ,पुरखिन या समकालीन
स्त्रियों की कुंठाओं की कहानियां,
गर्भ में मार डाली गयी
भ्रूणों की सिसकियाँ
स्त्रियों के प्रति असम्मानजनक व्यवहार
समाज के दृष्टिकोण में
स्त्री-पुरूष का तुलनात्मक
मापदंड।

मैं नहीं भरना चाहती
तुम्हारे हृदय में
जाति,धर्म का पाखंड
आडंबरयुक्त परंपराओं की
कलुषिता 
घृणा,द्वेष,ईष्या जैसे
मानवीय अवगुण
एवं अन्य
सामाजिक विद्रूपताएं।

मैं बाँधना चाहती हूँ तुम्हारी
नाजुक उम्र की सपनीली
ओढ़नी में...
अंधेरे के कोर पर 
मुस्काती भोर की सुनहरी
किरणों का गुच्छा,
सुवासित हवाओं का झकोरा,
कुछ खूशबू से भरे फूलों के बाग
नभ का सबसे सुरक्षित टुकड़ा,
बादलों एवं सघन पेड़ों की छाँव,
चिड़ियों की मासूम,
बेपरवाह किलकारियाँ,
मुट्ठीभर सितारे,
सकोरा भर चाँदनी,
चाँद का सिरहाना,
सारंगी की धुन में झूमते
थार के ऊँट और 
बाँधनी के खिले रंग,
समुंदर की लहरों का संयम
शंख और सीपियाँ 
प्रकृति के शाश्वत उपहारों
से रंगना चाहती हूँ
तुम्हारे कच्चे सपनों के कोरे पृष्ठ
ताकि तुम्हारा कोमल हृदय
बिना आघात  समझ सके
जीवन सुंदरता,कोमलता और
विस्मयकारी विसंगतियों से युक्त
गूढ़ जटिलताओं का मिश्रण है।

भौतिक सुख-सुविधाओं से 
समृद्ध कर तुम्हें
सुखद कल्पनाओं का हिंडोला
दे तो सकती हूँ
किंतु मैं देना चाहती हूँ
सामान्य व्यवहारिक प्रश्न पत्र 
जिसे सुलझाते समय 
तुम जान सको
रिश्तों का गझिन गणित 
यथार्थ के मेल 
 की रासायनिक प्रतिक्रियाएँ
भावनाओं का भौतिकीय परिवर्तन
स्नेह के काव्यात्मक छंद
तर्क के आधार पर 
विकसित कर सको
सारे अनुभव जो तुम्हारी
क्षमताओं को सुदृढ कर
संघर्षों से जूझने के
योग्य बनाये।

सुनो बिटुआ,
सदैव की तरह
आज भी मैं दे न पायी तुम्हें
तुम्हारे जन्मदिन पर
कोई भी ऐसा उपहार
जो मेरा हृदय संतोष से भर सके
किंतु मुझे विश्वास है मैंने जो
बीज रोपे हैं तुम्हारे मन की
उर्वर क्यारी में उसपर
फूटेंग मानवीय गुणों के
पराग से लिपटे
 सुवासित पुष्प, 
मेरे आशीष 
मेरे अंतर्मन की
 शुभ प्रार्थनाओं और
कर्म की ज्योति 
प्रतिबिंबित  होकर  
पथ-प्रदर्शक बनकर 
आजीवन तुम्हारे
 साथ रहेंगे। 

©श्वेता सिन्हा
१८जुलाई२०२०

Wednesday, 15 July 2020

नैतिकता


उज्जवल चरित्र उदाहरणार्थ
जिन्हें लगाया गया था
सजावटी पुतलों की भाँति
पारदर्शी दीवारों के भीतर
लोगों के संपर्क से दूर
प्रदर्शनी में
पुरखों की बेशकीमती धरोहर की तरह,
ताकि ,विश्वास और श्रद्धा से नत रहे शीश,
किंतु सत्य की आँच से
दरके भारी शीशों से
बड़े-बड़े बुलबुले स्वार्थपरता के
ईमान के लचीलेपन पर 
अट्टहास कर
कर्म की दुर्बलता का
प्रमाण देने लगे।

असंतोष और विरोध,
प्रश्नों के बौछारों से
बौखलाकर,
आँखों से दूर सँकरे कोने में 
स्थानांतरित कर दी गयी 
चौराहे पर लगी
शिकायत पेटी
और...
एक हवन कुंड बना दिया गया
लोककल्याणकारी 
पवित्र यज्ञ का हवाला देकर
आह्वान कर 
सुखद स्वप्नों के
कुछ तर्कशील मंत्र पढ़े गये
किंतु
नवीन कुछ नहीं था
समिधाएँ बनी एक बार फिर
नैतिकता।

चुपचाप रहकर
अपने मंतव्यों के पतंग
कल्पनाओं के आसमान में ही
उड़ाना सुरक्षित है,
मनोनुकूल परिस्थितियाँ
बताने वाली
समयानुकूल घड़ियाँ
प्रचलन में हैं आजकल
चुप्पियों की मुर्दा कलाईयों में
बँधी सूईयों की टिक-टिक
ईनाम है 
निर्वासित आत्मा की 
समझदार देह के लिए।

#श्वेता सिन्हा
१५ जुलाई२०२०


Sunday, 12 July 2020

शांति



विश्व की प्राचीन 
एवं आधुनिक सभ्यताओं,
पुरातन एवं नवीन धर्मग्रंथों में,
पिछले हज़ारों वर्षों के 
इतिहास की किताबों में,
पिरामिड,मीनारों,कब्रों,
पुरातात्त्विक अवशेषों 
के साक्ष्यों में,
मानवता और धर्म की 
स्थापना के लिए,
कभी वर्चस्व और 
अनाधिकार आधिपत्य की
क्षुधा तृप्ति के लिए,
किये गये संहार एवं
युद्धों के विवरण से रंगे
रक्तिम पृष्ठों में  
श्लोको, ऋचाओं,
प्रेरणादायक उद्धरणों 
उपदेशों के सार में
जहाँ भी शांति 
का उल्लेख था
लगा दिया गया
'बुकमार्क'
ताकि शांति की महत्ता की
अमृत सूक्तियाँ
आत्मसात कर सके पीढ़ियाँ।

किंतु,
वीर,पराक्रमी और 
शौर्यवान देवतुल्य 
विजेताओं का महिमामंडन 
हिंसा-प्रतिहिंसा की कहानियाँ
प्रेम और शांति से ज्यादा आप्लावित हुई।
दुनियाभर के महानायकों के
ओजस्वी विचारों में
सम्मोहक कल्पनाओं में
'शांति' का अनुवाद
अपनी भाषा और 
अपने शब्दों में परिभाषित
करने का प्रयास, 
कर्म में स्थान न देकर
दैवीय और पूजनीय कहकर
यथार्थ जीवन से अदृश्य कर दिया गया।

अलौकिक रूप से विद्यमान
प्रकृति के सार तत्वों की तरह
शांति शब्द
सत्ताधीशों के समृद्ध शब्दकोश में
'हाइलाइटर' की तरह है
जिसका प्रयोग समय-समय पर
बौद्धिक समीकरणों में
उत्प्रेरक की तरह 
किया जाता है अब।

©श्वेता सिन्हा
१२ जुलाई २०२०