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Thursday, 5 July 2018

काश! हमें जो.प्यार न होता


हृदय हीनता के हाथों
प्रहर प्रथम प्रहार न होता
मान और मनुहार न होता
काश! हमेंं जो प्यार न होता

अब आयेंगे सोच सोच कर
उत्कंठा अपरावार न रहता
उपेक्षा की चोट ये उनकी
बारम्बार ये वार न सहता

नयनों का नैश नशा उनका
अब भी मन को मदमा जाता
किन्तु कुटिल के कूट कृत्य
छल भी क्षण में भरमा जाता

कहते है कंकरीले पथ पर
पुष्प पराग पसारेंगे
धुक-धुक करती धमनी में
अनुरक्त रक्त वह ढारेंगे

 फिर जगे जब सपने आसों के
डरते निर्दय दुत्कार न होता
 समर्पण का व्यापार न होता
काश! हमेंं जो प्यार न होता

 -श्वेता सिन्हा
  

9 comments:

  1. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण रचना
    जितनी गहरी उतनी सुंदर
    वाह वाह आदरणीय दीदी जी 👌
    सादर नमन शुभ संध्या 🙇

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  2. निष्ठुर प्रेम के हाथों चोटिल मन की व्यथा कथा को क्या शब्द दिए प्रिय श्वेता!!!एक एक शब्द मार्मिकता से भरपूर है !बधाई और मेरा प्यार---

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  4. मन इतना बावला होता है कि बच्चों की तरह समंदर की रेत में किले स्वयं ही बनाता और स्वयं ही तोड़ देता है...अपने ही भावों से अनजान मन की अजीब सी मनोव्यथा की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति.... सस्नेह।

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  5. समर्पण का व्यापार न होता
    काश! हमेंं जो प्यार न होता.....गहरी चोट की अभिव्यक्ति!!! बहुत सुंदर!!! आभार!!!

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  6. हर पंक्ति मन को छूती हुई ...., मर्मस्पर्शी सृजन श्वेता जी ।

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  7. समर्पण का व्यापार न होता
    काश! हमेंं जो प्यार न होता

    श्वेता जी आज तक की आपकी सबसे उत्कृष्ट रचना पढ़ने को मिली वाह वाह। दिल को छू गई आपकी रचना। सादर

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  8. बहुत अच्छी रचना

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  9. बहुत सुन्दर ...👌👌👌

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शुक्रिया।