वो गुम रहे अपने ही ख़्यालों की धूल में
करते रहे तलाश जिन्हें फूल-फूल में
गीली हवा की लम्स ने सिहरा दिया बदन
यादों ने उनकी छू लिया फिर आज भूल में
उसने तो बात की थी यूँ ही खेल-खेल में
पर लुट गया ये दिल मेरा शौक़े-फ़ज़ूल में
होने लगा गलियों का जिक्र आसमां में
फिर उम्रभर अटे रहे लफ़्ज़ों की धूल में
एहसान आपका जो वक़्त आपने दिया
चुभी किर्चियां फूलों की निगाहे-मलूल में
#श्वेता🍁
वाह वाह!!!!बहुत खूब ..श्वेता ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार शुभा दी:)
ReplyDeleteबहुत बहुत बेहतरीन
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल
बहुत-बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteख़ूबसूरत जज़्बात उभारे हैं बड़ी कुशलता के साथ.
ReplyDeleteशब्द-विन्यास के क्या कहने.
बधाई एवं शुभकामनायें.
जी,बहुत आभार,शुक्रिया आपका तहेदिल से रवींद्र जी। आपकी शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है।
Deleteहम भी निशब्द रहे शब्दों के विन्यास में..,👌
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका पम्मी जी,तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteबहुत खूबसूरत....अप्रतिम
ReplyDeleteजुड़िये Ad Click Team से और बढ़ाइए अपने ब्लॉग की इनकम और विजिटर संख्या .........
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-02-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2873 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह श्वेता जी, बेहतरीन ग़ज़ल । हर शेर लाज़वाब।
ReplyDeleteसादर
उ प्रिय श्वेता बहन --- आपकी रचनाएँ किसी भी सराहना की मोहताज नह्ही | बहुत ही हुनर से तराशी गयी ये रचना भी बहुत ही लाजवाब शेरो से सजी है | ये दो पंक्तियाँ तो मनो जानलेवा है --
ReplyDeleteउसने तो बात की थी यूँ ही खेल-खेल में
पर लुट गया ये दिल मेरा शौक़े-फ़ज़ूल में
---बहुत खूब !!!!!!!!
सस्नेह शुभकामनाये --
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन को छूती हुई
मन को छुती बहुत बढिया अभिव्यक्ति, स्वेता!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteअच्छे शेर हैं ग़ज़ल के