टूटकर फूल शाखों से झड़ रहे है
ठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है
भटके परिंदे छाँव की तलाश में
नीड़ो के सीवन अब उधड़ रहे है
अंजुरी में कितनी जमा हो जिंदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे है
ख्वाहिशो की भीड़ से परेशान दिल
और हसरत आपस में लड़ रहे है
राह में बिछे फूल़ो का नज़ारा है
फिर आँख में काँटे कैसे गड़ रहे है
#श्वेता🍁
ठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है
भटके परिंदे छाँव की तलाश में
नीड़ो के सीवन अब उधड़ रहे है
अंजुरी में कितनी जमा हो जिंदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे है
ख्वाहिशो की भीड़ से परेशान दिल
और हसरत आपस में लड़ रहे है
राह में बिछे फूल़ो का नज़ारा है
फिर आँख में काँटे कैसे गड़ रहे है
#श्वेता🍁
भावनापूर्ण अभिव्यक्ति। सुंदर
ReplyDeleteबहुत आभार ध्रुव जी।
Deleteअद्भुत अद्भुत। ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई को दर्शाती मोहक रचना।
ReplyDeleteअंजुरी में कितनी जमा हो ज़िन्दगी
बून्द बून्द हर पल फिसल रहे हैं।
सहजता से बड़ी बात कहना सबके वश की बात नही। आपकी प्रतिभा को नमन
जी बहुत शुक्रिया आभार अमित जी आपका।मेरी रचनाएँ पढ़ने के लिए बहुत बहुत आभार आपका अमित जी।
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