tag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post2007524428050767434..comments2024-03-23T15:18:44.393+05:30Comments on मन के पाखी: सीख क्यों न पाया?Sweta sinhahttp://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-55811529411295589412021-05-16T23:06:12.644+05:302021-05-16T23:06:12.644+05:30खूबसूरत चित्रणखूबसूरत चित्रणPreeti Mishrahttps://www.blogger.com/profile/13642634669489250744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-32164941133746599492021-05-16T10:59:53.341+05:302021-05-16T10:59:53.341+05:30सुंदर प्रस्तुतिसुंदर प्रस्तुतिOnkarhttps://www.blogger.com/profile/15549012098621516316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-3775118226575175742020-12-01T20:51:49.804+05:302020-12-01T20:51:49.804+05:30अति सुन्दर सृजन ।अति सुन्दर सृजन ।Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-22361304382994331272020-11-30T22:39:45.271+05:302020-11-30T22:39:45.271+05:30बहुत सुंदर सृजन श्वेता ।
प्रकृति और पुरुष तो सदा ए...बहुत सुंदर सृजन श्वेता ।<br />प्रकृति और पुरुष तो सदा एक दूसरे के पूरक हैं पर मानव ये भूलता जा रहा है स्वयं को श्रेष्ठ समझता है अपने ही जन्म दाता से।<br />अभिनव भाव अभिनव शब्द विन्यास।<br />सस्नेह।<br />बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ी बहुत अच्छा लगा।मन की वीणाhttps://www.blogger.com/profile/10373690736069899300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-81829600234956719422020-11-30T21:39:43.086+05:302020-11-30T21:39:43.086+05:30सुन्दर रचना - - नमन सह। सुन्दर रचना - - नमन सह। Shantanu Sanyal शांतनु सान्यालhttps://www.blogger.com/profile/06457373513221191796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-57066786711928211982020-11-30T15:08:41.837+05:302020-11-30T15:08:41.837+05:30बहुत सुन्दर बहुत सुन्दर Onkarhttps://www.blogger.com/profile/15549012098621516316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-7601258882842174692020-11-29T22:04:06.535+05:302020-11-29T22:04:06.535+05:30 प्रिय श्वेता,प्रकृति सदैव समभाव से जीवों का प... प्रिय श्वेता,प्रकृति सदैव समभाव से जीवों का पोषण करती है। फूल निष्कलुष भाव से हर प्राणी के लिए महकता है तो हवा, पेड़, जल, मेघ, आकाश कोई भी किसी व्यक्ति विशेष को महत्व दिये बिना निस्वार्थ रूप से अपना काम करते हैं। मात्र इंसान स्वार्थों और व्यर्थ लिप्साओं में लिप्त हो बस स्वयं के लिए सोचता है। यहीं उसके समस्त सदगुण गौण हो जाते हैं। वह प्रकृति से जो सीखना चाहिए नहीं सीख पाया। बहुत गहन चिंतन, जो हरेक को करना चाहिए। सुंदर सार्थक रचना के लिए सस्नेह शुभकामनायें । रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-79769393437103671832020-11-29T20:23:41.591+05:302020-11-29T20:23:41.591+05:30बहुत बहुत आभारी हूँ.आदरणीय सर।
सादर।बहुत बहुत आभारी हूँ.आदरणीय सर।<br />सादर।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-77545311816442864282020-11-29T20:22:31.000+05:302020-11-29T20:22:31.000+05:30सटीक विश्लेषात्मक प्रतिक्रिया लिखी है दी आपने प्रि...सटीक विश्लेषात्मक प्रतिक्रिया लिखी है दी आपने प्रिय दी रचना का सार कितनी सुंदरता और सरलता से आपने लिख दिया।<br />बेहद आभारी हूँ दी,आपका स्नेहाशीष है।<br /> सस्नेह शुक्रिया।<br />सादर प्रणाम दी।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-66781690333814470332020-11-29T20:15:57.989+05:302020-11-29T20:15:57.989+05:30जी सच कहा आपने प्रिय सुधा जी।
रचना पर आपका स्नेह प...जी सच कहा आपने प्रिय सुधा जी।<br />रचना पर आपका स्नेह पाकर प्रसन्नता होती है।<br />बेहद शुक्रिया एवं आभार आपका।<br />सस्नेह।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-76471941902148636202020-11-29T20:14:23.029+05:302020-11-29T20:14:23.029+05:30प्रिय अनंता तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया ऊर्जा से ...प्रिय अनंता तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया ऊर्जा से भर जाती है।<br />नानी जी और माँँ को मेरा सादर प्रणाम कहना,<br />मेरी रचनाओं को उनका आशीष मिलता रहे।<br />तुम्हारी प्यारी बक-बक की प्रतीक्षा रहती है:)<br />मेरा असीम दुलार और आशीष।<br />सस्नेह शुक्रिया। Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-80238903366074335022020-11-29T20:09:32.344+05:302020-11-29T20:09:32.344+05:30बहुत आभारी हूँ प्रिय अनु।
सस्नेह शुक्रिया।बहुत आभारी हूँ प्रिय अनु।<br />सस्नेह शुक्रिया।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-70126375505843054332020-11-29T20:09:03.195+05:302020-11-29T20:09:03.195+05:30बेहद शुक्रिया आभार प्रिय दी।
सादर।बेहद शुक्रिया आभार प्रिय दी।<br />सादर।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-719303350727548592020-11-29T20:08:24.543+05:302020-11-29T20:08:24.543+05:30बेहद शुक्रिया प्रिय शुभा दी।
सस्नेह शुक्रिया।
सादर...बेहद शुक्रिया प्रिय शुभा दी।<br />सस्नेह शुक्रिया।<br />सादर।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-65365438897113314852020-11-29T20:07:11.974+05:302020-11-29T20:07:11.974+05:30बेहद शुक्रिया प्रिय सधु जी।
सस्नेह शुक्रिया।बेहद शुक्रिया प्रिय सधु जी।<br />सस्नेह शुक्रिया।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-67735746113281669722020-11-29T20:06:33.843+05:302020-11-29T20:06:33.843+05:30बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
सादर।बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।<br />सादर।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-77564860980245114382020-11-29T20:06:00.135+05:302020-11-29T20:06:00.135+05:30बहुत आभारी हूँ सर।
सादर।बहुत आभारी हूँ सर।<br />सादर।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-48109083114218758102020-11-29T19:38:19.755+05:302020-11-29T19:38:19.755+05:30प्रकृति का सूक्ष्म अंश
है मानव
फिर भी...
सीख क्यों...प्रकृति का सूक्ष्म अंश<br />है मानव<br />फिर भी...<br />सीख क्यों न पाया<br />प्रकृति की तरह<br />निःस्वार्थ,<br />निष्कलुष एवं<br />निष्काम होना?<br /> मानव अब प्रकृति से दूर होता जा रहा है इसलिए अपने इन सद्गुणों को खोता जा रहा है। आप देखोगी कि जहाँ मानव पूर्णरूपेण प्रकृति से जुड़ा है, वहाँ उसमें आज भी बहुत हद तक ये गुण विद्यमान हैं जैसे : आदिवासी समाज और ग्रामीण लोग। <br /> जो प्रकृति से प्रेम करते हैं उनमें अभी भी इन गुणों की झलक कभी ना कभी मिल जाती है। हालांकि कृत्रिमता प्राकृतिक गुणों पर हावी होती जा रही है अब....<br /> सुंदर सार्थक रचना हेतु बधाई। Meena sharmahttps://www.blogger.com/profile/17396639959790801461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-62475115770923355862020-11-29T14:55:20.716+05:302020-11-29T14:55:20.716+05:30प्रकृति का सूक्ष्म अंश
है मानव
फिर भी...
सीख क्यों...प्रकृति का सूक्ष्म अंश<br />है मानव<br />फिर भी...<br />सीख क्यों न पाया<br />प्रकृति की तरह<br />निःस्वार्थ,<br />निष्कलुष एवं<br />निष्काम होना?<br />प्रकृति ने अपने इस सूक्ष्म अंश को अपने समान ही निस्वार्थ निष्काम और निष्कलुष ही गड़ा लेकिन अति की आड़ में इसने अपने इस नेसर्गिक गुण को ताक मे रख दिया और अब प्रकृति के कोप झेल रहा है.....।<br />लाजवाब सृजन आपका।Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-26572702373022923982020-11-29T13:23:40.904+05:302020-11-29T13:23:40.904+05:30आदरणीया मैम, प्रणाम। आपकी यह बहुत ही सुंदर रचना म...आदरणीया मैम, प्रणाम। आपकी यह बहुत ही सुंदर रचना मैं ने प्रतिक्रिया देने से पहले तीन बार पढ़ी। आपकी यह कविता बहुत ही सुंदर है जो मानव को उसके मूल स्वरुप का स्मरण कराती है और अंत में एक प्रश्न छोड़ जाती है जो मन में रह रह कर कौंधता है। <br />काश हम में भी माता प्रकृति के सारे गुणों का समावेश हो जाए। माँ और नानी को भी आपकी कविता पढ़ कर सुनाई , उन्हें भी बहुत अच्छी लगी। नानी कह रही थीं की जब तक मनुष्य यह आभास न करे की वो प्रकृति का अंश है तब तक वह प्रकृति के इन गुणों को सीख भी नहीं पायेगा। <br />हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए और मेरी बक -बक पढ़ने के लिए भी।आपको पुनः प्रणाम। <br />Ananta Sinhahttps://www.blogger.com/profile/14940662000624872958noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-7721435147100092412020-11-29T11:36:32.715+05:302020-11-29T11:36:32.715+05:30उम्दा सृजनउम्दा सृजनविभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-79714169598314859492020-11-29T10:19:15.911+05:302020-11-29T10:19:15.911+05:30वाह!श्वेता ,बहुत सुंदर सृजन । काश ,मानव सीख पाता प...वाह!श्वेता ,बहुत सुंदर सृजन । काश ,मानव सीख पाता प्रकृति की निष्कलुषता ।शुभा https://www.blogger.com/profile/09383843607690342317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-13145472434223410042020-11-29T09:21:19.601+05:302020-11-29T09:21:19.601+05:30निरंतर कर्मण्य,
निर्लिप्त होना
सृष्टि के रेशों मे...निरंतर कर्मण्य,<br /> निर्लिप्त होना<br />सृष्टि के रेशों में बंधी<br />प्रकृति की तरह ...<br />प्रकृति का सूक्ष्म अंश<br />है मानव<br />फिर भी...<br />सीख क्यों न पाया<br />प्रकृति की तरह<br />निःस्वार्थ,<br />निष्कलुष एवं<br />निष्काम होना?<br /><br />मानव की प्रवृत्ति का आधार कुछ और है और मानव-कतृत्व कुछ और...<br />सुन्दर रचना श्वेता जी सधु चन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/03218271250912628033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-56378017545587873032020-11-28T22:06:45.984+05:302020-11-28T22:06:45.984+05:30निरंतर कर्मण्य,
निर्लिप्त होना
सृष्टि के रेशों मे...निरंतर कर्मण्य,<br /> निर्लिप्त होना<br />सृष्टि के रेशों में बंधी<br />प्रकृति की तरह ...<br />प्रकृति का सूक्ष्म अंश<br />है मानव<br />बहुत सुन्दर श्लाघनीय | बहुत बहुत शुभ कामनाएं |आलोक सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/17318621512657549867noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-18756472748966565212020-11-28T17:20:49.371+05:302020-11-28T17:20:49.371+05:30वाहवाहसुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com