Pages

Saturday, 3 June 2017

तेरा रूठना


तन्हा हर लम्हें में यादों को खोलना,
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

ओढ़ के मगन दिल प्रीत की चुनरिया
बाँधी है आँचल से नेह की गठरिया,
बहके मलंग मन खाया है भंग कोई
चढ़ गया तन पर फागुन का रंग कोई,
हिय के हिंडोले में साजन संग डोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रेशम सी चाहत के धागों का टूटना
पलकों के कोरों से अश्कों का फूटना,
दिन दिनभर आँखों से दर को टटोलना
गिन गिनकर दामन में लम्हें बटोरना,
पूछे है धड़कन क्यों बोले न ढोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रूठा है जबसे तू कलियाँ उदास है
भँवरें न बोले तितलियों का संन्यास है,
सूनी है रात बहुत चंदा के मौन से
गीली है पलकें ख्वाब देखेगी कौन से,
बातें है दिल की तू लफ्ज़ो से तोल ना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।
               #श्वेता🍁

11 comments:

  1. लाजवाब ।
    मुद्दतों से थे जिनकी यादों को दर्देदिल में घर वसाए हुए
    सुना है एक अरसा गुजर गया है उनका हमें भुलाए हुए

    ReplyDelete
  2. बहुत शुक्रिया आभार आपका अन्जान महोदय
    सुंदर प्रतिक्रिया लिखने के लिए।

    ReplyDelete
  3. दबरदस्त..
    रूठना तेरा
    जालिम..
    भाता नहीं हमको
    ज़रा भी
    ....
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार दी:)
      तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।

      Delete
  4. वाह वाह श्वेता बहुत खूबसूरत विरह रंगों से सजी सुंदर रचना तेरा न होना जैसे अरमानों का लुटना
    संवरते संवरते भाग्य का बिगडना
    तेरी हर खुशी और दर्द मेरा जीवन
    न जाने आश का पंछी उड के बैठा किधर। शुभ संध्या ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह्ह्ह...दी बहुत सुंदर लिखा आपने :)👌👌
      आभार दी हृदय से बहुत सारा ब्लॉग पर आने के लिए।

      Delete
  5. सुंदर रचना, गर प्यार का संचार बेजार बढाए रूठना तो परस्पर यदा कदा रूठ ही जाना अच्छा ।
    बधाई श्वेता जी।।।।।।

    ReplyDelete
  6. वाह !!!!! बहुत ख़ूब !
    तीनों बंद अपनी-अपनी दास्तां कहते हुए अलग-अलग रंग बिखेरते हुए। भावों को अल्फ़ाज़ के मोतियों में पिरोकर आपने जो शब्दमाला पेश की है वह न जाने कितने दिलों को जपने के लिए आकर्षित करेगी। आलोचक भी दांतों तले उंगली दबा लेंगे। आपकी सृजनशीलता का कलात्मक और भावात्मक पक्ष वाचक को मख़मली एहसास से सराबोर करता है।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं आदरणीया श्वेता जी। लिखते रहिये यों ही अनवरत...

    ReplyDelete
  7. दिन दिनभर आँखों से दर को टटोलना
    गिन गिनकर दामन में लम्हें बटोरना,
    पूछे है धड़कन क्यों बोले न ढोलना
    धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

    वाह वाह वाह। दर्द में तरबतर जज़्बातों से सजी लाज़वाब रचना। छंद बद्ध लय बद्ध एक बेहतरीन गायन योग्य विरह का गीत। शानदार । बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  8. वाह.. अनुराग, अनुरोध और अल्फाजों से लबरेज़ बहुत ही सुंदर रचना..

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर
    मन के भीतर गूंजती कविता

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।