Tuesday 6 June 2017

पहली फुहार


तपती धरा के आँगन में
उमड़ घुमड़ कर छाये मेघ
दग्ध तनमन के प्रांगण में
शीतल छाँव ले आये मेघ
हवा होकर मतवारी चली
बिजलियो की कटारी चली
लगी टपकने अमृत धारा
बादल के मलमली दुपट्टे
बरसाये अपना प्रथम प्यार
इतर की बोतलें सब बेकार
लगी महकने मिट्टी सोंधी
नाचे मयूर नील पंख पसार
थिरक बूदों के ताल ज्यों पड़ी
खिली गुलाब की हँसती कली
पत्तों की खुली जुल्फें बिखरी
सरित की सूखी पलकें निखरी
पसरी हथेलियाँ भरती बूँदें
करे अठखेलियाँ बचपन कूदे
मौन हो मुस्काये मंद स्मित धरा
बादल के हिय अमित प्रेम भरा
प्रथम फुहार की लेकर सौगात
रूनझुन बूँदे पहने आ रही बरसात


        #श्वेता🍁


Saturday 3 June 2017

एक रात ख्वाब भरी

गीले चाँद की परछाई
खोल कर बंद झरोखे
चुपके से सिरहाने
आकर बैठ गयी
करवटों की बेचैनी
से रात जाग गयी
चाँदनी के धागों में
बँधे सितारे
बादलों में तैरने लगे
हवा लेकर आ गयी
रातरानी की खुशबू में
लिपटे तेरे ख्याल
हवाओं की थपकियाँ देकर
आगोश में लेकर सुलाने लगे
मदभरी पलकों को चूमकर
ख्वाबों की परियाँ
छिड़क कर
तुम्हारे एहसास का इत्र
पकड़ कर दामन
खींच रही है स्वप्निल संसार में

       #श्वेता🍁






तेरा रूठना


तन्हा हर लम्हें में यादों को खोलना,
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

ओढ़ के मगन दिल प्रीत की चुनरिया
बाँधी है आँचल से नेह की गठरिया,
बहके मलंग मन खाया है भंग कोई
चढ़ गया तन पर फागुन का रंग कोई,
हिय के हिंडोले में साजन संग डोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रेशम सी चाहत के धागों का टूटना
पलकों के कोरों से अश्कों का फूटना,
दिन दिनभर आँखों से दर को टटोलना
गिन गिनकर दामन में लम्हें बटोरना,
पूछे है धड़कन क्यों बोले न ढोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रूठा है जबसे तू कलियाँ उदास है
भँवरें न बोले तितलियों का संन्यास है,
सूनी है रात बहुत चंदा के मौन से
गीली है पलकें ख्वाब देखेगी कौन से,
बातें है दिल की तू लफ्ज़ो से तोल ना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।
               #श्वेता🍁

Friday 2 June 2017

मन्नत का धागा


मुँह मोड़ कर मन की
आशाओं को मारना
आसां नहीं होता
बहारों के मौसम में,
खुशियों के बाग में.
काँटों को पालना
बहती धार से बाहर
नावों को खीचना
प्रेम भरा मन लबालब
छलकने को आतुर
कराने को तत्पर रसपान
भरे पात्र मधु के अधरों से
आकर लगे हो जब,
उस क्षण प्यासे होकर भी
ज़ाम को ठुकरा देना,
जलते हृदय के भावों को
मुस्कान में अपनी छुपा लेना,
अश्कों का कतरा  पीकर
खोखली हँसी जीकर,
स्वयं को परिपूर्ण बतलाना
दंभ से नज़रें फेर कर गुजरना,
हंसकर मिलने का आडम्बर
भींगी पलकों की कोरों से
टपकते ख्वाबों को देखना,
तन्हा खामोश ख्यालों में
एक एक पल बस तुमको जीना
कितना मुश्किल है
तुम न समझ पाओगे कभी,
पत्थर न होकर भी
पत्थरों की तरह ठोकरों में रहना,
मन दर्पण में तेरी
अदृश्य मूरत बसाकर,
अनगिनत बार शब्द बाणों से
आहत टूटकर चूर होना
फिर से स्पंदनहीन,भावहीन
बनकर तुम्हारे लिए
बस तुम्हारी खातिर,
दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
मन्नत के धागे के सिवा और
क्या हो सकती हूँ मैं
तुम्हारे तृप्त जीवन में।

         #श्वेता🍁


Thursday 1 June 2017

मन का बोझ

मन का बोझ
----------------------
         बेचैन करवट बदलती मैं उठ बैठ गयी। तकिये के नीचे से टटोलकर क्लच ढूँढकर बिखरे बालों को समेटकर उस पर लगाया ,थके मन के ,बोझिल आँखों से अंधेरे कमरे में हवा के झोंके से सरसराते परदे के पीछे से खुले आसमान पे चमकता आधा चाँद देखने लगी जो मेरी तरह ही उदास लगा।धीरे से पलंग से उतरकर कमरे से बाहर आ गयी।निःशब्द चलकर छत का दरवाजा खोलकर अलसायी निढाल सी आराम कुर्सी पर पसर गयी।

               बार बार उसका चेहरा आँखों के सामने आ रहा,आज की घटना ने पुरानी गाँठें खोल दी थी। मन के परदे पर चलचित्र की भाँति वो दिन तैरने लगे।
     
                  ऐसा लग रहा कल की ही बात हो कोई। कॉलेज का मेरा अंतिम वर्ष कब आ गया पता ही न चला, मेरी कक्षा में मेरे अलावा दस लड़कियाँ थी ।मैं थोड़ी संकोची,अंतर्मुखी अपने में खोये रहने वाली मितभाषी लड़की थी,बातें हाय हल्लो सबसे करती पर खुलकर बातें करूँ ऐसे दोस्त नहीं बने थे मेरे । अंजु ने दूसरी कॉलेज से B.A आनर्स किया था और M.A में हमारे महिला महाविद्यालय में एडमिशन लिया था।वो मेरे स्वाभाव से अलग खुशमिजाज, सुंदर, चुलबुली, बिंदास जब स्कूटी चलाकर आती तो उसके छोटे लहराते बाल और आत्मविश्वास से भरे चेहरा मुझे बहुत प्रभावित करते।कुछ दिनों मे ही हम अच्छे दोस्त बन गये थे। M.A फाईनल परीक्षा की तिथि घोषित हो चुकी थी।मैं अपनी सखी अंजु के साथ जी जान से पढाई में जुट गयी।

  बहुत दिनों से अंजु कॉलेज नहीं आ रही थी फोन भी बंद था ,बहुत परेशान थी उसे लेकर मैं उसकी परिचित एक दो लड़कियों से उसके बारे में पूछा पर उन्होंने अनभिज्ञता ज़ाहिर की। बहुत गुस्सा आ रहा था उसपे।
मन ही मन सोच रही थी,आने दो उस अंजु की बच्ची को फिर खबर लूँगी।" पूरे दस दिन बाद वो आयी खुशी से चहकती हुयी,बताया उसकी शादी तय हो गयी है।लड़का किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छे पद पर था मोटी तनख्वाह पाता था।
  उसने कहा," चल आज कॉफी पीते है"
मैंने कहा,"नहीं यार माँ वेट कर रही होगी,मैं उनसे बोलकर आयी हूँ आज पक्का उनके आँखों का टेस्ट करवाने ले जाऊँगी।" पापा को टाईम नहीं मिल पा रहा न।
पर वो नहीं मानी बोली "आज कॉलेज का लास्ट डे है फिर एक्ज़ाम शुरु हो जायेगे और फौरन बाद मेरी शादी तू चल न यार। "
इतना मनुहार करने से मेरा मन भी पिघल गया सोचा आधे घंटे में क्या बिगड़ जायेगा।
           उसकी स्कूटी में उसके पीछे बैठ कर कॉलेज से 5 कि.मी.
दूर एक नामी कॉफी शॉप पहुँची ।छत के एक कोने के टेबल पर चीज़ सैंडविच और दो ब्लैक कॉफी का ऑडर देकर हम बातों में मशरूफ हो गये। हल्की शाम होने लगी थी,अक्टूबर का तीसरा सप्ताह था वो गुनगुनी ठंड सी हो आयी थी।करीब एक घंटे बाद हम वहाँ से निकले,अंजु ने कहा वो मुझे बस स्टॉप छोड़ देगी।

                 अंधेरा होने लगा था कभी इतना लेट नहीं हुआ था मुझे डर लगने लगा कही मेरी आखिरी बस न छूट जाए ,अंजु ये बात जानती थी कि 6 बजे के बाद फिर ऑटो रिजर्व करके जाना पड़ेगा मुझे घर शायद इसी वजह से अंजु बहुत तेज स्कूटी चला रही थी । अब अंधेरा घिरने लगा था स्ट्रीट लाईट्स की कतारें सड़क पे झिलमिलाने लगी थी, बस स्टॉप तक पहुँचने के लिए शॉट कट रास्ते पर वो मुड़ी तो एक झुरझुरी सी फैल गयी बदन में। इस गली से निकलते ही चार कदम पर बस स्टॉप था वरना मेन रोड का लंबा चक्कर लगाकर स्टॉप तक में 15 मिनट चले जाते। बहुत  संकरी-सी गली थी, ये दो बड़े और नामी अपार्टमेंट्स गौतम विहार और अलकनंदा के बीच का पिछवाड़ा था ,अपेक्षाकृत इस तरफ कोई आता नहीं था,गली सुनसान पडी रहती थी। 

"इस तरफ से हम जल्दी पहुँच जायेगे अंजु ने कहा।
"हम्म्म्"मैं चुप थी गली में झुटपुटा अंधेरा था, थोड़ी-बहुत रोशनी कुछ घरों की खुली खिड़कियों से आ रही थी।
गली के मुहाने कुछ ठीक पहले अचानक स्कूटर किसी पत्थर से लगा और उछल पड़ा, डगमगाता  किसी चीज से टकरायी इससे पहले कि कुछ समझ आता  स्कूटी पलट गयी।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ।

  5 मिनट बाद अंजु की धीमी आवाज सुनाई दी मुझे पुकार रही थी,मेरे पैर और कुहनी छिल गये थे बैग कंधे से निकलकर दूर गिरा दिखा,मैं लड़खड़ाते कदमों से उसके पास गयी वो भी उठ बैठी हेलमेट की वजह से खास चोट नहीं आयी थी उसे बाँह पर कुरता फटकर झूल गया था गालों के पास रगड़ से खून निकल आया था।
अंजु हिम्मत बटोर कर मेरे सहारे उठी और स्कूटी को देखने लगी,घरों से छनकर आती मध्म रोशनी में देखने पर पता चला स्कूटी की हेडलाईट टूट गयी थी,हैंडिल भी टेढ़ा हो गया था।और कुछ दीख नही रहा था ।

उसने कहा," तू जा तेरी बस की हॉर्न सुनाई पड़ रही मैं भी चली जाऊँगी तू चिंता न कर।"

चप्पल ढूँढकर शरीर में होने वाली पीड़ा को जब्त कर जैसे दो आगे कदम बढ़ी चौंककर ठिठक गयी ।मैं चीख पडी़ तब तक अंजु भी आ गयी देखा सामने एक आदमी औंधें मुँह गिरा हुआ था निश्चल निःशब्द, मुझे चक्कर आ गया,अंजु भी घबरा गयी ,हम दोनों बहुत डर गये थे,पसीने से भींग गयी मैं हाथ पैर काँपने लगे अंजु ने कहा, "तू जा देख बस आ रही है"।मेरे मुँह से एक शब्द न निकला।
उस आदमी को वैसी ही हालत में छोड़कर बस में बैठकर  मैं कैसे घर पहुँची कुछ भी याद नहीं।माँ मेरी हालत देखकर परेशान थी लगातार पूछे जा रही क्या हुआ मैं बस इतना कह पायी कि गट्ठे में गिर पड़ी थी मैं, तबियत खराब हो गयी है कॉलेज में ही,  आराम कर लूँगी तो ठीक हो जाऊँगी। सारी रात छटपटाहट में बीती बार बार वो आदमी आँखों के सामने घूम जाता ,खुद को कोसती रही क्यूँ छोड़ आयी ऐसे हाल में उसे।अंजु सेे कोई संपर्क न हो पाया उस वक्त।

                सुबह सुबह पापा की बड़बड़ाहट सुनी, "जाने क्या हो गया है लोगों को कितने असंवेदनशील हो गये है.माँ ने पूछा तो जोर से पढ़कर  सुनाने लगे,

"अलकनंदा अपार्टमेंट के पीछे वाली गली में एक गरीब मज़दूर गंभीर घायल अवस्था में पाया गया।आधी रात को दस बजे अलकनंदा के सिक्योरिटी गार्ड लघुशंका के लिए जब गया तो इस मज़दूर को देखा फिर उसने पुलिस पेट्रोलिंग वाहन को सूचना दी उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। फिलहाल वो खतरे से बाहर है पर देर से अस्पताल पहुँचाने की वजह से पैर में लगी लगी चोट से खून ज्यादा बह गया टिटनेस का खतरा था इसलिए एक टाँग काट दी गयी है उसके परिवार में उसकी अंधी बूढ़ी माँ के अलावा बीबी और दो छोटी बेटियाँ है।"

    मुझे समझ न आया कि उसके ज़िदा होने कि खबर पे खुश होऊँ या उसके अपाहिज होने का शोक मनाऊँ।किसी से मन का ये बोझ नहीं बाँट पायी।फिर परीक्षा मे डुबो लिया खुद को ,बाद में अंजू.से शादी के समय मिली पर इस बारे में बात नहीं हो पायी और उसकी शादी के बाद उससे सम्पर्क टूट गया।

            वक्त की तह में दब गयी थी ये दुर्घटना पर आज शाम की एक घटना ने फिर से मुझे वहीं लाकर खड़ा कर दिया।
दो सप्ताह के बाद रिश्तेदारी में एक शादी थी जिसमें मुझे सम्मिलित होना था, उसी के  लिए शॉपिग करने बाज़ार जा रही थी ।मुख्य मार्ग के किनारे एक जगह भीड़ देख ऑटो वाला रूक गया उत्सुकतावश मैं भी उतर गयी भीड़ के बीच में देखा तो एक रिक्शा चालक खून से लथपथ बेसुध पड़ा था। लोग बातें करने में मशगुल थे कुछ विडियो बना रहे थे पर मदद के लिए कोई पहल नहीं दीखी। मैंने अपने ऑटोरिक्शा वाले को कहा कि चलो इसे उठाओ तो वो बहाने बनाने लगा कहा,"फालतू पुलिस के लफड़े में फँसना मैडम।मुझे किसी की परवाह नहीं थी मैंने पक्का इरादा कर लिया कैसे भी इसे पहुँचाना है अस्पताल।मैंने वहाँ खडे़ लोगों से कहा ,"सोचो कल आपके परिवार के किसी सदस्य के साथ ऐसा हो जाये और कोई मदद न करे तो कैसा लगेगा??"एक दूसरा रिक्शावाला तैय्यार हो गया साथ चलने को एक दो लोग की मदद से ऑटो में लिटाकर उसे अस्पताल में भर्ती करवाया।पुलिस और अस्पताल की सारी प्रक्रिया पूरी करके घर लौट आयी। मन बहुत व्याकुल है।जाने वो बच पायेगा भी कि नहीं डॉक्टर कह रहे थे बहुत गंभीर हालत है सिर पे चोट आयी है खून काफी बह गया है।खून चढ़ाना पड़ेगा,मेरा ब्लड ग्रुप O+ है सो काम आ गया।
       अचानक सेलफोन का रिंगटोन बजा मैं घबराये मन और थरथराते हाथों से फोन कान से लगाया उधर से आवाज़ आयी,"मैडम आपके पेशेंट को होश आ गया है अब वो खतरे से बाहर है।" पलकें गीली हो गयी,मन से जैसे कोई बोझ कम गया हो।
पूरब के आसमां की लाली मन का उजाला बनकर फैल गयी।

            #श्वेता🍁
   
 



Tuesday 30 May 2017

किस तरह भुलाऊँ उनको

ऐ दिल बता किस तरह भुलाऊँ उनको
फोडूँ शीशा ए दिल न नज़र आऊँ उनको

काँटें लिपटे मुरझाते नहीं गुलाब यादों के
तन्हा बाग में रो रोके गले लगाऊँ उनको

दूर तलक हर सिम्त परछाईयाँ नुमाया है
कैसे मैं बात करूँ कहाँ से लाऊँ उनको

जबसे भूले वो रस्ता मेरा दर सूना बहुत
तरकीब बता न कैसे याद दिलाऊँ उनको

दिल के खज़ाने की पूँजी है चाहत उनकी
किस तरह खो दूँ मैं कैसे गवाऊँ उनको

       #श्वेता🍁

Friday 26 May 2017

तुम्हारा स्पर्श


मेरे आँगन से बहुत दूर
पर्वतों के पीछे छुपे रहते थे
नेह के भरे भरे बादल
तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श पाकर
मन की बंजर प्यासी भूमि पर
बरसने लगे है बूँद बूँद
रिमझिम फुहार बनकर
अंकुरित हो रहे है
बरसों से सूखे उपेक्षित पड़े
इच्छाओं के कोमल बीज
तुम्हारे मौन स्पर्श की
मुस्कुराहट से
खिलने लगी पत्रहीन
निर्विकार ,भावहीन
दग्ध वृक्षों के शाखाओं पे
 गुलमोहर के रक्तिम पुष्प
भरने लगे है रिक्त आँचल
इन्द्रधनुषी रंगों के फूलों से
तुम्हारे शब्दों के स्पर्श
तन में छाने लगे है बनकर
चम्पा की भीनी सुगंध
लिपटने लगे है शब्द तुम्हारे
महकती जूही की लताओं सी
तुम्हारे एहसास के स्पर्श से
मुदित हृदय के सोये भाव
कसमसाने लगे है आकुल हो
गुनगुनाने लगे है गीत तुम्हारे
बर्फ से जमे प्रण मन के
तुम्हारे तपिश के स्पर्श में
गलने लगे है कतरा कतरा
हिय बहने को आतुर है
प्रेम की सरिता में अविरल
देह से परे मन के मौन की
स्वप्निल कल्पनाओं में
       
        #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...