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Sunday 3 March 2024

मेरी चेतना


मेरी चेतना

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अनगिनत पहाड़ ऐसे हैं 

जो मेरी कल्पनाओं में भी समा न पाये,

असंख्य नदियों की जलधाराओं के

धुंध के तिलिस्म से वंचित हूँ;

बीहड़ों, काननों की कच्ची गंध,

चिडियों, फूलों ,तितलियों, रंगों

संसार के चुंबकीय जादुई दृश्यों के

अनदेखे ,अनछुए रहस्यों को

देखने के लिए,महसूसने के लिए

की गयी यात्राओं को ही जीवन का 

सर्वोत्तम सुख माना।

भावनाओं के समुंदर में

डूबती-उतराती,

सुख-दुख के मोती चुनकर

सजाती रही उम्र के आईने को,

जन्म का उद्देश्य तलाशती रही

सांसारिक बंधनों की गाँठों में...

चित्त की इच्छाओं की 

अर्थहीन प्रारूपों से उकताकर,

नेपथ्य के कोलाहल को अनसुना कर  

असीम शांति में 

विलीन होना चाहती हूँ,

अंतर्बोध की प्रक्रिया में

ज्ञात हुआ...

अनंत ,विराट प्रकृति 

जिसकी व्यापकता को किसी साक्ष्य या 

प्रमाण की आवश्यकता नहीं 

जिसकी अलौकिक आभा में

सदैव मन,बुद्धि,चित्त समग्रता में

निमज्जित हो जाते हैं

ऐसी संपदा जिसपर

मेरी आत्मा ने सदैव अपना

अधिकार समझा

जिसकी रहस्यमयी छुअन से

प्रेम की सभ्यता प्रतिष्ठित हुई

जिसकी दृष्टि स्पर्श ने

सम्मोहित कर

संसार के समस्त रागिनियों से

विरक्त कर दिया।

उस अलौकिक,दिव्य

ब्रह्मांड के रचयिता से

मेरी आत्मा का अनुनय है

सुनो प्रकृति!

मेरी चेतना

तुम्हारे संगीत को 

अपनी श्वासों का स्पंदन बनाकर 

मन्वंतर-संवत्सर के चक्रों से

मुक्त होकर

तुम्हारी गोद में

समाधिस्थ होना चाहती है।

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श्वेता 

३ मार्च २०२४

    

16 comments:

  1. अद्भुत ! ! संत कहते हैं, समाधिस्थ होने की यह कामना अनंत पुण्य के बाद किसी में जगती है, यदि यह पूर्ण हो जाये तो इसके बाद ही होता है, एकत्व का वह अनुभव जो मानव होने की उच्चतम अवस्था है

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  2. सुनो प्रकृति!
    मेरी चेतना
    तुम्हारे संगीत को
    अपनी श्वासों का स्पंदन बनाकर
    मन्वंतर-संवत्सर के चक्रों से
    मुक्त होकर
    तुम्हारी गोद में
    समाधिस्थ होना चाहती है।
    अद्भुत !! आध्यात्मिकता के विचारों से परिपूर्ण गहन सृजन । सस्नेह नमस्कार श्वेता जी !

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  3. सुख-दुख के मोती चुनकर
    सजाती रही उम्र के आईने को,
    जन्म का उद्देश्य तलाशती रही
    सांसारिक बंधनों की गाँठों में

    इस गतिशील जीवन में
    मात्र बस यही संभव है
    बेहतरीन चिंतन
    आभार...

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  4. सुंदर भावातिरेक रचना।
    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 6 मार्च 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. समाधि वे लेते हैं जो जीवन के सभी संदर्भों और क्रियाकलापों से परिचित हो जाते हैं,जिन्हें गृहस्थी के ज्ञान का भान तक नहीं होता.

    रचना जीवन के संदर्भों प्रकृति के पहलुओं और सांसारिक निर्माण की वकालत करती है, वह यह स्वीकारती है है कि यह सब आलौकिक है जो विजन से परे है.

    यह परे होना ही मनुष्य को अपने होने की परख को साबित करने की प्रेरणा देता है.

    स्वेता की लिखी यह रचना जीवन के उद्देश्य पूर्ण होने और उद्देश्य को कायम करने की पक्षधर है.

    समकालीन परिदृश्य की
    अद्भुत रचना
    बहुत बधाई

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  6. बहुत सुंदर रचना

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  7. बेहतरीन रचना👌

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  8. सर्वश्रेष्ठ व सर्वशक्तिमान विधाता के प्रतीकात्मक स्वरुप प्रतिमा के बजाय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में उपस्थित विधाता के मूल स्वरुप- प्रकृति के समक्ष या सानिध्य में आकर या फिर उन्हीं में विलीन होकर, जोकि .. अपने आप में अपने प्राकृतिक चमत्कारों से परिपूर्ण है, उसकी गोद में मन्वंतर-संवत्सर के चक्रों से मुक्त होते हुए समाधिस्थ होकर स्वयं को समर्पित करने की भावनाओं को शब्द चित्रों में यूँ उकेरना प्रशंसनीय तो है ही और अद्भुत भी .. पर .. प्रायोगिक नहीं .. शायद ...
    ऐसी ही भावनाओं से जुड़े प्रकृति प्रेमी लोगों को हमारा बुद्धिजीवी और आडंबरयुक्त प्रतिमा प्रेमी सभ्य समाज नास्तिक कहता है और उसके साथ किसी अस्पृश्य प्राणी होने जैसा व्यवहार करता है .. शायद ...
    वैसे तो इस प्रकार प्रकृति की दृश्य-अदृश्य सोंधी सुगन्ध के शब्द-चित्रों को मन की आँखों से निहारना .. उकेरना .. महसूसना ही स्वयं में एक सुखद अनुभूति है और ऐसा करते हुए ही अगर .. अनिमेष दृष्टि से टकटकी लगाई जाए तो, वो लम्हें भी .. किसी समाधिस्थ होने से कमतर नहीं होते .. बस यूँ ही ...

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  9. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  10. बहुत उम्दा सृजन । सादर ।

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  11. प्रिय श्वेता, देर से पहुंच पाई, खेद है! एक अत्यंत संवेदनशील कवियित्री का ये प्रकृति को मन का मार्मिक संवाद, विकल् आत्मा की सूक्ष्म अभिव्यक्ति है! लौकिक अस्तित्व से परे अपने आन्तरिक परिवेश से हर व्यक्ति का प्रतिपल वार्तालाप चलता है। तुम्हें देर से ही सही इस उत्कृष्ट सृजन और जन्मदिन के लिए ढेरों प्यार और आशीर्वाद! तुम्हारी लेखनी यशस्वी रहे यही दुआ है. हमेशा खुश रहो ❤️🌹

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  12. प्रकृति के रहस्यों को जानने का सर्वोत्तम माध्यम यात्राएँ है , इसके वाबजूद कवयित्री न जाने क्यों मुक्ति पाने की अभिलाषी है । अभी तो उम्र के उस पड़ाव पर नहीं पहुँची है जहाँ जीवन का उद्देश्य पूर्ण होने का आभास करा रहा हो । वैसे भी एक गृहस्थ केवल चाह ही सकता है । गहन और सुंदर भावों से परिपूर्ण भावों को सहेज कर अपने अंतर्मन को अभिव्यक्त करने का प्रयास सराहनीय है । जन्मदिन की अनंत शुभकामनाओं के साथ --
    तुम्हारी दी

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  13. पंक्ति पंक्ति अक्षर अक्षर ह्रदय ग्राही -- बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना - शुभ कामनाएं

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  14. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  15. चित्त की इच्छाओं की

    अर्थहीन प्रारूपों से उकताकर,

    नेपथ्य के कोलाहल को अनसुना कर

    असीम शांति में

    विलीन होना चाहती हूँ,

    जहाँ प्रकृति के असीम विराट स्वरूप में स्वयं उस असीम के दर्शन होने लगे , मन उस परमात्मा कौ महसूसने लगे तो उस अवस्था से वापस आकर किंचित मात्र देह में क्या सुख ?
    उस असीम के दर्शन के बाद कौन समाधिस्थ ना होना चाहेगा । परन्तु उसके बाद भी जीवन है तो अनेकों दर्शन हैं अभी भाग्य में...
    गूढ़ मनन एवं चिंतनपरक सृजन ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।