मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 3 March 2021
हे प्रकृति...
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मुझे ठहरी हुई हवाएँ बेचैन करती हैं बर्फीली पहाड़ की कठिनाइयाँ असहज करती है तीख़ी धूप की झुलसन से रेत पर पड़ी मछलियों की भाँति छटपटाने लगती हूँ ...
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Thursday, 25 February 2021
जोगिया टेसू मुस्काये रे
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गुन-गुन छेड़े पवन बसंती धूप की झींसी हुलसाये रे, वसन हीन वन कानन में जोगिया टेसू मुस्काये रे। ऋतु फाग के स्वागत में धरणी झूमी पहन महावर, अ...
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Monday, 22 February 2021
दौर नहीं है
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कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं। अर्थहीन शब्द मात्र,भावों के छोर नहीं हैं। उम्मीद के धागों से भविष्य की चादर बुन लेते हैं विविध रंगों से भ...
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Thursday, 11 February 2021
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।
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मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...। किसी उजली छाँह की तलाश नहीं है किसी मीठे झील की अब प्यास नहीं है, नभ धरा के हाशिये के आस-पास धडक रही है धीम...
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Saturday, 6 February 2021
उत्तरदायी
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शताब्दियों से विश्व की तमाम सभ्यताओं के आत्ममुग्ध शासकों के द्वारा प्रजा के लिए बनाये नियम और निर्गत विशेषाधिकार के समीकरणों से असंतुष्ट, अ...
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Saturday, 30 January 2021
बापू
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व्यक्ति से विचार और विचार से फिर वस्तु बनाकर भावनाओं के थोक बाज़ार में ऊँचे दामों में में बेचते देख रही हूँ। चश्मा,चरखा, लाठी,धोती,टोप...
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Thursday, 28 January 2021
चश्मे... मतिभ्रम
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उड़ती गर्द में दृश्यों को साफ देखने की चाहत में चढ़ाये चश्मों से अपवर्तित होकर बनने वाले परिदृश्य अब समझ में नहीं आते तस्वीरें धुंधली हो चली...
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Tuesday, 26 January 2021
सैनिक...धन्य कोख
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धन्य धरा,माँ नमन तुम्हें करती है धन्य कोख,सैनिक जो जन्म करती है। ----- शपथ लेते, वर्दी देह पर धरते ही साधारण से असाधारण हो जाते बेटा,भा...
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