मैं ख़्वाब हूँ मुझे ख़्वाब में ही प्यार कर
पलकों की दुनिया में जीभर दीदार कर
पलकों की दुनिया में जीभर दीदार कर
न गिन ज़ख़्म दिल के,रहम मेरे यार कर
न तंज की सान पर लफ़्ज़ों को धार कर
छोड़ दे न साँस साथ कंटकों से हार कर
ज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर
और कितनी दूर जाने आख़िरी मक़ाम है
ReplyDeleteछोड़ दे न साँस साथ कंटकों से हार कर ...
बहुत ख़ूब ... लाजवाब शेर ... सांसें साथ देती हैं हर मक़ाम तक ... पूरी ग़ज़ल में लाजवाब अलग अन्दाज़ के शेर हैं सभी ...
चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
ReplyDeleteज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर
...... जिसका जमीर मर गया वह जिन्दा कहलाने लायक नहीं हो सकता
बहुत खूब!
वाह लाजवाब श्वेता हर शेर मुस्तैदी से एक एक शब्द चुन कर लिखा।
ReplyDeleteनमक छिड़कते रहे अंजान से बने रहे
पोंछते हो अब जख्म हमदर्द बन कर ।
वाह,वाह!!!श्वेता .....बहुत खूबसूरती के साथ लिखा है आपनें । एक-एक शेर लाजवाब !!
ReplyDeleteबेशक लाजवाब
ReplyDeleteआफरीन प्रिय श्वेता जी आफरीन ...
ReplyDeleteहर शेर एक तंज लिये
हर भाव में घाव
गजल लिखी है आपने
या लिख डाले अहसास ....
👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
वा...व्व...श्वेता, हर शेर बहुत ही खुबसुरती से लिखा हैं तुमने!
ReplyDeleteचूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
ReplyDeleteज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर
लाजवाब गजल.....
वाह!!!
स्वेता जी आपकी रचना बहुत ही खूबसूरत है।
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ReplyDeleteवाह और सिर्फ वाह प्रिय श्वेता !!!!! लगता है मेरी बहन का नाम अब उर्दू अदब में बहुत चमकने वाला है | ---
चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
ज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर---
रचना जानलेवा है !!!! शुभकामनाओं के साथ मेरा बहुत प्यार |
बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteशानदार
बेहतरीन।
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