मोह के समुंदर में
डूबता उतराता मन
छटपटाती लहर भाव की
वेग से आती
आहृलादित होकर
किलकती,शोर मचाती
बहा ले जाना चाहती है
अपनी मोहक, फेनिल,
लहरों में खींचकर
हक़ीक़त की रेत का
स्पर्श करते ही लहर
टूटकर बिखर जाती है
चुपचाप लौट जाती है
तट की मर्यादा के मान
के लिए।
★★★
अनन्त तक पसरे
समुंदर की
गहराई नापने की
उत्सुकता में
एक बार छू लिया
मचलते लहरों के सीने को
तब से हूँ लापता
विस्तृत समुंदर के
पाश में आबद्ध
★★★
समुंदर समेटकर
रखता है
अपने आगोश में
समूचा आसमान,
सूरज की तीक्ष्णता
सोखकर
चंदा की शीतलता
ओढ़कर
पीकर अनगिन
नदियों की मिठास
गर्भ के खज़ाने
के दर्प से अनभिज्ञ
नहीं बदलता
अपना स्वभाव
निर्निमेष,निष्काम
निःशब्द
प्रकृति की उकताहट
अपनी लहरों से
उलीचता है अनवरत
★★★★★
-श्वेता सिन्हा
बहुत लाजवाब भाव ...
ReplyDeleteसमुन्दर का गहरा रहस्य इतनी विविधताएँ और इतना कुछ समेटे बैठा है की तिलिस्मी ग्लोब हो जैसे ...
तीनों क्षणिकाओं में अलग अंदाज़ से समुंदर की लहरों और उसकी गहराई को बाँधने का प्रयास किया है ... बहुत खूब ...
बहुत सुंदर क्षणिकाएं श्वेता जी
ReplyDeleteमोह का समंदर...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचनायें
बेहतरीन
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.9.18. को चर्चा मंच पर चर्चा - 3100 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
समुद्र न जाने कितने रहस्य समेटे हुए हैं ... उन्हीं को खोजने गहराई में उतरती सुंदर क्षणिकाएं
ReplyDeleteलाजवाब क्षणिकाएंं समुंदर सी गहराई लिए....
ReplyDeleteसूरज की तीक्ष्णता
सोखकर
चंदा की शीतलता
ओढ़कर
पीकर अनगिन
नदियों की मिठास
गर्भ के खज़ाने
के दर्प से अनभिज्ञ
नहीं बदलता
अपना स्वभाव
वाह!!!
सुन्दर रचना 👌👌👌 लाजवाब भाव 👏👏👏
ReplyDeleteहक़ीक़त की रेत का
ReplyDeleteस्पर्श करते ही लहर
टूटकर बिखर जाती है
चुपचाप लौट जाती है
तट की मर्यादा के मान
के लिए।
अनुपम क्षणिकायें।। बहुत ही उत्कृष्ट एवं परिष्कृत रचनायें। वाह वाह।
खूबसूरती से उकेरी कृति ...बेहतरीन जी
ReplyDelete1 अपनी मर्यादा तोड़ कर कोई किसी के पास पहुँचता है और फिर उसकी मर्यादा का मान रख वापिश खाली हाथ लौट जाता है..ये प्यार का सही मतलब है.
ReplyDelete2 "उस से गले मिल कर ख़ुद को
तन्हा तन्हा लगता हूँ"
जॉन साब का शेर याद आया.
3 "मेरा मुझ में निजत्व है शामिल.." बहुत गहरे भाव.
बहुत ही सुंदर भावों की गहराई समेटे शानदार क्षणिकांऐं ।
ReplyDeleteवाह!भावनाओं के बवंडर को लीलता विचारवान समंदर!
ReplyDeleteवा...व्व...श्वेता,विभिन्न भावों को समेटती बहुत ही सुंदर क्षणिकाएँ।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार लिखा हैं स्वेता जी बधाई हो।
ReplyDeleteहर एक पंक्ति हैं एक गहरा एहसासात हैं।
अनन्त तक पसरे
समुंदर की
गहराई नापने की
उत्सुकता में
एक बार छू लिया
दिल को छू गयी ये लाइन्स।
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमोह के समुन्दर को भावनाओं की लहरों से खूब अभिव्यक्त किया ... बेहद शानदार 👍👌
ReplyDeleteवाह आदरणीया दीदी जी अप्रतीम अद्भुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसागर की गहराई समेटे हुए 👌