tag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post1710510899967302579..comments2024-03-23T15:18:44.393+05:30Comments on मन के पाखी: हे प्रकृति...Sweta sinhahttp://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comBlogger60125tag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-62363444482218419792022-06-05T22:35:27.035+05:302022-06-05T22:35:27.035+05:30बहुत खूबसूरत प्रस्तुति बहुत खूबसूरत प्रस्तुति Bharti Dashttps://www.blogger.com/profile/04896714022745650542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-84274311492919462092022-06-05T11:55:56.971+05:302022-06-05T11:55:56.971+05:30वाह!!श्वेता ,दिल को छू गई अंदर तक । वैसे भी आप शब्...वाह!!श्वेता ,दिल को छू गई अंदर तक । वैसे भी आप शब्दों की जादूगरनी हो ...।अगर हम स्वयं को प्रकृति का अंश ही मान लें तो फिर बात ही क्या ,अस्तित्व को सार्थकता मिल ही जाएगी ।शुभा https://www.blogger.com/profile/09383843607690342317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-17048489284453513392022-06-05T11:50:39.127+05:302022-06-05T11:50:39.127+05:30तुम भी प्रकृति की एक काया हो , वृक्ष , चिड़िया , फस...तुम भी प्रकृति की एक काया हो , वृक्ष , चिड़िया , फसलें , प्रेम भाव सभी जैसे अपने अपने कर्म करते हैं वैसे ही तुम भी अपने कर्म कर रही हो जो तुमको उत्साहित नहीं कर रहे । बस सोच का यही अंतर है । प्रकृति ने तो अपने अंदर समाहित करके ही तुमको इस धरती का नागरिक बनाया है ।।<br />वैसे आत्म मंथन ज़बरदस्त है । विचारणीय रचनासंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-49621500683834243992022-06-04T12:55:25.947+05:302022-06-04T12:55:25.947+05:30आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द&q...<i><b> आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जून 2022 को साझा की गयी है....<a href="http://halchalwith5links.blogspot.com/" rel="nofollow"> <br />पाँच लिंकों का आनन्द पर </a>आप भी आइएगा....धन्यवाद! </b></i>yashoda Agrawalhttps://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-53097222516466868192022-03-03T14:50:44.160+05:302022-03-03T14:50:44.160+05:30हे प्रकृति!'------प्रकृति से विकल मन का मार्मि...हे प्रकृति!'------प्रकृति से विकल मन का मार्मिक संवाद है जिसमें प्रकृति से अधिकारपूर्वक सब कुछ लेकर,कर्तव्य रूप में कुछ भी न कर पाने की विवशता अंकित है।इस वेदना की समाप्ति काएकमात एकमात्र निवारण प्रकृति में समग्रता से लीन होना है रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-50497065108237007942021-06-15T23:25:30.314+05:302021-06-15T23:25:30.314+05:30हम आपको पढ़ने आए और आपकी लेखनी हमपर अपना प्रभाव न ड...हम आपको पढ़ने आए और आपकी लेखनी हमपर अपना प्रभाव न डाले यह तो असंभव सी बात है। आपको पढ़ते हुए अंतर में चल रही पुरानी हलचल कहीं गुम हो गई और एक नई हलचल ने जन्म ले लिया 😍...कुछ तो जादू है आपकी लेखनी में।<br />" धरती की नागरिकता "...यह कहकर तो बहुत कुछ कह गई आपकी लेखनी। एक अद्भुत सत्य जिसका बस कुछ लोगों को आभास है पर जानते सब हैं। प्रकृति में एकाकार होने का भाव आपके मन की पवित्रता और समदर्शिता का प्रमाण है। आपकी लेखनी को बारंबार प्रणाम है 🙏Anchal Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/13153099337060859598noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-62565930819925192762021-04-03T18:58:22.493+05:302021-04-03T18:58:22.493+05:30एक अविस्मरणीय अभिव्यक्ति।एक अविस्मरणीय अभिव्यक्ति।Meena sharmahttps://www.blogger.com/profile/17396639959790801461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-18149088886726389602021-03-18T23:45:18.003+05:302021-03-18T23:45:18.003+05:30प्रकृति और हम मनुष्यों की तुलना यदि सटीकता से की ज...प्रकृति और हम मनुष्यों की तुलना यदि सटीकता से की जाय तो समझ आता है कि हम कुछ भी नहीं<br />सोच और चिंतन से हमारा मैं प्रकृति के आगे नतमस्तक हो जाता है बुद्धि का अहम रखने वाले हम मनुष्य किसी भी तरफ से प्रकृति के सामने बहुत ही तुच्छ हैं। और फिर मन इस सच को हृदय से स्वीकारता है.... कि....<br />मुझको भी दी है <br />धरती की नागरिकता<br />अपने अधिकारों के<br />भावनात्मक पिंजरे में <br />फड़फड़ाती <br />जो न पा सकी उस<br />दुःख की गणना में<br />अपने मनुष्य जीवन के<br />कर्तव्यों को<br />पूरी निष्ठा से निभाने का शायद<br />ढोंग भर ही कर सकी। <br />बहुत ही चिन्तनपरक लाजवाब सृजन।Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-35205427730976995862021-03-14T18:22:28.750+05:302021-03-14T18:22:28.750+05:30सृष्टि ने
मुझको भी दी है
धरती की नागरिकता
अपने अध...सृष्टि ने<br />मुझको भी दी है <br />धरती की नागरिकता<br />अपने अधिकारों के<br />भावनात्मक पिंजरे में <br />फड़फड़ाती <br />जो न पा सकी उस<br />दुःख की गणना में<br />अपने मनुष्य जीवन के<br />कर्तव्यों को<br />पूरी निष्ठा से निभाने का शायद<br />ढोंग भर ही कर सकी। ----------------बहुत सुन्दर रचनाPRAKRITI DARSHANhttps://www.blogger.com/profile/10412459838166453272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-91247480779802913272021-03-14T09:09:12.398+05:302021-03-14T09:09:12.398+05:30बेहतरीन चित्रण, खूबसूरत रचना बेहतरीन चित्रण, खूबसूरत रचना Preeti Mishrahttps://www.blogger.com/profile/13642634669489250744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-75895397282210174002021-03-12T16:26:41.339+05:302021-03-12T16:26:41.339+05:30बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
बहुत सुन्दर सराहनीय रचना <br />आलोक सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/17318621512657549867noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-80380666064921567452021-03-12T16:25:18.316+05:302021-03-12T16:25:18.316+05:30बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।आलोक सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/17318621512657549867noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-67257427934667448362021-03-12T16:05:07.025+05:302021-03-12T16:05:07.025+05:30This comment has been removed by the author.आलोक सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/17318621512657549867noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-6682134410338071162021-03-11T21:56:18.722+05:302021-03-11T21:56:18.722+05:30बहुत बहुत आभारी हूँ.आदरणीय यशवंत जी।
स्वागत है आपक...बहुत बहुत आभारी हूँ.आदरणीय यशवंत जी।<br />स्वागत है आपका।<br />सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार.<br />सादर शुक्रिया।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-80517711880145970962021-03-11T21:55:05.990+05:302021-03-11T21:55:05.990+05:30बहुत आभारी हूँ हरीश जी।
सादर शुक्रिया।बहुत आभारी हूँ हरीश जी।<br />सादर शुक्रिया।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-3347483368137933932021-03-11T21:53:50.148+05:302021-03-11T21:53:50.148+05:30जी,
मेरी कविता का भाव विरोधाभासी और निराशावादी सोच...जी,<br />मेरी कविता का भाव विरोधाभासी और निराशावादी सोच आपके दृष्टिकोण से है परंतु मेरे विचार से आत्ममंथन से उत्पन्न भाव है जो मनुष्य को जीवन मरण से तटस्थ करते हैं।<br />वर्तमान, यथार्थ पर आपके तर्क तथ्यपूर्ण और विचारणीय हैं।<br />आपकी बतकही के अनुसार हीनग्रंथि का लेशमात्र विचार नहीं मेरी रचना में मात्र अपने कर्मों से असंतुष्टि ही है।<br />आपने बहुमूल्य समय दिया समीक्षा की बहुत बहुत आभारी हूँ।<br />आपकी प्रतिक्रिया सदैव मंथन को आमंत्रित करती हैं।<br />शुक्रिया आपका।<br /><br />सादर।<br />Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-62485317435603432292021-03-11T21:37:19.846+05:302021-03-11T21:37:19.846+05:30बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय ज्योति जी।
सस्नेह शुक्रि...बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय ज्योति जी।<br />सस्नेह शुक्रिया।<br />सादर।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-3720713466875330372021-03-11T21:36:59.598+05:302021-03-11T21:36:59.598+05:30बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय ज्योति जी।
सस्नेह शुक्रि...बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय ज्योति जी।<br />सस्नेह शुक्रिया।<br />सादर।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-67728276291441788612021-03-11T21:36:22.066+05:302021-03-11T21:36:22.066+05:30पलायनवादी नहीं है एक विचार और संवाद है प्रकृति और ...पलायनवादी नहीं है एक विचार और संवाद है प्रकृति और मानव मन के मध्य।<br />बहुत आभारी हूँ भाई आपकी शुभकामनाओं के लिए।<br />सस्नेह शुक्रिया।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-52651039946095374792021-03-11T21:34:18.722+05:302021-03-11T21:34:18.722+05:30बहुत बहुत आभारी हूँ.वीरेंद्र जी।
सादर शुक्रिया।बहुत बहुत आभारी हूँ.वीरेंद्र जी।<br />सादर शुक्रिया।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-2040674454121261882021-03-11T21:32:23.403+05:302021-03-11T21:32:23.403+05:30बहुत-बहुत आभारी हूँ भाई।
सादर शुक्रिया।बहुत-बहुत आभारी हूँ भाई।<br />सादर शुक्रिया।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-70155397339572634082021-03-11T21:31:35.754+05:302021-03-11T21:31:35.754+05:30बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
सादर प्रणाम।बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।<br /><br />सादर प्रणाम।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-10035218196000932822021-03-10T16:24:30.929+05:302021-03-10T16:24:30.929+05:30मर्मस्पर्शी रचना। प्रकृति जब अपने बंधन में बांधती ...मर्मस्पर्शी रचना। प्रकृति जब अपने बंधन में बांधती है तो उससे मुक्त होने की हम सिर्फ कामना ही कर सकते हैं, अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता। Yashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-54231585439832285572021-03-10T15:59:58.748+05:302021-03-10T15:59:58.748+05:30बहुत मार्मिक चित्रण... आपके इस रचना को पढ़ने के बा...बहुत मार्मिक चित्रण... आपके इस रचना को पढ़ने के बाद अच्छा लिखने की प्रेरणा मिली आपका धन्यवाद. कभी समय निकाल के मेरे ब्लॉग पे भी पधारे. हरीश कुमारhttps://www.blogger.com/profile/04868366103134574911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-84345288719513426252021-03-10T10:37:07.993+05:302021-03-10T10:37:07.993+05:30"अब जन्म-मरण के चक्र में
निरूद्देश्य और असंतु..."अब जन्म-मरण के चक्र में<br />निरूद्देश्य और असंतुष्ट भटकना <br />मुझे स्वीकार नहीं<br />हे प्रकृति!<br />मुझे बंधनों से मुक्त करो!<br />मुझे स्वयं में<br />एकाकार कर <br />मेरे अस्तित्व को<br />सार्थकता प्रदान करो।" - एक निराशावादी सोच और विरोधाभासी भी .. शायद ... "बंधन से मुक्ति" भी और "सार्थकता" भी !? <br />क़माल है, अन्योन्याश्रय सम्बन्ध में जो सार्थकता है, वो भला मुक्ति में कहाँ ? अपनी वर्त्तमान सार्थकता को कम आँकना एक भूल या भ्रम है .. शायद ... ऐसी सोचें स्वयं के साथ-साथ आसपास भी निराशा पनपाती है .. शायद ...<br />मेरी एक बतकही (?) "अन्योन्याश्रय रिश्ते" की चार पंक्तियाँ <br />"है नारी संबल प्रकृति-सी,<br />सार्थक पुरुष-जीवन तभी।<br />फिर क्यों नारी तेरे मन में <br />है भरी हीनता मनोग्रंथि ?" .. बस यूँ ही ... :)<br /><br />Subodh Sinhahttps://www.blogger.com/profile/05196073804127918337noreply@blogger.com