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Thursday, 16 February 2017

सोचती हूँ अक्सर..

सोचती हूँ अक्सर
तुम गुजरो कभी
मुझमें होकर
छूकर एहसास मेरे
कभी देखो नज़रभर
कभी चुन लो मुझे
मोतियों की तरह
उठा लो अंजुरी भर
फिर बैठकर
किसी चाँदनी रात की
सपनीली मुंड़ेर पर
प्रेम की डोरी में
टिमटिमाते सितारो की
नन्हें ख्वाहिशों को
गूँथ लो मुझे
और पहन लो
अपने साँसों में
अटूट माला की तरह
तुम्हारी धड़कन बन
लिपटी रहूँ वजूद से
कभी न जुदा होने को

                          #श्वेता🍁



8 comments:

  1. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ।।।।।

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  2. छूकर एहसास मेरे
    कभी देखो नज़रभर
    कभी चुन लो मुझे
    मोतियों की तरह
    उठा लो अंजुरी भर
    फिर बैठकर
    किसी चाँदनी रात की
    सपनीली मुंड़ेर पर
    प्रेम की डोरी में
    टिमटिमाते सितारो की
    नन्हें ख्वाहिशों को
    गूँथ लो मुझे
    और पहन लो


    निशब्द कर दिया इस कविता ने तो बस वाह शब्द भी बहुत छोटा लग रहा हैं। खुदा ये शब्दों की माला बनाये रखे

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 19 सितम्बर ,2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  4. सोचा, गुजरूँ तुमसे होकर,
    और देखो तुम नजर भर।
    गुजर न पाया, रह गया वहीं,
    मोती बनकर।
    अद्भुत अहसास।

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  5. बहुत सुन्दर मोती के समान.., अति सुन्दर ।

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  6. वाह!!!
    चाँदनी रात की सपनीली मुंडेर
    अप्रतिम एवं लाजवाब।

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  7. अनुरागरत हृदय की लौकिक और आलौकिक कामनाओं की सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता।प्रेम की अटूट डोर में गूंथे ये भाव अनमोल हैं।

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  8. टिमटिमाते सितारो की
    नन्हें ख्वाहिशों को
    गूँथ लो मुझे
    और पहन लो
    अपने साँसों में
    अटूट माला की तरह
    तुम्हारी धड़कन बन
    लिपटी रहूँ वजूद से
    कभी न जुदा होने को..
    ..मन के भावों और एहसासों को व्यक्त करता बहुत सुंदर और उतना ही अनूठा लेखन ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।