बीतती उम्र के खोल पर
खुशियों का रंग पोते
मैं अक्सर फड़फड़ाता हूँ
मुस्कुराता हूँ चहककर
अपने लिये तय दायरों में
थकाऊ,उबाऊ रास्तों पर
चलते-चलते सुस्ताता
अक्सर रात को
तन्हां आसमां
चुपचाप निहारकर
घंटों करवट बदलकर
टटोलकर कुछ सितारे
सँभालकर सिरहाने
किसी सुनहरे स्वप्न की
राह तकते सो जाता हूँ
पर जाने क्यूँ रुठी-रुठी है मुझसे
स्वप्नों की परियाँ
बीत जाती है रात उनींदी
और पलकों की खाली डिबिया में
हर सुबह ढूँढता हूँ
सपनों की रंगीन तितलियाँ
कितना कुछ तो है
पिछली गलियों में सहेजा हुआ
बचपन की पगडंडियों की
कच्ची धूप
रेत के घरौंदे में सजे
रंग-बिरंगे काँच और पन्नियाँ
और एक अधूरी तस्वीर
जिसके रंग समय के साथ
गहराते रहे
दिन,महीने,साल में बदलते
चंद पल
ठहरे है उसी मोड़ पर
हथेलियों से छूटकर गिरी
जिस राह पर
रात लम्हों को
चुनते बीत जाती है
सपनों की पोटली लिये जुगनू
इंतज़ार में नींद के
उँघकर वापस लौट जाते हैं
सुरमई आँखों में खुशबू
भरने को आतुर कोमल फूल
आँखों में उगे कैक्टस में उलझकर
टूट कर बिखर जाता है
स्वप्न परियों की कहानियाँ
अधूरी रह जाती हैं
रंगीन तितलियाँ
खाली आँखों की
डिबिया में घुटकर मर जाती है
और उम्र की हथेलियों पर
तड़पती नींद
बिना सपनों के कराहती है।
#श्वेता सिन्हा
तड़पती नींद
ReplyDeleteबिना सपनों के कराहती है।
बेहतरीन अभिव्यक्ति
शानदार रचना
वाह बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteरंगीन तितलियाँ
खाली आँखों की
डिबिया में घुटकर मर जाती है
और उम्र की हथेलियों पर
तड़पती नींद
बिना सपनों के कराहती
सुंदर रचना
ReplyDeleteअधुरी ख्वाहिशों के उजडते महल ।
ReplyDeleteगगहरे भाव लिये सुंदर काव्य।
किसी सुनहरे स्वप्न की
ReplyDeleteराह तकते सो जाता हूँ
शुभ प्रभात
सादर
सपनों के बिना नीद भी कैसी नींद ....
ReplyDeleteउसका आना न आना एक सामान है ... रंगीन तितलियों को चाहिए खुला आकाश ...सपनों का संसार ...
अच्छी रचना ...
और पलकों की खाली डिबिया में
ReplyDeleteहर सुबह ढूँढता हूँ
सपनों की रंगीन तितलियाँ......वाह!!!
बेहतरीन रचना.....
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 26 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteवाह! श्वेता ,बहुत खूबसूरत सृजन!
ReplyDeleteकितना कुछ तो है
ReplyDeleteपिछली गलियों में सहेजा हुआ
बचपन की पगडंडियों की
कच्ची धूप
रेत के घरौंदे में सजे
रंग-बिरंगे काँच और पन्नियाँ
और एक अधूरी तस्वीर
जिसके रंग समय के साथ
गहराते रहे
दिन,महीने,साल में बदलते
चंद पल
ठहरे है उसी मोड़ पर
वाह वाह वाह, बहुत सुंदर