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Wednesday, 26 April 2017

कुछ पल तुम्हारे साथ

मीलों तक फैले निर्जन वन में
पलाश के गंधहीन फूल
मन के आँगन में सजाये,
भरती आँचल में हरसिंगार,
अपने साँसों की बातें सुनती
धूप को सुखाती द्वार पर,
निर्विकार देखती उड़ते परिंदें को
जो बादल से छाँह लिये कुछ तिनके
दे जाते गूँथने को रिश्तों की नीड़
आसमाँ के निर्जीव टुकड़े से
तारे तोड़कर साँझ को मुंडेर पर रखती
बिना किसी आहट का इंतज़ार किये,
सूखी नदी के तट पर प्यासी शिला
बदलाव की आशा किये बिना,
पड़ी दिन काटती रही
इन ढेड़े-मेढ़े राह के एक मोड़ पर
निर्मल दरिया ने पुकारा
कल-कल बहता मन मोहता
अपनी चंचल लहरों के आगोश में
लेने को आतुर, सम्मोहित करता
अपनी मीठी गुनगुनाहट से
खींच रहा अपनी ठंडी शीतल लहरों में
कहता है बह चल संग मेरे
पी ले मेरा मदिर जल
भूल जा थकान सारी
खो जा मुझमें तू अमृत हो जा
पर तट पर खड़ी सोचती
शायद कोई मृग मरीचिका
तपती मरूभूमि का भ्रम
डरती है छूने से जल को
कही ख़्वाब टूट न जाये
वो खुश है उस दरिया को
महसूस करके,ठंडे झकोरे
जो उस पानी को छूकर आ रहे
उसकी संदीली खुशबू में गुम
उस पल को जी रही है
भर रही है कुछ ताज़े गुलाब
अपने आँगन की क्यारी में
आँचल में समेटती महकती यादें
पलकों में चुनती कुछ
अनदेखे ख़्वाब
समा लेना चाहती वो
जीवन की निर्झरी का संगीत
मौन धड़कनों के तार पर
टाँक लेना चाहती है
हृदय के साथ ,ताकि
अंतिम श्वास तक महसूस कर पाये
इस पल के संजीवन को

         #श्वेता🍁


13 comments:

  1. बिना किसी आहट का इंतज़ार किये,
    सूखी नदी के तट पर प्यासी शिला
    बदलाव की आशा किये बिना,
    पड़ी दिन काटती रही👌👌👌

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    1. जी बहुत शुक्रिया आभार आपका.P.K ji

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  2. उस पल को जी रही है
    भर रही है कुछ ताज़े गुलाब

    प्यार में ऐसा ही होता है. आपने दिल के भावो को शब्द दे दिया है

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    1. जी बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी

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  3. Replies
    1. बहुत आभार लोकेश जी।

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  4. पांच लिंकों का आनंद में आपकी यह रचना आज सुकोमल भावों की यात्रा पर हमें ले जाती है। बिंबों और प्रतीकों को बहुत ही सुंदर भावों से सजाया गया है। पुरुषोत्तम जी को धन्यवाद और बधाई।

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    1. जी बहुत आभार शुक्रिया आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए रवीन्द्र जी।

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  5. निर्विकार देखती उड़ते परिंदें को
    जो बादल से छाँह लिये कुछ तिनके
    दे जाते गूँथने को रिश्तों की नीड़
    आसमाँ के निर्जीव टुकड़े से

    वाह ! श्वेता जी बोलते शब्द ,भावनाओं के झुरमुट से कहती है कई अनकहे स्वप्न गूथती है जीवन को सुन्दर ! स्पर्शी ,आभार। "एकलव्य"

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  6. बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपका ध्रुव ,जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद।

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  7. बहुत ही अनुपम अभिव्यक्ति
    बेहद खूब

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  8. अनुपम कोमल भावाभिव्यक्ति..👌

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  9. वाह!!! बहुत खूब.... लाजवाब
    बहुत सुंदर रचना।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।