tag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post8184795121977101898..comments2024-03-23T15:18:44.393+05:30Comments on मन के पाखी: स्त्री..व्रतSweta sinhahttp://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-42527691649201899462019-09-10T23:21:11.896+05:302019-09-10T23:21:11.896+05:30माँग में सिंदूर भरने या
या व्रत करने से
पति की उम...माँग में सिंदूर भरने या <br />या व्रत करने से<br />पति की उम्र का कोई लेना-देना नहीं....<br />पर वो जानती है<br />अपने सच्चे मन से की गयी<br />प्रार्थना की अलौकिक अनुभूति को<br />अपने मन के प्रेम की शक्ति को,<br />निर्जल रहकर, करती है सजल <br />भाव से मनौतियाँ<br />बाँधती है मौली के कच्चे धागों में<br />और यही विश्वास एक अलौकिक शक्ति बनकर बना देता है उसे शक्तिस्वरूपा...<br />बहुत ही लाजवाब सृजन।<br />वाह!!!Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-6951599270535889752019-09-04T19:14:59.432+05:302019-09-04T19:14:59.432+05:30लोग अपनी पुरानी परम्पराओं को ढ़ोग- ढकोसला का जामा ...लोग अपनी पुरानी परम्पराओं को ढ़ोग- ढकोसला का जामा पहनाकर छोड़ते चले जा रहे हैंसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-42677656590968560242019-09-03T15:35:57.025+05:302019-09-03T15:35:57.025+05:30बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचनाबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचनाAbhilashahttps://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-39506392449652149722019-09-03T12:09:14.843+05:302019-09-03T12:09:14.843+05:30वाह बेहतरीन रचना श्वेता।आधुनिक बनने के चक्कर में आ...वाह बेहतरीन रचना श्वेता।आधुनिक बनने के चक्कर में आजकल लोग अपनी पुरानी परम्पराओं को ढ़ोग- ढकोसला का जामा पहनाकर छोड़ते चले जा रहे हैं।न किसी के एहसासों की परवाह करते हैं न भावनाओं की। तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं अखण्ड सौभाग्वती का आशीष।SUJATA PRIYEhttps://www.blogger.com/profile/04317190675625593228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-2989440109237453522019-09-03T12:08:59.299+05:302019-09-03T12:08:59.299+05:30वाह बहुत सुंदर आदरणीया दीदी जी
सादर नमन वाह बहुत सुंदर आदरणीया दीदी जी <br />सादर नमन Anchal Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/13153099337060859598noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-54425767933500460752019-09-03T09:59:52.507+05:302019-09-03T09:59:52.507+05:30सहमत आपकी बात से ... कई लोग रूड़ियां कह के बहुत सी ...सहमत आपकी बात से ... कई लोग रूड़ियां कह के बहुत सी बातों को जुठ्लाते हैं पर ये भूल जाते हैं की कई बार अपने आपको संबल देने के लिए ... अपने आचरण की शुद्धि, मन की शान्ति के लिए या किसी भी कारण से कुछ करने के लिए कोई बाध्य नहीं होता ... हाँ थोपना बुरा है ... मन न चाहे तो नहीं करना चाहिए ... और मन कहे तो सब अच्छा ...<br />अच्छी और गहरी रचना है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-74117198213017836752019-09-03T06:11:17.711+05:302019-09-03T06:11:17.711+05:30आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-09-2019)...आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-09-2019) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow"> "दो घूँट हाला" (चर्चा अंक- 3448) </a> पर भी होगी।<br />--<br />सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।<br />--<br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-34291210347084342142019-09-02T23:44:25.994+05:302019-09-02T23:44:25.994+05:30बाँधती है मौली के कच्चे धागों में
अधपके,अधूरे स्वप...बाँधती है मौली के कच्चे धागों में<br />अधपके,अधूरे स्वप्न,<br />काल के अनदेखे पहियों पर,<br />एकाग्रचित अपने साँस में जपती<br />अपने आशाओं और सुख की माला<br />तिरोहित कर बराबरी का अधिकार<br /><br />भावपूर्ण निबन्ध काव्य प्रिय श्वेता ! औरत के सर्वस्व समर्पण ने पुरुष के व्यक्तित्व को पूर्णता और गरिमा प्रदान की है | बिना किसी प्रत्यासा के एक नारी जुटी रहती है अपने कर्तव्य निर्वहन में | और से ढकोसला कहने वाली अपनी नजर है | जिसकी रही भावना जैसी ! तीज की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई | तुम्हारा सौभाग्य अटल हो यही कामना और दुआ है | सस्नेह -- रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-36157978957755809422019-09-02T22:29:28.318+05:302019-09-02T22:29:28.318+05:30बहुत सुंदर रचना श्वेता जीबहुत सुंदर रचना श्वेता जीAnuradha chauhanhttps://www.blogger.com/profile/14209932935438089017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-10148462761338099452019-09-02T21:26:42.272+05:302019-09-02T21:26:42.272+05:30रक्तशिरा में अंधपरम्परा के अन्धकार का बहता आस्था-म...रक्तशिरा में अंधपरम्परा के अन्धकार का बहता आस्था-मोह और <br />रक्तधमनियों में आधुनिकता व विज्ञान के प्रकाश का बहता यथार्थ - दोनों के बीच फंसा मासूम मानव-मन और उस से उपजी ये रचना ... बेशक़ आस्तिकों के मर्म को सहलाती हुई ...<br />पर ढकोसलाविहीन , आडम्बरमुक्त, अंधपरम्परामुक्त, दम्भहीन, स्वघोषित आस्तिकों से एक अदना सा सवाल - <br />(1) वे अपनी आस्तिकता से लिप्त बातें या रचनाएं जिस मोबाइल या कंप्यूटर में लिखती/लिखते हैं और फिर पोस्ट करते/करती हैं वे दोनों समान किस भगवान की फैक्ट्री में पहली बार बना था या आज बन रहा है - तथाकथित चित्रगुप्त भगवान के या विश्वकर्मा भगवान के !???<br />(2) उनकी आस्तिकता अगर "कुछ वैसे लोगों" के उपर हावी होती तो दम्भहीन आस्तिकजन आज LED की रोशनी से, AC की ठंडक से, Car की सवारी से, मोबाइल की गुफ़्तगू , हवाई या रेल यात्रा से वंचित रह जातीं/जाते या नहीं !???<br />(3) आस्तिकतायुक्त ढकोसलाविहीन लोगों ने देवता-विशेष के हाथ में कंडे के कलम और दवात, दो शादियाँ, बारह बच्चों की फ़ौज देखी/देखा है; पर क्या कंप्यूटर या मोबाइल देखी/देखा है!!!??? .....<br />सवाल तो और भी हैं ढकोसलाविहीन आस्तिकों से .... फिर कभी फ़ुर्सत से ...Subodh Sinhahttps://www.blogger.com/profile/05196073804127918337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-75367024422770770632019-09-02T20:23:05.211+05:302019-09-02T20:23:05.211+05:30अंतर तक पैठे संस्कार जब अहसासो से गूंथ जाते हैं तो...अंतर तक पैठे संस्कार जब अहसासो से गूंथ जाते हैं तो परमपराएं स्वतः आचरण का हिस्सा बन जाती है आस्था का कोई नाम नहीं होता आस्था बस मन के आंगन की कुनकुनी धूप होती है तो सर्दी के मौसम में कितनी प्यारी होती है।<br /><br />बहुत सुंदर सृजन आपका श्वेता<br />अनुपम अभिनव।मन की वीणाhttps://www.blogger.com/profile/10373690736069899300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-71691099380635855692019-09-02T18:43:18.917+05:302019-09-02T18:43:18.917+05:30बहुत सुन्दर ..बुद्धि और आध्यात्म का अद्भुत समन्वय ...बहुत सुन्दर ..बुद्धि और आध्यात्म का अद्भुत समन्वय लिए भाव प्रवण अभिव्यक्ति ।Meena Bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/02274705071687706797noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-66953068724741105922019-09-02T16:52:23.441+05:302019-09-02T16:52:23.441+05:30बहुत सुन्दर और भाव प्रवण।बहुत सुन्दर और भाव प्रवण।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-41424852463119783802019-09-02T16:18:42.436+05:302019-09-02T16:18:42.436+05:30भावों की सुंदर प्रस्तुति, स्त्री के सभी रूप स्वीका...भावों की सुंदर प्रस्तुति, स्त्री के सभी रूप स्वीकार्य अपने चाहिए फ़िर वह चाहे आस्तिक परंपराओं में रमी पति और परिवार को अपना संसार समझने वाली हो या नास्तिक आधुनिका जो किसी भी आडंबर से पूर्णतः विलग हो। जो स्वयं में संसार और संसार में स्वयं की तलाश में हो उसे भी।<br />सुंदर कविता<br />सादरअपर्णा वाजपेयीhttps://www.blogger.com/profile/11873763895716607837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1000465220613990960.post-22701927398482684732019-09-02T16:10:36.379+05:302019-09-02T16:10:36.379+05:30बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति..
जो नास्तिक होने का दम्भ...बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति..<br />जो नास्तिक होने का दम्भ भरते/भरती हैं वे पूर्णतया ढ़कोसला करते/करती हैं..<br />विभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.com