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Thursday, 20 April 2017

तुम साथ हो

मौन हृदय के स्पंदन के
सुगंध में खोये
जग के कोलाहल से परे
एक अनछुआ सा एहसास
सम्मोहित करता है
एक अनजानी कशिश
खींचती है अपनी ओर
एकान्त को भर देती है
महकती रोशनी से
और मैं विलीन हो जाती हूँ
शून्य में कहीं जहाँ
भावनाओं मे बहते
संवेदनाओं की मीठी सी
निर्झरी मन को तृप्त करने का
असफल प्रयास करती है,
उस प्रवाह में डूबती उतरती
भूलकर सबकुछ
तुम्हें महसूस करती हूँ
तब तुम पास हो कि दूर
फर्क नहीं पड़ता कोई
बस तुम साथ होते हो,
धड़कते दिल की तरह,
उस श्वास की तरह
जो अदृश्य होकर भी
जीवन का एहसास है।

            #श्वेता🍁

2 comments:

  1. निःशब्द हूँ। अप्रतिम रचना। बेमिसाल।

    मौन ह्रदय के स्पंदन के
    सुगंध में खोए
    जग के कोलाहल से परे
    एक अनछुआ सा एहसास
    सम्मोहित करता है...

    आपकी शाब्दिक जादूगरी की एक और उत्कृष्ट बानगी। नमन

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपकी हमेशा की तरह सुंदर मनमोहक टिप्पणी।
      बहुत शुक्रिया।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।