Tuesday 15 August 2017

उड़े तिरंगा शान से

उन्मुक्त गगन के भाल पर
उड़े तिरंगा शान से
कहे कहानी आज़ादी की
लहराये सम्मान से

रक्त से सींच रहे नित जिसे
देकर अपने बहुमूल्य प्राण
रखो सँभाल अमूल्य निधि
है आज़ादी जीवन वरदान
न भूलो उन वीर जवानों को
शहीद हुये जो आन से
बिना कफन की आस किये
सो गये सीना तान के

सत्तर वर्षों का लेखा जोखा
क्या खोया क्या पाया सोचे
क्या कम है गद्दारों से वो नेता
भोली जनता को जो नोचे
जागो उठो खुद देखो समझो
सुन सकते हो कान से
नर नारायण तुम ठान लो गर
सब पा सकते हो मान से

मातृभूमि के रक्षा से बढ़कर
और कोई भी संकल्प नहीं
आत्मसम्मान से जीने का
इससे अच्छा है विकल्प नहीं
आज़ादी को भरकर श्वास में
दो सलामी सम्मान से
जब तक सूरज चाँद रहे नभ पे
फहरे तिरंगा शान से

    #श्वेता🍁

Sunday 13 August 2017

कान्हा जन्मोत्सव



 कान्हा जन्मोत्सव की शुभकामनाएँ
भरी भरी टोकरी गुलाब की
कान्हा पे बरसाओ जी
बेला चंपा के इत्र ले आओ
इनको स्नान कराओ जी
मोर मुकुट कमर करधनी
पैजनिया पहनाओ जी
माखनमिसरी भोग लला को
जी भर कर के लगाओ जी
कोई बन जाए राधा रानी
बन गोपी रास रचाओ जी
ढोल मंजीरे करतल पे ठुमको 
मीरा बन कोई गीत सुनाओ जी
सखा बनो कोई बलदाऊ बन 
मुरलीधर को मुरली सुनाओ जी
नंद यशोदा बन झूमो नाचो
हौले से पलना डुलाओ जी 
मंगल गाओ खुशी मनाओ
मंदिर दीपों से सजाओ जी
खील बताशे मेवा मिठाई 
खुलकर आज लुटाओ जी 
जन्मदिवस मेरे कान्हा का है
झूम कर उत्सव मनाओ जी
कृष्णा कृष्णा हरे हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा ही गुण गाओ जी

तुम एक भारतवासी हो

*चित्र साभार गूगल*

किसी जाति धर्म के हो किसी राज्य के वासी हो
कभी न भूलो याद रखो तुम एक भारतवासी हो

खेत हमारी अन्नपूर्णा जीवन हरा सुख न्यारा है
साँसों में घुले संजीवन ये पवन झकोरा प्यारा है
पर्वत के श्रृंगार से दमके नभ भू मंडल सारा है
कलकल बहती नदिया मासूम कभी आवारा है
बहुरंगी छटा निराली जैसे देश मेरा वनवासी हो
कभी न भूलो  याद रखो तुम एक भारतवासी हो

पहनो चाहे रेशम ,टाट ,मलमल खद्दर फर्क नहीं
रहलो जैसे महल झोपड़ी रस्ते पर भी तर्क नहीं
गीता,कुरान,बाइबिल,गुरूग्रंथ प्रेम कहे दर्प नहीं
विविध रंग से सजी रंगोली स्वर्ग सुंदर नर्क नहीं
पग पग काबा और मदीना लगे मथुरा काशी हो
कभी न भूलो याद रखो तुम एक भारतवासी हो

कदम बढ़ाओ हाथ मिलाओ नवभारत निर्माण करो
कैसे न जागेगा भाग्य अब सत्य का तुमुलनाद करो
भूख,अशिक्षा,भ्रष्टाचार के समूल वंश का नाश करो
लेके दीप विकास का भारत को स्वच्छ साफ करो
तुम ही कर्मशील तुम जाज्वल्यमान संन्यासी हो
कभी न भूलो  याद रखो तुम एक भारतवासी हो

मस्तक ऊँचा रहे  देश का मान न कोई हर पाये
रख देना तुम आँख फोड़ के न कोई शत्रु ठहर पाये
नापाक इरादे माँ के आँचल पर न कोई कदम आये
शपथ उठा ले तिरंगे की ले गंगाजल ये कसम खाये
तुम ही तो हो देश के रक्षक शिव अंश अविनाशी हो
कभी न भूलो याद रखो तुम एक भारतवासी हो

    #श्वेता🍁

Friday 11 August 2017

भूख

*चित्र साभार गूगल*
भूख
एक शब्द नहीं
स्वयं में परिपूर्ण
एक संपूर्ण अर्थ है।
कर्म का मूल आधार
है भूख
बदले हुये
स्थान और
भाव के साथ
बदल जाते है
मायने भूख के

अक्सर
मंदिर के सीढ़ियों पर
रेलवे स्टेशनों पर
लालबत्ती पर
बिलबिलाते
हथेलियाँ फैलाये
खड़ी मिलती है
रिरियाती भूख

हाड़ तोड़ते
धूप ,जाड़ा बारिश
से बेपरवाह
घुटने पेट पर मोड़े
खेतों में जुते
कारखानों की धौंकनी
में छाती जलाते
चिमनियों के धुएँ में
परिवार के सपने
गिनते लाचार भूख

देह की भूख
भारी पड़ती है
आत्मा की भूख पर
लाचार निरीह
बालाओं को
नोचने को आतुर
लिजलिजी ,भूखी आँखों
को सहती भूख

जनता को लूटते
नित नये स्वप्न दिखाकर
अलग अलग भेष में
प्रतिनिधि बने लोगों
की भूख
विस्तृत होती है
आकाश सी अनंत
जो कभी नहीं मिटती
और दो रोटी में
तृप्त होती है
संतोष की भूख

मान, यश के
लिए
तरह-तरह के
मुखौटे पहनती
लुभाती
अनेकोंं
आकार-प्रकार
से सुसज्जित
भूख

मन की भूख
अजीब होती है
लाख बहलाइये
दुनिया की
रंगीनियों में
पर
मनचाहे साथ
से ही तृप्त होती है
मन की भूख।

   #श्वेता सिन्हा

Wednesday 9 August 2017

"छोटू"


आज़ादी का जश्न मनाने
के पहले एक नज़र देखिये
कंधे पर फटकर झूलती
मटमैली धूसर कमीज
चीकट हो चुके धब्बेदार
नीली हाफ पैंट पहने
जूठी प्यालियों को नन्ही
मुट्ठियों में कसकर पकड़े
इस मेज से उस मेज दौड़ता
साँवले चेहरे पर चमकती
पीली आँख मटकाता
भोर पाँच बजे ही से
चाय समोसे की दुकान पर
नन्हा दुबला मासूम सा 'छोटू'
किसी की झिड़की किसी
का प्यार किसी की दया
निर्निमेष होकर सहता
पापा के साथ दुकान आये
नन्हें हम उमर बच्चों को
टुकुर टुकुर हसरत से ताकता
मंगलवार की आधी छुट्टी में
बस्ती के बेफ्रिक्र बच्चों संग
कंचे, गिट्टू, फुटबॉल खेलता
नदी में जमकर नहाता
बेवजह खिलखिलाता
ठुमकता फिल्मी गाने गाता
अपने स्वाभिमानी जीवन से
खुश है या अबोधमन बचपना
वक्त की धूप सहना सीख गया
रोते रोते गीला बचपन
सूख कर कठोर हो गया है
सूरज के थक जाने के बाद
चंदा के संग बतियाता
बोझिल शरीर को लादकर
कालिख सनी डेगची और
खरकटे पतीलों में मुँह घुसाये
पतले सूखे हाथों से घिसता
 थककर निढाल सुस्त होकर
बगल की फूस झोपड़ी में
अंधी माँ की बातें सुनते
हाथ पैर छितराये सो जाता।
        #श्वेता🍁
  *चित्र साभार गूगल*

Tuesday 8 August 2017

मोह है क्यूँ तुमसे

                                चित्र साभार गूगल
मोह है क्यूँ 
तुमसे बता न सकूँगी
संयम घट
मन के भर भर रखूँ
पाकर तेरी गंध
मन बहका जाये 
लुढकी भरी
नेह की गगरी ओर तेरे
छलक पड़ी़ बूँद 
भीगे तृषित मन लगे बहने
न रोकूँ प्रवाह 
खुद को मैं
और अब समझा न सकूँगी
ज्ञात अज्ञात 
सब समझूँ सब जानूँ
ज्ञान धरा रहे
जब अंतर्मन में आते हो तुम
टोह न मिले तेरी
आकुल हिय रह रह तड़पे
हृदय बसी छवि
अब भुला न सकूँगी
दर्पण तुम मेरे सिंगार के
नयनों में तेरी
देख देख संवरूँ सजूँ पल पल
सजे सपन सलोने
तुम चाहो तो भूल भी जाओ
साँस बाँध ली
संग साँसों के तेरे
चाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी

      #श्वेता🍁

Sunday 6 August 2017

आवारा चाँद

दूधिया बादलों के
मखमली आगोश में लिपटा
माथे पर झूलती
एक आध कजरारी लटों को
अदा से झटकता
मन को खींचता मोहक चाँद
झुककर पहाड़ों की
खामोश नींद से बेसुध वादियों के
भीगे दरख्तो के
बेतरतीब कतारों में उलझता
डालकर अपनी चटकीली
काँच सी चाँदनी बिखरा
ओस की बूँदों पर छनककर
पत्तों के ओठों को चूमता
मदहोश लुभाता चाँद
ठंडी छत के आँगन से होकर
झाँकता झरोखें से
हौले हौले पलकों को छूकर
सपनीले ख्वाब जगाता चाँद
रात रात भर भटके
गली गली क्या ढ़ूँढता जाने
ठहरकर अपलक देखे
मुझसे मिलने आता हर रोज
जाने कितनी बातें करता
आँखों में मुस्काता
वो पागल आवारा चाँद

    #श्वेता🍁


भैय्या तेरी याद


बचपन की वो सारी बातें
स्मृति पटल पर लोट गयी
तुम न आओगे सोच सोच
भरी पलकें आँसू घोंट गयी
वीरगति को प्राप्त हुये तुम
भैय्या तुम पर हमें  नाज़ है
सूना आँगन चुप घर सारा
बस सिसकियों का राज़ है
छुप छुप रोये माँ की आँखें
पापा भी मौन उदास है
रोऊँ मैं कौन चुप करायेगा
लूडो में मुझे हारता देखकर
कौन मुझको जितवायेगा
चोरी से छुपके सबसे अब
पिक्चर कौन ले जायेगा
पॉकेटमनी बचा बचाकरके
मँहगी किताबें कौन दिलवायेेेगा
तुम बिन राखी आकर जायेगी
कितना भी समझाऊँ खुद को
भैय्या तेरी याद बहुत ही आयेगी
न होगी वो होली, दिवाली, दूज
ये वेदना रह रह मुझे रूलायेगी
नियति के क्रूर लेख से हारकर
तेरी कमी आजीवन न भर पायेेेगी
   #श्वेता🍁
चित्र साभार गूगल

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...