Sunday 6 August 2017

आवारा चाँद

दूधिया बादलों के
मखमली आगोश में लिपटा
माथे पर झूलती
एक आध कजरारी लटों को
अदा से झटकता
मन को खींचता मोहक चाँद
झुककर पहाड़ों की
खामोश नींद से बेसुध वादियों के
भीगे दरख्तो के
बेतरतीब कतारों में उलझता
डालकर अपनी चटकीली
काँच सी चाँदनी बिखरा
ओस की बूँदों पर छनककर
पत्तों के ओठों को चूमता
मदहोश लुभाता चाँद
ठंडी छत के आँगन से होकर
झाँकता झरोखें से
हौले हौले पलकों को छूकर
सपनीले ख्वाब जगाता चाँद
रात रात भर भटके
गली गली क्या ढ़ूँढता जाने
ठहरकर अपलक देखे
मुझसे मिलने आता हर रोज
जाने कितनी बातें करता
आँखों में मुस्काता
वो पागल आवारा चाँद

    #श्वेता🍁


भैय्या तेरी याद


बचपन की वो सारी बातें
स्मृति पटल पर लोट गयी
तुम न आओगे सोच सोच
भरी पलकें आँसू घोंट गयी
वीरगति को प्राप्त हुये तुम
भैय्या तुम पर हमें  नाज़ है
सूना आँगन चुप घर सारा
बस सिसकियों का राज़ है
छुप छुप रोये माँ की आँखें
पापा भी मौन उदास है
रोऊँ मैं कौन चुप करायेगा
लूडो में मुझे हारता देखकर
कौन मुझको जितवायेगा
चोरी से छुपके सबसे अब
पिक्चर कौन ले जायेगा
पॉकेटमनी बचा बचाकरके
मँहगी किताबें कौन दिलवायेेेगा
तुम बिन राखी आकर जायेगी
कितना भी समझाऊँ खुद को
भैय्या तेरी याद बहुत ही आयेगी
न होगी वो होली, दिवाली, दूज
ये वेदना रह रह मुझे रूलायेगी
नियति के क्रूर लेख से हारकर
तेरी कमी आजीवन न भर पायेेेगी
   #श्वेता🍁
चित्र साभार गूगल

Thursday 3 August 2017

मन मुस्काओ न छोड़ो आस

मन मुस्काओ न छोड़ो आस

जीवन के निष्ठुर राहों में
बहुतेरे स्वप्न है रूठ गये
विधि रचित लेखाओं में
है नीड़ नेह के टूट गये
प्रेम यज्ञ की ताप में झुलसे
छाले बनकर है फूट गये
मन थोड़ा तुम धीर धरो
व्यर्थ नयन न नीर भरो

न बैठो तुम होकर निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

उर विचलित अंबुधि लहरों में
है विरह व्यथा का ज्वार बहुत
एकाकीपन के अकुलाहट में
है मिलते अश्रु उपहार बहुत
अब सिहर सिहर के स्वप्नों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं
फैले हाथों में रख तो देते हो
स्नेह की भीख वो प्यार नहीं

रहे अधरों पर तनिक प्यास
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

अमृतघट की चाहत में मैंने
पल पल खुद को बिसराया है
मन मंदिर का अराध्य बना
खरे प्रेम का दीप जलाया है
देकर आहुति अब अश्कों की
ये यज्ञ सफल  कर जाना है
भावों का शुद्ध समर्पण कर
आजीवन साथ निभाना है

कुछ मिले न मिले न हो निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

      #श्वेता🍁


Wednesday 2 August 2017

भरा है दिल

भरा है दिल,पलकों से बह जायेगा
भीगा सा कतरा,दामन में रह जायेगा

न बनाओ समन्दर के किनारे घरौंदा
आती है लहर, ठोकरों में ढह जायेगा

रतजगे ख्वाबों के दर्द जगा जाते है
खामोश है दिल, सारे गम़ सह जायेगा

अनजाने रस्ते है जीवन के सफर में
काफिला यादों का, साथ रह जायेगा

गैर नहीं दिल का हिस्सा है तुम्हारे
तुम भी समझोगे, वक्त सब कह जायेगा

          #श्वेता🍁

दिल पे तुम्हारे

दिल पे तुम्हारे कुछ तो हक हमारा होगा
कोई लम्हा तो याद का तुमको प्यारा होगा

कब तलक भटकेगा इश्क की तलाश में
दिली ख्वाहिश का कोई तो किनारा होगा

रात तो कट जाएगी बिन चाँदनी के भी
न हो सूरज तो दिन का कैसे गुजारा होगा

पूछती है उम्मीद भरी आँखें बागवान की
लुटती बहार मे कौन फूलों का सहारा होगा

तोड़ आते रस्मों की जंजीर तेरी खातिर
यकीन ही नहीं तुमने दिल से पुकारा होगा

     #श्वेता🍁



Monday 31 July 2017

लाल मौत


कल तक अधमरी हो रही
सिकुड़ी गिन साँसे ले रही
पाकर वर्षा का अमृत जल
बलखाती बहकने लगी नदी
लाल पानी तटों को तोड़कर
राह बस्ती गाँवों पर मोड़कर
निगलती जाती है लाल मौत

पाई जोड़ कर रखेे  सपने
दो रोटी सूखी अमृत चखते
छतों को छानते डेगची में
टूटी चारपाई में पाँव  सिकोड़े
कुटिया में चैन से पड़े लोग
इतना क्यों तुम्हे मन भा गये
बस्ती में लाल कफन बिछा गये
पलक झपकते मौत बने खा गये

लाल मौत से जीने की जंग लिये
ऊँची पेड़ की शाख पर लटके
कहीं स्कूल की छत पर चिल्लाते
अधनंगे भूख से बिलबिलाते
माँओं की छाती नोचते बच्चे
सूखे अधरों पर जीभ फेरते
मरियल सूखे देह का बोझ लादे
बूढ़ी पनीली  उम्मीद भरी आँखें
आसमां देखते है टकटकी बाँधे
भोजन के पैकेट लिए देवदूतो की

राहत शिविरों के गंदे टेंटों में
जानवरों के झुण्ड से रिरियाते
बेहाल जीने को मजबूर ज़िदगी
मुट्ठी भर अनाज भीख माँगते
मददगार बन आये व्यापारियों से
परिवार से बिछुड़ी औरतों को
जबह करने को आतुर राक्षस
ब्रेकिंग न्यूज बनाती मीडिया
आश्वासन के कपड़े पहनाते
कागज़ो पर राहत दिखाते
संवेदहनहीन बड़बोले नुमाईदे

लाल पानी उतरने के बाद की
बदबू , सडन , गंदगी को झेलते
लुट गये सपनों की चिंदियाँ समेटे
महामारी की आशंंका से सहमेे
खौफ ओढ़े वापस लौट जाते है
अपनी लाशों को अपने काँधे लादे
टूटे दरके आशियाने में फिर से
तलाशने दो रोटियाँ  सुख की
लाल पानी के कोप से जीवित
अंधेरों को चीरकर आगे बढ़ते
लाल पानी लाल मौत को हराते
जीना सिखलाते बहादुर लोग

    #श्वेता🍁

Saturday 29 July 2017

किस गुमान में है

आप अब तक किस गुमान में है
बुलंदी भी वक्त की ढलान में  है

कदम बेजान हो गये ठोकरों से
सफर ज़िदगी का थकान में  है

घूँट घूँट पीकर कंठ भर आया
सब्र  गम़ का इम्तिहान  में  है

डरना नही तीरगी से मुझको
भोर का सूरज दरम्यान में है

नीम  सी लगी  वो बातें   सारी
कड़वाहट अब भी ज़बान में है


  #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...