Pages

Wednesday, 3 May 2017

सज़ा

दस्तूर  ज़माने की तोड़ने की सज़ा मिलती है
बेहद चाहने मे, तड़पने की उम्रभर दुआ मिलती है

ज़मीं पर रहकर महताब को ताका नहीं करते
जला जाती है चाँदनी, जख्मों को न दवा मिलती है

किस यकीं से थामें रहे कोई यकीं की डोर बता
ख़्वाब टूटकर चुभ जाए ,तो ज़िंदगी लापता मिलती है

जिनका आशियां बिखरा हो उनका हाल क्या जानो
अश्क़ों के तिनके से बने ,मकां मे फिर जगह मिलती है

क्यों लौटे उस राह जिसकी परछाईयाँ भी अपनी नही
चंद ख़ुशियों की चाहत में, तन्हाइयाँ बेपनाह मिलती है

        #श्वेता🍁



10 comments:

  1. सच कहा आपने.....

    दस्तूर ज़माने की तोड़ने की सज़ा मिलती है...

    दस्तूर और मर्यादा की सीमा ही नींव हैं हमारे सुंदर भविष्य के सुनहरे तस्वीर की।।।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आदरणीय, आपके उत्तम विचार
      बहुत बहुत आभार आपका,आपकी सारगर्भित
      प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया🙏🙏

      Delete
  2. कितनी खामोशी भरी है प्रीत
    मै हार कर भी जाता हूँ जीत....

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आदरणीय, सुंदर पंक्तियाँ रचने के लिए बहुत आभार🙏🙏

      Delete
  3. किस यकीं से थामें रहे कोई यकीं की डोर बता
    ख्वाब टूटकर चुभ जाए, तो ज़िदगी लापता मिलती है।


    डूबकर लिखा जाये
    महसूस कर लिखा जाये
    तब कहीं यूँ बात होती है
    टूट कर लिखा जाये
    रूठ कर लिखा जाये
    तब गम की बरसात होती है।

    ख़ूब बेहतरीन जिसे कहते हैं वह आपने लिखा है। नमन आपको।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आदरणीय, आपकी उत्साहवर्धक सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार शुक्रिया हृदय से आभारी है आपके।
      बहुत शुक्रिया🙏

      Delete
  4. वाह!!श्वेता ,बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  5. चाँदनी जलाती है पर प्रेम को देखने का सुकून भी देती है ....
    लाजवाब शेर हैं ...

    ReplyDelete
  6. ज़मीं पर रहकर महताब को ताका नहीं करते
    जला जाती है चाँदनी, जख्मों को न दवा मिलती है- प्रिय श्वेता जी प्रेम की अद्भुत सजा का एहसास बहुत आनंद भरा है ---

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।