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Tuesday, 22 December 2020

विस्मृति ...#मन#

मन पर मढ़ी
ख़्यालों की जिल्द
स्मृतियों की उंगलियों के
छूते ही नयी हो जाती है,
डायरी के पन्नों पर 
जहाँ-तहाँ
बेख़्याली में लिखे गये
आधे-पूरे नाम 
पढ़-पढ़कर ख़्वाब बुनती
अधपकी नींद, 
एहसास की खुशबू से
छटपटायी बेसुध-सी
मतायी तितलियों की तरह
 जम चुके झील के 
 एकांत तट पर
उग आती हैं कंटीली उदासियाँ
सतह के भीतर
तड़पती मछलियों को
प्यास की तृप्ति के लिए
चाहिए ओकभर जल।

तारों की उनींदी
उबासियों से
आसमान का
बुझा-सा लगना,
मछलियों का
बतियाना,
पक्षियों का मौन 
होना,
उजाले से चुधियाईं आखों से
अंधेरे में देखने का
अनर्गल प्रयास करना,
बिना माप डिग्री के 
अक्षांश-देशांतर के
चुम्बकीय वलय में
अवश 
मन की धुरी के
इर्द-गिर्द निरंतर परिक्रमा
करते ग्रहों को निगलते 
क्षणिक ग्रहण
की तरह
प्रेम में विस्मृति
भ्रम है।

#श्वेता