चित्र साभार गूगल
मोह है क्यूँ
तुमसे बता न सकूँगी
संयम घट
मन के भर भर रखूँ
पाकर तेरी गंध
मन बहका जाये
लुढकी भरी
नेह की गगरी ओर तेरे
छलक पड़ी़ बूँद
भीगे तृषित मन लगे बहने
न रोकूँ प्रवाह
खुद को मैं
और अब समझा न सकूँगी
ज्ञात अज्ञात
सब समझूँ सब जानूँ
ज्ञान धरा रहे
जब अंतर्मन में आते हो तुम
टोह न मिले तेरी
आकुल हिय रह रह तड़पे
हृदय बसी छवि
अब भुला न सकूँगी
दर्पण तुम मेरे सिंगार के
नयनों में तेरी
देख देख संवरूँ सजूँ पल पल
सजे सपन सलोने
तुम चाहो तो भूल भी जाओ
साँस बाँध ली
संग साँसों के तेरे
चाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी
#श्वेता🍁
मोह है क्यूँ
तुमसे बता न सकूँगी
संयम घट
मन के भर भर रखूँ
पाकर तेरी गंध
मन बहका जाये
लुढकी भरी
नेह की गगरी ओर तेरे
छलक पड़ी़ बूँद
भीगे तृषित मन लगे बहने
न रोकूँ प्रवाह
खुद को मैं
और अब समझा न सकूँगी
ज्ञात अज्ञात
सब समझूँ सब जानूँ
ज्ञान धरा रहे
जब अंतर्मन में आते हो तुम
टोह न मिले तेरी
आकुल हिय रह रह तड़पे
हृदय बसी छवि
अब भुला न सकूँगी
दर्पण तुम मेरे सिंगार के
नयनों में तेरी
देख देख संवरूँ सजूँ पल पल
सजे सपन सलोने
तुम चाहो तो भूल भी जाओ
साँस बाँध ली
संग साँसों के तेरे
चाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी
#श्वेता🍁
बहुत सुन्दर सृजन श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी,आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर। हृदय से धन्यवाद आपका।
Deleteक्या बात
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
बहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका ध्रुव जी।
Deleteतुम चाहो तो भूल भी जाओ
ReplyDeleteसाँस बाँध ली
संग साँसों के तेरे
चाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी
बहुत बढ़िया।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी।
Deleteबहुत सुंदर लिखा है श्वेताजी।
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका मीना जी।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
DeleteIf God is all-knowing, did he know that we were going to sin before he created us?
ReplyDeletehttps://www.quora.com/If-God-is-all-knowing-did-he-know-that-we-were-going-to-sin-before-he-created-us
जी बहुत आभार।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका विनोद जी।
Deleteसंग साँसों के तेरे
ReplyDeleteचाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी
बहुत बढ़िया।
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी।
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