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Friday, 14 July 2017

रात के सितारें

अंधेरे छत के कोने में खड़ी
आसमान की नीले चादर पर बिछी
नन्हें बूटे सितारों को देखती हूँ
उड़ते जुगनू के परों पर
आधे अधूरे ख्वाहिशें रखती
टूटते सितारों की चाह में
टकटकी बाँधे आकाशगंगा तकती हूँ
जो बीत गया है उन पलों के
पलकों पे मुस्कान ढ़ूढती हूँ
श्वेत श्याम हर लम्हे में
बस तुम्हें ही गुनती हूँ
क्या खोया क्या पाया
सब बेमानी सा लगे
जिस पल तेरे साथ मैं होती
मन के स्याह आसमान में
जब जब तेरे यादों के सितारे उभरते
बस तुझमें मगन पूरी रात
एक एक तारा गिनती हूँ
तुम होते हो न होकर भी
उस एहसास को जीती हूँ
     #श्वेता🍁


10 comments:

  1. बहुत खूबसूरत बयानगी

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    1. बहुत बहुत आभार लोकेश जी।

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  2. वाह ! क्या बात है ! बहुत ही खूबसूरत सृजन ! भाव प्रवाह के तो क्या कहने ! खूबसूरत एहसासों के साथ जीने का संदेश देती लाजवाब रचना । बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. जी, सर आपका बहुत आभार आपको पसंद आयी तो ठीक बनी होगी।

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  3. सुन्दर कोमल एहसासों से सजी आपकी कविता है। साथ ही सादर आग्रह है कि मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
    मेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in/

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    1. जी, बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका राकेश जी। स्वागत है हमेशा आपका।

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  4. भावो की सुंदर अभव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी शुक्रिया आपका ह्दय से।

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  5. वियोग रस पर आधारित कुछ रचनाओं की खोज में आपकी एक रचना मिली "एक दिन " जोकि 25 -06 -2017 को "पाँच लिंकों का आनंद" में लिंक की जा चुकी है।
    अब आपकी इस रचना को आगामी गुरूवार 27 -07 -2017 को http://halchalwith5links.blogspot.in के 741 वें अंक में लिंक किया जा रहा है।
    इसके आलावा कोई और रचना हो या 26 जुलाई 2017 तक आप ऐसा कोई सृजन करती हैं तो कृपया सूचित करियेगा ताकि अंक में संशोधन किया जा सके। सधन्यवाद।

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    1. माफी चाहेगे रवींद्र जी, अभी देखे मैसेज ,जी आपने शामिल किया मुझे भी आपके सम्मान के लिए हृदय से आभार शुक्रिया आपका।
      हम शायद लिख पाये कोई नयी रचना आपको अवश्य सूचित करेगे।
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

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शुक्रिया।