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Tuesday, 11 April 2017

ठाठ पत्तों के उजड़ रहे है

टूटकर फूल शाखों से झड़ रहे है
ठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है

भटके परिंदे छाँव की तलाश में
नीड़ो के सीवन अब उधड़ रहे है

अंजुरी में कितनी जमा हो जिंदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे है

ख्वाहिशो की भीड़ से परेशान दिल
और हसरत आपस में लड़ रहे है

राह में बिछे फूल़ो का नज़ारा है
फिर आँख में काँटे कैसे गड़ रहे है

       #श्वेता🍁

4 comments:

  1. भावनापूर्ण अभिव्यक्ति। सुंदर

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    1. बहुत आभार ध्रुव जी।

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  2. अद्भुत अद्भुत। ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई को दर्शाती मोहक रचना।

    अंजुरी में कितनी जमा हो ज़िन्दगी
    बून्द बून्द हर पल फिसल रहे हैं।

    सहजता से बड़ी बात कहना सबके वश की बात नही। आपकी प्रतिभा को नमन

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    1. जी बहुत शुक्रिया आभार अमित जी आपका।मेरी रचनाएँ पढ़ने के लिए बहुत बहुत आभार आपका अमित जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।