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Monday, 25 June 2018

एकांत का उत्सव

नभ के दालान से
पहाड़ी के 
कोहान पर फिसलकर
क्षितिज की बाहों में समाता
 सिंदुरिया सूरज,
किरणों के गुलाबी गुच्छे
टकटकी बाँधें
पेड़ों के पीछे उलझकर
अनायास ही गुम हो जाते हैंं,
गगन के स्लेटी कोने से 
उतरकर
मन में धीरे-धीरे समाता
 विराट मौन
अपनी धड़कन की पदचाप 
से चिंहुकती
अपनी पलकों के 
झपकने के लय में गुम
महसूस करती हूँ 
एकांत का संगीत
चुपके से नयनों को ढापती
स्मृतियों की उंगली थामे
मैं स्वयं स्मृति हो जाती हूँ
एक पल स्वच्छंद हो 
निर्भीक उड़कर 
सारा सुख पा लेती हूँ,
नभमंडल पर विचरती 
चंचल पंख फैलाये
भूलकर सीमाएँ
कल्पवृक्ष पर लगे 
मधुर पल चखती
भटकती
अमृत-घट की 
एक बूँद की लालसा में
तपती मरुभूमि में अनवरत,
दिव्य-गान हृदय के 
भावों का सुनती
विभोर सुधी बिसराये
घुलकर चाँदनी की रजत रश्मियों में
एकाकार हो जाती हूँ
तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न 
सोमरस के मधुर घूँट पी
कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
चाहती हूँ अपने
एकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
चिर स्पंदन।

----श्वेता सिन्हा






21 comments:

  1. बहुत सुंदर लिखा है आपने

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    1. जी सादर आभार आपका।

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  2. जी अति आभार आपका निश्छल जी,
    रचना के भावों को विस्तार देती आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया से मन अभिभूत हुआ।
    आपकी शुभकामनाओं के हार्दिक आभार।
    सादर।🙏🙏

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  3. चाहती हूँ अपने
    एकांत के इस उत्सव में
    तुम्हारी स्मृतियों का
    चिर स्पंदन।

    बहुत खूबसूरत कविता

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  4. प्रिय श्वेता -- प्रणय की मधुर स्मृतियों में आकंठ डूबे मन के रेशमी भावों से गुंथी गयी अनुपम रचना के लिए क्या कहूं ? -

    स्मृतियों की उंगली थामे
    मैं स्वयं स्मृति हो जाती हूँ-

    अति सुंदर !!!!!!

    और मन सुधियों में विचरता , सुधी बिसराता चांदनी के साथ एकाकार हो जाए तो प्रेम की उस पराकाष्ठा के क्या कहने ?
    तपती मरुभूमि में अनवरत,
    दिव्य-गान हृदय के भावों का सुनती
    विभोर सुधी बिसराये
    घुलकर चाँदनी की रजत रश्मियों में
    एकाकार हो जाती हूँ
    उसी प्रेम को समर्पित हर पंक्ति दिव्य प्रेम का स्तुति गान है |
    इस दिव्य रचना की सराहना नही बस मेरा प्यार -- बहुत अनुपम है ये एकांत का उत्सव !!!!!!

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  5. क्या बात है प्रिय श्वेता ......
    शब्दों पर नक्काशी कर नव अर्थ बनाकर
    भाव काव्य स्थापित करना
    गहरे हो अहसास निरंतर
    तारतम्य लिखते जाना
    दिव्य प्रेम को स्वर संगम का
    जामा पहना कर प्रगट किया
    क्या कहूँ क्या छोड़ दूँ
    तुमने लेखन से मन तृप्त किया !
    साधु साधु ..🙏🙏

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  6. तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न
    सोमरस के मधुर घूँट पी
    कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
    चाहती हूँ अपने
    एकांत के इस उत्सव में
    तुम्हारी स्मृतियों का
    चिर स्पंदन।
    बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता

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  7. बहुत बढिया रचना वास्तव में आपने मन की अथाह गहराइयों में बसे अनूभूत सत्य को प्रकट किया है। मन ही हमें इस विस्तृत भावसंसार का परिचय कराता
    है, आपने सबके मन की कह दी है।

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  8. अद्भुत सौंदर्य से छलकता विरह गान, मन का एकाकीपन हर शै मे कुछ अपनी ही बनाई मरीचिका मे उलझा सा ।

    नूर की बूंद
    उसकी रहमत
    खुशी का अदृश्य
    आभामंडल
    छुपा कहीं
    तेरे मेरे अंदर
    बस मन की
    आंखों से पीलो
    अमृत का कतरा कतरा
    और भर लो मन गागर मे
    ये वो नियामत है जो
    अंदर और अंदर खोजनी है
    पा गये तो बस आनंद का
    सागर ही सागर है
    चिर आत्मा का स्पंदन।

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  9. मन में धीरे-धीरे समाता
    विराट मौन
    अपनी धड़कन की पदचाप
    से चिंहुकती
    अपनी पलकों के
    झपकने के लय में गुम
    महसूस करती हूँ
    एकांत का संगीत.... बहुत सुंदर रचना

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  10. तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न
    सोमरस के मधुर घूँट पी
    कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
    चाहती हूँ अपने
    एकांत के इस उत्सव में
    तुम्हारी स्मृतियों का
    चिर स्पंदन ...
    प्रेम के अलोकिक रूप का दर्शन रचना को एक नए संसार में ले ला रहा है ... जहाँ सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही प्रमुख है बाकी सब गौण है ... स्मृतियों का मधुर संसार केवल एकांत में ही अनुभव किया जा सकता है ... बहुत लाजवाब रचना है ...

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  11. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 08 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  12. वाह!श्वेता ,एकांत उत्सव का लाजवाब सृजन ।

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  13. स्मृतियों को सहेजने में एकांत ज़रूरी और एकांत में तुम्हारी यादें हृदय के स्पंदन को महसूस करा जाती हैं । प्रकृति से तुम्हारा विशेष स्नेह है ऐसा तुम्हारी रचनाओं को पढ़ कर लगा ।भोर की लाली का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है । शुभकामनाएँ ।

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  14. कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
    चाहती हूँ अपने
    एकांत के इस उत्सव में
    तुम्हारी स्मृतियों का
    चिर स्पंदन।

    एकांतवास कभी-कभी बड़ा सुकून दे जाता है
    मन के भावों को सुंदर शब्दों में पिरोती लाज़बाब सृजन श्वेता जी,सादर नमन आपको

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  15. लाजवाब..एकांत में मन की खूबसूरती का समागम और वैभव..

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  16. एकांत व साधना का मिश्रण क्या न करवा दे।
    बहुत ही शानदार

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  17. प्रकृति को सहेजना कविता में उसके स्वयं के अद्भुत रूपों से भी अभिनव बाना पहनाना कोई आपसे सीखे।
    अभिराम।

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  18. आदरणीया मैम ,
    एकांत- लाभ और प्रकृति की निकटता को दर्शाती सुंदर अनुभूतियों से भरी हुई रचना। आपकी यह रचना मन को असीम शांति और आनंद की अनुभूति कराती है।
    प्रकृति के निकट एकांत में रहने का एक अद्भुत आनंद होता है।
    हृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

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  19. जाने कितनी बार पढ़ी आज भी नयी सी लगी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।