मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 26 May 2017
तुम्हारा स्पर्श
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मेरे आँगन से बहुत दूर पर्वतों के पीछे छुपे रहते थे नेह के भरे भरे बादल तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श पाकर मन की बंजर प्यासी भूमि पर बरसने...
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समेटे कैसे
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सुर्ख गुलाब की खुशबू,हथेलियों में समेटे कैसे झर रही है ख्वाहिशे संदीली,दामन में समेटे कैसे गुज़र जाते हो ज़ेहन की गली से बन ख्याल आवारा ...
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Wednesday, 24 May 2017
तुम्हारी तरह
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गुनगुना रही है हवा तुम्हारी तरह मुस्कुरा रहे है गुलाब तुम्हारी तरह ढल रही शाम छू रही हवाएँ तन जगा रही है तमन्ना तुम्हारी तरह हंस के...
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Sunday, 21 May 2017
आकाश झील
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दिन भर की थकी किरणें नीले आकाश झील के सपनीले आगोश से लिपटकर सो जाती है स्याह झील के आँगन में हवा के नाव पर सवार बादल सैर को निकलते ...
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क्यों खास हो
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नासमझ मन कुछ न समझे कौन हो तुम क्यों खास हो बनती बिगड़ती आस हो अनकही अभिलाष हो हृदय जिससे स्पंदित है तुम वो सुगंधित श्वास हो छूटती ...
सूरज
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उनींदी पलकों को खोलकर देखे भोर से मिलता अलसाता सूरज घटाओं के झुरमुट से झाँककर स्मित मुस्कान बिखराता सूरज पर्वतशिख के बाहुपाश में बँ...
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Thursday, 11 May 2017
बेबसी
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ऊफ्फ्...कितनी तेज धूप है.....बड़बड़ाती दुपट्टे से पसीना पोंछती मैं शॉप से बाहर आ गयी।इतनी झुलसाती गरमी में घर से बाहर निकलने का शौक नहीं ...
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Wednesday, 10 May 2017
कभी यूँ भी तो हो
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कभी यूँ भी तो हो.... साँझ की मुँडेर पे चुपचाप तेरे गीत गुनगुनाते हुए बंद कर पलको की चिलमन को एहसास की चादर ओढ़ तेरे ख्याल में खो जाय...
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