Sunday 18 June 2017

मेरी बिटिया के पापा


कल रात को अचानक नींद खुल गयी, बेड पर तुम्हें न पाकर मिचमिचाते आँखों से सिरहाने रखा फोन टटोलने कर टाईम देखा तो  1:45 a.m हो रहे थे।बेडरूम के भिड़काये दरवाजों और परदों के नीचे से मद्धिम रोशनी आ रही थी , शायद तुम ड्राईंंग रूम में हो, आश्चर्य और चिंता के मिले जुले भाव ने मेरी नींद उड़ा दी। जाकर देखा तो तुम सिर झुकाये एक कॉपी में कुछ लिख रहे थे।इतनी तन्मयता से कि मेरी आहट भी न सुनी।
ओह्ह्ह....,ये तो बिटिया की इंगलिश  लिट्रेचर की कॉपी है! तुम उसमें कुछ करैक्शन कर रहे थे।कल उसने एक निबंध लिखा था बिना किसी की सहायता के और तुमसे पढ़ने को कहा था , तब तुमने उससे वादा किया था आज जरूर पढ़ोगे, पर तुम्हारे व्यस्त दिनचर्या की वजह से आज भी तुम लेट ही आये और निबंध नहीं चेक कर पाये थे। मैंने धीरे से तुम्हारा कंधा छुआ तो तुमने चौंक कर देखा और शांत , हौले से  मुस्कुराते हुये कहा कि ' उसने इतनी मेहनत से खुद से कुछ लिखा है अगर कल पर टाल देता तो वो निराश हो जाती न।'
ऐसी एक नहीं अनगिनत घटनाएँ और छोटी छोटी बातें है बिटिया के लिए तुम्हारा असीम प्यार अपने दायित्व के साथ क़दमताल करता हुआ दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। उसके जन्म के बाद से ही एक पिता के रूप में  तुमने हर बार विस्मत किया है।
मुझे अच्छी तरह याद है बिटिया के जन्म के बाद पहली बार जब तुमने उसे छुआ था तुम्हारी आँखें भींग गयी थी आनंदविभोर उसकी उंगली थामें तुम तब तक बैठे रहे जब तक अस्पताल के सुरक्षा कर्मियों ने आकर जाने को नहीं कहा। उसकी एक छींक पर मुझे लाखों हिदायतें देना,उसकी तबियत खराब होने पर रात भर मेरे साथ जागना बिना नींद की परवाह किये जबकि मैं जानती हूँ 5-6  घंटों से ज्यादा सोने के लिए कभी तुम्हारे पास वक्त नहीं होता। उसकी पहले जन्मदिन से ही भविष्य के सपनों के पूरा करने के लिए जाने क्या-क्या योजनाएँँ बना रहे। बिटिया भी तो उसकी कोई बात बिना पापा को बताये पूरी कब होती है। जितना भी थके हुए रहो तुम पर जब तक दिन भर की सारी बातें न कह ले तुम्हें दुलार न ले सोती ही नहीं, तुम्हारे इंतज़ार में छत से अनगिनत बार तुम्हारी गाड़ी झाँक आती है। मम्मा पा फोन किये थे क्या उनको लेट होगा? अब तक आये क्यों नहीं..? तुम्हारे आने के समय में देर हो तो अपना फेवरेट टी.वी. शो भूलकर सौ बार सवाल करती रहती है।
जब तुम दोनों मिलकर मेरी हँसी उड़ाते मुझे चिढ़ाते हो,खिलखिलाते हो... भले ही मैं चिड़चिडाऊँ पर मन को मिलता असीम आनंद शब्दों म़े बता पाना मुश्किल है।

तुम दोनों का ये प्यार देखकर मेरे पापा के प्रति मेरा प्यार और गहरा हो जाता है, जो भावनाएँ मैं नहीं समझ पाती थी उनकी, अब सारी बातें समझने लगी हूँ उन सारे पलों को फिर से जीने लगी हूँ।
पापा को कभी नहीं बता पायी मैं उनके प्रति मेरी भावनाएँ, पर आज सोच रही हूँ कि इस बार उनसे जाकर जरूर कहूँगी कि उनको मैं बहुत प्यार करती हूँ।

तुम्हें अनेको धन्यवाद देना था ,नहीं तुम्हारी बेटी के प्रति तुम्हारे प्यार के लिए नहीं बल्कि मेरे मेरे पापा के अनकहे शब्दों को उनकी अव्यक्त भावनाओं को तुम्हारे द्वारा समझ पाने के लिए।

  #श्वेता सिन्हा

Saturday 17 June 2017

मौन

बस शब्दों के मौन हो जाने से
न बोलने की कसम खाने से
भाव भी क्या मौन हो जाते है??
नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के
एहसास भी क्या मौन हो जाते है??

एक प्रतिज्ञा भीष्म सी उठा लेने से
अपने हाथों से स्वयं को जला लेने से
बहते मन सरित की धारा मोड़ने से
उड़ते इच्छा खग के परों को तोड़ने से
नहीं महकते होगे गुलाब शाखों पर
चुभते काँटे मन के क्या मौन हो जाते है??

ख्वाबों के डर से न सोने से रात को
न कहने से अधरों पे आयी बात को
पलट देने से ज़िदगी किताब से पन्ने
न जीने से हाथ में आये थोड़े से लम्हें
वेदना पी त्याग का कवच ओढकर
अकुलाहट भी क्या मौन हो जाते है??

       #श्वेता🍁

Friday 16 June 2017

एक बार फिर से

मैं ढलती शाम की तरह
तू तनहा चाँद बन के
मुझमे बिखरने आ जा
बहुत उदास है डूबती
साँझ की गुलाबी किरणें
तू खिलखिलाती चाँदनी बन
मुझे आगोश मे भरने आजा
दिनभर की मुरझायी कली
कोर अब भींगने  लगे
भर रातरानी की महक
हवा बनके लिपटने आजा
परों को समेट घर लौटे
परिदें भी अब मौन हुए
तू साँझ का दीप बन जा
मन मे मेरे जलने आ जा
सारा दिन टटोलती रही
सूने अपने दरवाजे को
कोई संदेशा भेज न
तू आँखों मे ठहरने आजा
बेजान से फिरते है
बस तेरे ख्याल लिए
एहसास से छू ले फिर से
धड़कनों मे महकने आजा

     #श्वेता🍁


Thursday 15 June 2017

पापा

पापा,घने, विशाल वट वृक्ष जैसे है
जिनके सघन छाँह में,
हम बनाते है बेफ्रिक्र होकर
कच्चे पक्के जीवन के घरौंदे
और बुनियाद में रखते है
उनके अनुभवों की ईंट,
पापा के मजबूत काँधे पर चढ़कर
आसमान में उड़ने का स्वप्न देखते है
इकट्ठे करते है सितारे ख्वाहिशों के
और पापा की जेब में भर देते सारे,
उनके पास दो जादू भरे हाथ होते है
जिसमें पकडकर अनुशासन,
स्नेह और सीख की छेनी हथौड़ी
वो तराशते है बच्चों के
अनगिनत सपनों को,
अपने हृदय के भाव को
व्यक्त नहीं करते कभी पापा
सहज शांतचित्त गंभीर
ओढ़कर आवरण चट्टान का
खड़े रहते है हमसे पहले
हमारे छोटी से छोटी परेशानी में
कोई नहीं जानता पापा की
सोयी इच्छाओं के बाबत
क्योंकि पापा जीते है हमारे
अतीत, वर्तमान और भविष्य,
की कामनाओं को
पापा की उंगली पकड़कर
जब चलना सीखते है
हम भूल जाते है
जीवन राह के कंटकों को
डर नहीं लगता जग के
बीहड़ वन की भयावहता में
दिनभर के थके पापा के पास
लोरियाँ नहीं होती बच्चों को
सुलाने के लिए
पर उनकी सबल बाहों के
आरामदायक बिस्तर पर
चिंतामुक्त नींद आती है
पापा वो बैंक है
जिसमें जमा करते है
अपनी सारे दुख, तकलीफ,
परेशानी,ख्वाहिशें और अनगिनत आशाएँ,
और बदले में पाते है एक निश्चत
चिरपरिचित विश्वास ,सुरक्षा घेरा
और अमूल्य सुखी जीवन
की सौगात उनके आशीष के रूप मे।
    #श्वेता🍁

Wednesday 14 June 2017

तेरी तलबदार

तन्हाई मेरी बस तेरी ही तलबदार है
दिल मेरा तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है

तेरे चेहरे पे उदासी के निशां न हो
आँख़े तुम्हारी मुस्कां की तरफदार है

बिन बहार महकी है बगिया दिल की
तेरी रूह की तासीर ही खुशबूदार है

जी नहीं पायेगे तेरी आहटों के बिन
पलभर का साथ तेरा इतना असरदार है

जो भी दिया तुमने रहमत लगी खुदा की
हर एक पल के एहसास तेरे कर्जदार है

       #श्वेता🍁

Tuesday 13 June 2017

भँवर

स्याह रात की नीरवता सी
शांत झील मन में
तेरे ख्यालों के कंकर
हलचल मचाते है
एक एक कर गिरते
जल को तरंगित करते
लहरें धीरे धीरे तेज होती
किनारों को छूती है
भँवर बेचैनी की तड़प बन
खींचने लगते है
बेबस बेकाबू मन सम्मोहित
अनन्त में उतर जाता है
निचोड़कर प्राण  फिर
छोड़ देता है सतह पर
निर्जीव देह जिसे सुध न रहती
बहता जाता है मानो
जीवन के प्रवाह में अंत की तलाश में

#श्वेता🍁




तुम्हारे लिए

ज़हन के आसमान पर
दिनभर उड़ती रहती,
ढूँढ़ती रहती कुछपल का सुकून,
बेचैन ,अवश, तुम्हारी स्मृतियों की तितलियाँ
बादलों को देख मचल उठती
संग मनचली हवाओं के
छूकर तुम्हें आने के लिए,
एक झलक तुम्हारी
अपनी मुसकुराहटों मे
बसाने के लिए,
टकटकी लगाये चाँद को
देखती तुम्हारी आँखों में
चाँदनी बन समाने के लिए,
अपनी छवि तुम्हारी उनींदी पलकों में
छिपकर देखने को आतुर
तुम्हारे ख़्यालों के गलियारे में
ख़्वाब में तुमसे बतियाने के लिए,
तुम्हारे लरजते ज़ज़्बात में
खुद को महसूस करने की
चाहत लिए
तन्हाई में कसमसाती,
कविताओं के सुगंधित
उपवन मे विचरती,
शब्दों में खुद को ढ़ूँढ़ती
तितलियाँ उड़ती रहती हैंं,
व्याकुल होकर
प्रेम पराग की आस में,
बस तुम्हारे ही ख़्यालों के
मनमोहक फूल पर।


      #श्वेता


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...