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Wednesday, 7 February 2018

वो गुम रहे


वो गुम रहे अपने ही ख़्यालों की धूल में
करते रहे तलाश जिन्हें फूल-फूल में

गीली हवा की लम्स ने सिहरा दिया बदन
यादों ने उनकी छू लिया फिर आज भूल में

उसने तो बात की थी यूँ ही खेल-खेल में
पर लुट गया ये दिल मेरा शौक़े-फ़ज़ूल में

होने लगा गलियों का जिक्र आसमां में
फिर उम्रभर अटे रहे लफ़्ज़ों की धूल में

एहसान आपका जो वक़्त आपने दिया
चुभी किर्चियां फूलों की निगाहे-मलूल में

     #श्वेता🍁


निगाहे-मलूल = उदास आँखों में

18 comments:

  1. वाह वाह!!!!बहुत खूब ..श्वेता ।

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  2. बहुत-बहुत आभार शुभा दी:)

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  3. बहुत बहुत बेहतरीन
    शानदार ग़ज़ल

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  4. ख़ूबसूरत जज़्बात उभारे हैं बड़ी कुशलता के साथ.
    शब्द-विन्यास के क्या कहने.
    बधाई एवं शुभकामनायें.

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    1. जी,बहुत आभार,शुक्रिया आपका तहेदिल से रवींद्र जी। आपकी शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है।

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  5. हम भी निशब्द रहे शब्दों के विन्यास में..,👌

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका पम्मी जी,तहेदिल से शुक्रिया।

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  6. बहुत खूबसूरत....अप्रतिम

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  7. जुड़िये Ad Click Team से और बढ़ाइए अपने ब्लॉग की इनकम और विजिटर संख्या .........

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  8. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-02-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2873 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  9. वाह श्वेता जी, बेहतरीन ग़ज़ल । हर शेर लाज़वाब।
    सादर

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  10. उ प्रिय श्वेता बहन --- आपकी रचनाएँ किसी भी सराहना की मोहताज नह्ही | बहुत ही हुनर से तराशी गयी ये रचना भी बहुत ही लाजवाब शेरो से सजी है | ये दो पंक्तियाँ तो मनो जानलेवा है --

    उसने तो बात की थी यूँ ही खेल-खेल में
    पर लुट गया ये दिल मेरा शौक़े-फ़ज़ूल में
    ---बहुत खूब !!!!!!!!
    सस्नेह शुभकामनाये --

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  11. वाह
    बहुत सुंदर मन को छूती हुई

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  12. मन को छुती बहुत बढिया अभिव्यक्ति, स्वेता!

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  13. बहुत सुन्दर‎ रचना‎.

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  14. बहुत ख़ूब ...
    अच्छे शेर हैं ग़ज़ल के

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।