देखते-देखते जलधारा ने
लिया रुप विकराल
लील गयी पग-पग धरती का
जकड़ा काल कराल
तट की चट्टानों से टकरा
विदीर्ण जीवन पोत हुआ
बिखरा, टूटा, अवसादग्रस्त
क्रंदन से विह्वल स्रोत हुआ
करुण चीत्कार,हाय पुकार
दहती गृहस्थी ,टूटते सपने
आँख पनीली,कोई देखे कैसे?
जलसमाधि में बचे न अपने
नभ ताकती भूखी आँखों से
गिरता हया-शरम का पानी
सिकुड़ी आँतें,सूखे अधर पर
है विप्लव की पड़ी निशानी
राहत शिविर,रिरियाता बेबस
दानों को मुहताज कलपता
लाशों का व्यापार सीखकर
मददगार अपना घर भरता
फ्लैश चमकती,सुर्खियाँ बनती
ख़बर चटपटी,स्वादिष्ट हो छनती
मुआवज़े का झुनझुना थमाकर
योजनायें,जाँच-समितियाँ जनतींं
जी-भर मनमानी कर पानी
लौटा अपनी सीमाओं में
संड़ांध,गंदगी,महामारी की
सौगात भर गयी राहों में
हाय! अजीर्णता नदियों की
प्रकृति का निर्मम अट्टहास
मानव पर मानव की क्रूरता
नियति का विचित्र परिहास
--श्वेता सिन्हा
सटीक मर्मस्पर्शी यथार्थ काव्य ।
ReplyDeleteएक की दुर्दशा पर दुसरा रोटी सेक रहा
हा!!कहां गई मानवता
दुर्दांत प्रकृति का ये उपहार
कहीं मौतका तांडव कहीं खजाना भर रहा।
बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteप्रकृति के साथ किये खिलवाड़ हम पर ही भारी पड़ रहे हैं
वाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबसूरती के साथ भावों को व्यक्त किया है आपनेंं ।मानव पर मानव की क्रूरता
ReplyDeleteनियति का विचित्र परिहास ।
बहुत खूब ।
मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 9 अगस्त 2018 को प्रकाशनार्थ 1119 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9.8.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3058 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
राहत शिविर,रिरियाता बेबस
ReplyDeleteदानों को मोहताज़ कलपता
लाशों का व्यापार सीख कर
मददगार अपना घर भरता!!!!!!!
प्रिय श्वेता -- बाढ़ भले ही प्राकृतिक आपदा कही जाती है पर इसके मूल में मूलतः मानव कृत भूले ही हैं | ये गलतियाँ अब आदत बन गयी है |सबसे दुखद है बाद के बाद की स्थिति पर कथित मसीहाओं की अमानवीयता | इसी स्थिति और बाद की भयावहता को आपने बहुत ही सार्थक शब्द दिए जिसे गद्य में आसान पर पद्य में लिखना बहुत ही दुष्कर कार्य है | आपने बखूबी लिखा और बेहतरीन लिखा
जीवनदायिनी नदी बाढ़ में विकराल रुप धारण कर लेती है और हर साल बाढ़ से अपार जन धन की हानि होती है। बाढ़ ना भी आए तो भी निचले इलाकों में रहने वाले गरीबों की झोपड़ियाँ तो हर साल डूबती हैं। आपने इस विनाशकारी दृश्य का सजीव चित्र खींचा है। ऐसे समय में गरीबों की बेबसी का फायदा उठाते और इसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक रोटियाँ सेंकते लोग मानवता को शर्मसार करते हैं। अपनी कविता में आपने बड़े प्रभावशाली शब्दों में इस दृश्य का चित्रण किया है। बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेखन सखी ...बहुत ही ह्रदयस्पर्शी
ReplyDeleteअति उत्तम ...
ReplyDeleteफ्लैश चमकती,सुर्खियाँ बनती
ख़बर चटपटी,स्वादिष्ट हो छनती
मुआवज़े का झुनझुना थमाकर
योजनाएँ,जाँच-समितियाँ जनती
वा...व्व...श्वेता, दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteहाय! अजीर्णता नदियों की
ReplyDeleteप्रकृति का निर्मम अट्टहास
मानव पर मानव की क्रूरता
नियति का विचित्र परिहास.... हम ही अपने पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं | ये मानवीय भूले ही प्रकृति के विकराल रूप का कारण हैं | आपने बहुत सुंदर लिखा श्वेता जी , मार्मिक कविता
नियति का ये परिहार ख़ुद हमारा ही पोषित किया हुआ है ...
ReplyDeleteप्राकृति का जितना नुक़सान हमने हमारी भूख ने किया है उतना तो ख़ुद प्राकृति भी महि करती ...
नदियों का बाड़ में बदलना ... बरखा का दिशाहीन बरसना जंगल काटना ... या सब हमारा ही दिया हुआ है ...
अच्छे शब्दों में आपने वर्णित किया है इस विभीषिका को ...
शानदार रचना श्वेता जी
ReplyDeleteवाह, बहुत ही सुंदर और दिल को छू लेने वाली रचना प्रस्तुत की है आपने। इसके लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/08/82.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती के साथ भावों को व्यक्त किया है आपनेंं
ReplyDeleteबाढ़ के कहर का सटीक चित्रण ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeletei> आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जून 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! </
मर्मस्पर्शी । बाढ़ का वीभत्स रूप ऐसा ही दृश्य प्रस्तुत करता है । लोग इतने स्वार्थी हैं कि राहत के नाम पर भी लूट खसोट करते हैं ।
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