धुँधला धुँधला लगे है सूरज
आज बड़ा अलसाये है
दिन चढ़ा देखो न कितना
क्यूँ.न ठीक से जागे है
छुपा रहा मुखड़े को कैसे
ज्यों रजाई से झाँके है
कुछ तो करे जतन हम सोचे
कोई करे उपाय है
सूरज को दरिया के पानी मे
धोकर आज सुखाते है
चमचम फिर से चमके वो
वही नूर ले आते है
सब जन ठिठुरे उदास है बैठे
गुनगुनी धूप भर जाओ न
देकर अपनी मुस्कान सुनहरी
कलियों के संग गाओ न
नील गगन पर दमको फिर से
संजीवन तुम भर जाओ न
मिलकर धरती करे ठिठोली
सूरज तुम जग जाओ न
लाजवाब सृजन श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी तहेदिल से शुक्रिया आपका।
ReplyDeleteवाह! बहुत सारगर्भित रचना। जीवन में ऐसा कुहासा हमारे ज़ेहन को भी प्रभावित करता है
ReplyDeleteतब मंथन की नदी में स्नान करने से वैचारिकी की आभा पुनः जगमगा उठती है।
बाल कविता में निहित संदेश की व्यापकता को समझने का अपना-अपना नज़रिया है।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
प्रिय श्वेता बहन -- इतनी प्यारी मनुहार से तो सूरज क्या सारा संसार जागजाएगा | प्यारे शब्द . अनुपम मनुहार !!!!!!!
ReplyDeleteकितनी अनोखी कल्पना है ---
कुछ तो करे जतन हम सोचे
कोई करे उपाय है
सूरज को दरिया के पानी मे
धोकर आज सुखाते है
चमचम फिर से चमके वो
वही नूर ले आते है- अति सुन्दर !!!!!!!!हार्दिक बधाई इस प्यारी सी रचना के लिए ----
9:43 am, December 22, 2017
सुंंदर और प्यारी रचना👌
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह् बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना
वाह!!श्वेता जी , क्या खछब लिखा है ,लाजवाब!
ReplyDeleteबहुत सुंदर !सूरज को दरिया के पानी से धोकर सुखाने की कल्पना ! लाजवाब लिखा है इस प्यारी कविता के लिए बधाई ।
ReplyDeleteवाह ! खूबसूरत रचना ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteवाह !!!सुरज की तीमारदारी, भी करनी पड़ती है बहुत अच्छे शब्दों से सजाया है आपने "सुरज को धोकर सुखाने वाली पंक्ति कमाल की रची आपने....ये आपकी उन्नत कल्पना शक्ति से परिचित करवाता है...प्रेरक संदेश से सजी खूबसूरत कविता ..आप बस लिखते रहे...!!
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