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Thursday, 21 June 2018

ख़्वाब में ही प्यार कर..


मैं ख़्वाब हूँ मुझे ख़्वाब में ही प्यार कर
पलकों की दुनिया में जीभर दीदार कर

न देख मेरे दर्द ऐसे बेपर्दा हो जाऊँगी
न गिन ज़ख़्म दिल के,रहम मेरे यार कर


बेअदब सही वो क़द्रदान हैं आपके 
न तंज की सान पर लफ़्ज़ों को धार कर


और कितनी दूर जाने आख़िरी मक़ाम है
छोड़ दे न साँस साथ कंटकों से हार कर


चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
ज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर


---श्वेता सिन्हा

12 comments:

  1. और कितनी दूर जाने आख़िरी मक़ाम है
    छोड़ दे न साँस साथ कंटकों से हार कर ...
    बहुत ख़ूब ... लाजवाब शेर ... सांसें साथ देती हैं हर मक़ाम तक ... पूरी ग़ज़ल में लाजवाब अलग अन्दाज़ के शेर हैं सभी ...

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  2. चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
    ज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर
    ...... जिसका जमीर मर गया वह जिन्दा कहलाने लायक नहीं हो सकता
    बहुत खूब!

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  3. वाह लाजवाब श्वेता हर शेर मुस्तैदी से एक एक शब्द चुन कर लिखा।
    नमक छिड़कते रहे अंजान से बने रहे
    पोंछते हो अब जख्म हमदर्द बन कर ।

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  4. वाह,वाह!!!श्वेता .....बहुत खूबसूरती के साथ लिखा है आपनें । एक-एक शेर लाजवाब !!

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  5. आफरीन प्रिय श्वेता जी आफरीन ...
    हर शेर एक तंज लिये
    हर भाव में घाव
    गजल लिखी है आपने
    या लिख डाले अहसास ....
    👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏

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  6. वा...व्व...श्वेता, हर शेर बहुत ही खुबसुरती से लिखा हैं तुमने!

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  7. चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
    ज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर
    लाजवाब गजल.....
    वाह!!!

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  8. स्वेता जी आपकी रचना बहुत ही खूबसूरत है।

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  9. वाह और सिर्फ वाह प्रिय श्वेता !!!!! लगता है मेरी बहन का नाम अब उर्दू अदब में बहुत चमकने वाला है | ---
    चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
    ज़िंदा कहते हो ख़ुद को ज़मीर अपना मार कर---

    रचना जानलेवा है !!!! शुभकामनाओं के साथ मेरा बहुत प्यार |

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  10. बहुत ही उम्दा
    शानदार

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।