मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 11 February 2021
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।
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मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...। किसी उजली छाँह की तलाश नहीं है किसी मीठे झील की अब प्यास नहीं है, नभ धरा के हाशिये के आस-पास धडक रही है धीम...
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Saturday, 6 February 2021
उत्तरदायी
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शताब्दियों से विश्व की तमाम सभ्यताओं के आत्ममुग्ध शासकों के द्वारा प्रजा के लिए बनाये नियम और निर्गत विशेषाधिकार के समीकरणों से असंतुष्ट, अ...
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Saturday, 30 January 2021
बापू
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व्यक्ति से विचार और विचार से फिर वस्तु बनाकर भावनाओं के थोक बाज़ार में ऊँचे दामों में में बेचते देख रही हूँ। चश्मा,चरखा, लाठी,धोती,टोप...
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Thursday, 28 January 2021
चश्मे... मतिभ्रम
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उड़ती गर्द में दृश्यों को साफ देखने की चाहत में चढ़ाये चश्मों से अपवर्तित होकर बनने वाले परिदृश्य अब समझ में नहीं आते तस्वीरें धुंधली हो चली...
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Tuesday, 26 January 2021
सैनिक...धन्य कोख
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धन्य धरा,माँ नमन तुम्हें करती है धन्य कोख,सैनिक जो जन्म करती है। ----- शपथ लेते, वर्दी देह पर धरते ही साधारण से असाधारण हो जाते बेटा,भा...
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Saturday, 23 January 2021
चाँद और रात
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(१) स र्द रात गर्म लिहाफ़ में कुनमुनाती, करवट बदलती छटपटाती नींद पलकों से बगावत कर बेख़ौफ़ निकल पड़ती है कल्पनाओं के गलियारों में, दबे पाँव चुप...
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Tuesday, 19 January 2021
चिड़िया
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धरती की गहराई को मौसम की चतुराई को भांप लेती है नन्ही चिड़िया आगत की परछाई को। तरू की हस्त रेखाओं की सरिता की रेतील बाहों की बाँच लेती है पात...
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Friday, 15 January 2021
सैनिक
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हरी-भूरी छापेवाली वर्दियों में जँचता कठोर प्रशिक्षण से बना लोहे के जिस्म में धड़कता दिल, सरहद की बंकरों में प्रतीक्षा करता होगा मेंहदी की सुग...
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