Pages

Sunday 30 September 2018

गहरा रंग


उँघती भोर में
चिड़ियों के कलरव के साथ
आँखें मिचमिचाती ,अलसाती
चाय की महक में घुली
किरणों की सोंधी छुअन
पत्तों ,फूलों,दूबों पर पसरे
पनीले इंद्रधनुष,
सुबह की ताज़गी के
सारे रंग समेटकर
हल्दी,नमक,तेल,छौंक,बघार,
में डालकर
अक़्सर नज़र अंदाज़
कर देती है
बहार का रंग,
दौड़ती-भागती,
पिटारों से निकालकर
अलगनी पर डालती
कुछ गीली,सूखी यादों को,
 श्वेत-श्याम रंग की सीली खुशबू
को नथुनों में भरकर
 कतरती,गूँथती,पीसती,
अपने स्वप्नों के सुनहरे रंग,
पतझड़ को बुहारकर
देहरी के बाहर रख देती
हवाओं की सरसराहट
मेघों की आवारगी,
खगों,तितलियों,
भँवरों का गीत
टेसु के फूल,
हरसिंगार की लालिमा,
केसरिया गेंदा,सुर्ख़ गुलाब
महकती जूही
चाँदनी की स्निग्धता,
गुनगुनी धूप की मदमाहट,
बसंत की सुगबुगाहट,
रिमझिम बूँदों सी बरसती
रंगों को मिलाकर
एक चुटकी सिंदूर के रंग में
 सजाती है
अपने माथे पर,
अपने तन-मन पर
 खिले सारे रंगों को निचोड़कर
 समर्पण की तुलिका को
 डुबो-डुबोकर भाव भरे पलों में
 पुरुष की कामनाओं के कैनवास पर
 उकेरती है अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति
हल्के रंगों से रंगकर
अपने व्यक्तित्व
 उभारकर चटख रंगों को
 रचती है
 पुरुषत्व का गहरा रंग।

 -श्वेता सिन्हा


23 comments:

  1. वाह इतने ढेर सारे रंग ज़िंदगी के आपने पिरो दिए हैं इस ख़ूबसूरत रचना में ...

    ReplyDelete
  2. यह रंग नही समर्पित स्त्री जीवन की रंगशाला हैं, जो समस्त गुलिस्ता के, सारे ब्रह्माण्ड के रंग भर देती है एक ही सिंदूरी रंग में समर्पण के रंग मिला कर।
    बहुत सुंदर रचना रंगो की गहरी छाप छोडती।

    ReplyDelete
  3. श्वेता जी,
    ये दोहरा फलसफ़ा है..
    एक लिखने की कला और दूसरा जीवन दर्शन को लेखनी देना.
    एक स्त्री की सुबह की अंगड़ाई से लेकर रसोई के काम, सफाई और फिर सृंगार तक.. त्याग या समर्पण जो कहो..
    खुद का दमन और दूसरों में अपने आप को समझ कर उनको संवारना...और फिर भी अहसान न जताना व जिन्दगी को सकारात्म तरीके से लेना...
    हे स्त्री तुम महान हो..लेकिन ये आदत अपने आप बनी है या बना दी गयी है ??
    आपकी लेखनी को शत शत नमन.

    ReplyDelete
  4. हल्के रंगों से रंगकर
    अपने व्यक्तित्व
    उभारकर चटख रंगों को
    रचती है
    पुरुषत्व का गहरा रंग।

    समाज में ,परिवार में या फिर व्यवहार में ऐसा स्त्री ही क्यों करती हैं, पुरुष क्यों नहीं...
    यह नारी की विवशता भरा त्याग है या उसकी अंतरात्मा की आवाज है..? नारी के इस साहित्य और प्रेम का उसके अपनों में कितना सम्मान है।
    ऐसे कुछ प्रश्न सदैव मुझे उलझाते रहते हैं। जिसका घर में अंधेरे, पर बाहर प्रकाश है।
    श्वेता जी बहुत ही अर्थपूर्ण सुंदर रचना है, पर एक स्त्री का दर्द छिपा है, इस मुस्कान के पीछे...

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन रचना सखी 👌

    ReplyDelete
  6. उँघती भोर में
    चिड़ियों के कलरव के साथ
    आँखें मिचमिचाती ,अलसाती
    चाय की महक में घुली
    किरणों की सोंधी छुअन
    पत्तों ,फूलों,दूबों पर पसरे
    पनीले इंद्रधनुष,
    सुबह की ताज़गी के
    सारे रंग समेटकर
    हल्दी,नमक,तेल,छौंक,बघार,
    में डालकर
    अक़्सर नज़र अंदाज़
    कर देती है
    बहार का रंग,
    बेहतरीन.....

    ReplyDelete
  7. हल्दी,नमक,तेल,छौंक,बघार,
    में डालकर
    अक़्सर नज़र अंदाज़
    कर देती है
    बहार का रंग,
    दौड़ती-भागती,
    पिटारों से निकालकर
    अलगनी पर डालती

    वाह
    महान हैं वो नारी महान हैं वो रचनाकार जो उस रंग उस भाव को साक्षात व्यक्त करदे।
    सुभद्रा कुमारी चौहान जी की याद आ गयी। खूब लड़ी मर्दानी के इतर भी उनकी कई खूबसूरत रचनाये नारी जीवन के दर्शन को व्यक्त हैं।
    बहुत बहुत बधाई एवं आभार

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुन्दर रचना प्रणाम आपकी लेखनी को श्वेता जी

    ReplyDelete
  9. अपने तन-मन पर
    खिले सारे रंगों को निचोड़कर
    समर्पण की तुलिका को
    डुबो-डुबोकर भाव भरे पलों में
    पुरुष की कामनाओं के कैनवास पर
    उकेरती है अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति..

    Wahhhhhh। क्या ख़ूब। ऐसा महज़ आप ही लिख सकतीं हैं। यह शैली ख़ास श्वेता सिन्हा ब्रांड की शैली है। अनुपम

    ReplyDelete
  10. वाह!ऊंघती भोर में कैनवास का गहरा रंग!सुंदर भाव!

    ReplyDelete
  11. गाँधी जी और शास्त्री जी को नमन।
    उनकी सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम उनके आदर्शों और विचारों को अपने जीवन में आत्मसात कर।
    रचनाये बहुत अच्छी हैं।पढ़कर आनंद आया
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  12. एक कविता में नारी-जीवन का पूरा संघर्ष, उसकी आकांक्षाएं, उसकी कुंठाएं ! श्वेता जी किसी और के कहने के लिए कुछ तो छोड़ा होता. बहुत सुन्दर और पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह चांदनी बिखेरती कविता !

    ReplyDelete
  13. उँघती भोर में,चाय की महक में घुली
    किरणों की सोंधी छुअन,पनीले इंद्रधनुष,श्वेत-श्याम रंग की सीली खुशबू,आदि... आदि...आदि आपकी लेखनी और शब्दों का जादू....वाह!!!सभी को लिखूं तो पूरी रचना ही लिख डालूँगी...
    रचना का भाव समझें या इस तिलिस्म में खो जायें।
    क्या कमाल लिखती हैं श्वेता जी आप.....
    माँ सरस्वती की कृपा आप पर यूँ ही बनी रहे...बधाई एवं शुभकामनाएं आपको...

    ReplyDelete
  14. सुंंदर काल्पनिक शब्द शिल्प से परिपूर्ण रचना..

    ReplyDelete
  15. नारी करती है ... न सिर्फ प्राकृति बल्कि अपने भी सभी रंगों को समेट कर निर्माण करती है ऐसे रंग जिससे निखरता है पुरुषत्व ... स्वयं से निर्माण करती है पुरुष कृति का ...
    गज़ब की कल्पना, भाव और उतने ही सुन्दर शब्द के साथ इस रचना का निर्माण हुआ है ...

    ReplyDelete
  16. बेहतरीन रंगों की क्यारी सा सृजन

    ReplyDelete
  17. वाह बहुत ही बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  18. सारे रंग समेट कर एक नया इन्द्रधनुष रचाया है आपने बहुत ही सुन्दर कृति

    ReplyDelete
  19. क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

    ReplyDelete
  20. बहुत सुंदर शब्द रंगों से रंगी कविता

    ReplyDelete
  21. प्रकृति का जीवन से जुड़ाव स्वभाविकता को प्रस्फुटित करते हुए एहसासात के ख़ूबसूरत रंग भरता है और जीवन को रसमय बनाता है.
    सुन्दर रचना.

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।