Pages

Thursday, 16 February 2017

यादें

ये साँसों से लिपटी हुई
गमों की गर्द
दिल की बेवजह तड़प
रह रह कर कसकती
चाह कर भी नहीं मिटती
बाँध रखा हो मानो
अपनी परछाई से
तोड़कर सारी जंजीरे
हम , देखना एक दिन
आज़ाद हो जायेगे
नहीं छू पायेगी तन्हाई
में सुबकती मायूसियाँ
बेसबब यादों का
नम सा सिलसिला
छोड़कर अनकहा दर्द
फिर,लौटकर वापस
आ जायेगी तेरी सदाएँ
वापस तेरे पास ही
हम ,एक दर्दभरी
फरियाद बन तुम्हें
बेइंतिहा याद आयेगे

                          #श्वेता🍁

No comments:

Post a Comment

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।