मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 15 April 2017
शाम
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सूरज डूबा दरिया में हो गयी स्याह सँवलाई शाम मौन का घूँघट ओढ़े बैठी, दुल्हन सी शरमाई शाम थके पथिक पंछी भी वापस लौटे अपने ठिकाने में बिट...
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खुशबू
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साँसों से नहीं जाती है जज़्बात की खुशबू यादों में घुल गयी है मुलाकात की खुशबू चुपके से पलकें चूम गयी ख्वाब चाँदनी तनमन में बस गयी है...
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आस का पंछी
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कोमल पंखों को फैलाकर खग नील गगन छू आता है। हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है।। गिरने से न घबराना तुम गिरकर ही सँभलना आता है। ...
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Friday, 14 April 2017
गुलाब
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भोर की प्रथम रश्मि मुस्काई गुलाब की पंखुड़ियों को दुलराई जग जाओ ओ फूलों की रानी देख दिवस नवीन लेकर मैं आई संग हवाओं की लहरों में इठल...
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Thursday, 13 April 2017
मेरा चाँद
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ओ रात के चाँद तेरे दीदार को मैं दिन ढले ही छत पर बैठ जाती हूँ घटाओं के बीच ढ़ूँढ़ती हूँ घंटों अनगिनत तारे भी गिनती हूँ झलक तेरी दिख ...
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मेरी पहचान बाकी है
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अभी उम्मीद ज़िदा है अभी अरमान बाकी है ख्वाहिश भी नहीं मरती जब तक जान बाकी है पिघलता दिल नहीं अब तो पत्थर हो गया सीना इंसानियत मर र...
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उदित सूर्य
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नीले स्वच्छ नभ पर बादलों से धुँध के बीच केसरी रंगों ने पूरब के क्षितिज को धो डाला आहिस्ता आहिस्ता आकाश के सुंदर माथ पर अलसाता मुस्क...
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Wednesday, 12 April 2017
रात
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मेरे बड़े से झरोखे के सामने दूर तक फैली नीरवता नन्हें नन्हें दीयों सी झिलमिलती अंधेरों में लिपटे इमारतों के दरारों से छनकर आती रोशनी ...
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