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Friday, 22 December 2017

सूरज तुम जग जाओ न


धुँधला धुँधला लगे है सूरज
आज बड़ा अलसाये है
दिन चढ़ा देखो न  कितना
क्यूँ.न ठीक से जागे है
छुपा रहा मुखड़े को कैसे
ज्यों रजाई से झाँके है

कुछ तो करे जतन हम सोचे
कोई करे उपाय है
सूरज को दरिया के पानी मे
धोकर आज सुखाते है
चमचम फिर से चमके वो
वही नूर ले आते है

सब जन ठिठुरे उदास है बैठे
गुनगुनी धूप भर जाओ न
देकर अपनी मुस्कान सुनहरी
कलियों के संग गाओ न
नील गगन पर दमको फिर से
संजीवन तुम भर जाओ न
मिलकर धरती करे ठिठोली
सूरज तुम जग जाओ न

10 comments:

  1. लाजवाब सृजन श्वेता जी .

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  2. बहुत बहुत आभार मीना जी तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  3. वाह! बहुत सारगर्भित रचना। जीवन में ऐसा कुहासा हमारे ज़ेहन को भी प्रभावित करता है
    तब मंथन की नदी में स्नान करने से वैचारिकी की आभा पुनः जगमगा उठती है।
    बाल कविता में निहित संदेश की व्यापकता को समझने का अपना-अपना नज़रिया है।
    बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  4. प्रिय श्वेता बहन -- इतनी प्यारी मनुहार से तो सूरज क्या सारा संसार जागजाएगा | प्यारे शब्द . अनुपम मनुहार !!!!!!!
    कितनी अनोखी कल्पना है ---
    कुछ तो करे जतन हम सोचे
    कोई करे उपाय है
    सूरज को दरिया के पानी मे
    धोकर आज सुखाते है
    चमचम फिर से चमके वो
    वही नूर ले आते है- अति सुन्दर !!!!!!!!हार्दिक बधाई इस प्यारी सी रचना के लिए ----

    9:43 am, December 22, 2017

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  5. सुंंदर और प्यारी रचना👌

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  6. वाह्ह्ह्ह् बेहतरीन
    बहुत ही उम्दा रचना

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  7. वाह!!श्वेता जी , क्या खछब लिखा है ,लाजवाब!

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  8. बहुत सुंदर !सूरज को दरिया के पानी से धोकर सुखाने की कल्पना ! लाजवाब लिखा है इस प्यारी कविता के लिए बधाई ।

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  9. वाह ! खूबसूरत रचना ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

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  10. वाह !!!सुरज की तीमारदारी, भी करनी पड़ती है बहुत अच्छे शब्दों से सजाया है आपने "सुरज को धोकर सुखाने वाली पंक्ति कमाल की रची आपने....ये आपकी उन्नत कल्पना शक्ति से परिचित करवाता है...प्रेरक संदेश से सजी खूबसूरत कविता ..आप बस लिखते रहे...!!

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शुक्रिया।