मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 8 April 2017
रोशनी की तलाश
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रोशनी की तलाश --------- मन का घना वन, जिसके कई अंधेरे कोने से मैं भी अपरिचित हूँ, बहुत डर लगता है तन्हाईयों के गहरे दलदल से, जो खी...
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Friday, 7 April 2017
व्यथा एक मन की
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व्यथा एक मन की ---------- एक कमरा छोटा सा एक बेड,उस पर बिछे रंगीन चादर आरामदायक कुशन जिसपर काढ़े गये गुलाब के ढेर सारे फूल दो लकड़ी...
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ज़िदगी
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बहाना ढ़ूँढ़ लो तुम हँसने और हँसाने का मुट्ठीभर साँसों को क्यों गम में गँवाने का अगर मुमकिन नहीं आसमां में उड़ पाना हौसला रखो फ़लक ही जमी...
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Monday, 3 April 2017
सूरज ताका धीरे से
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Gud morning🍁 --------- रात की काली चुनर उठाकर सूरज ताका धीरे से अलसाये तन बोझिल पलकें नींद टूट रही धीरे से थोड़ा सा सो जाऊँ और पर ...
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Saturday, 1 April 2017
थका हुआ दर्द
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दर्द थका रोकर अब बचा कोई एहसास नही पहचाने चेहरे बहुत जिसकी चाहत वो पास नही पलभर के सुकूं को उम्रभर का मुसाफिर बना जिंदगी में कहीं खुश...
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तेरी सुगंध
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जबसे आये हो ज़िदगी के चमन में, हृदय तेरी सुगंध से सुवासित है। नहीं मुरझाता कभी भी गुलाब प्रेम का, खिली मुस्कान लब पे आच्छादित है। कोई ...
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Friday, 31 March 2017
स्मृतियों का ताजमहल
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समेटकर नयी पुरानी नन्ही नन्हीं ख्वाहिशें, कोमल अनछुए भाव पाक मासूम एहसास, कपट के चुभते काँटे विश्वास के चंद चिथड़़े, अवहेलना के अगू...
नीरवता से जीवन की ओर
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अभी अंधेरे की चादर पसरी है बाहर, अपने कच्चे पक्के छोटे बडे घरौंदों मे खुद को समेटे गरम लिहाफों को लपेटे सुख की नगरी मे विचरते जहान ...
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