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Wednesday, 23 January 2019

याद का दोना

क्षितिज का 
सिंदूरी आँचल 
मुख पर फैलाये 
सूरज
सागर की 
इतराती लहरों पर
बूँद-बूँद टपकने लगा।

सागर पर 
पाँव छपछपता 
लहरों की 
एडि़यों में 
फेनिल झाँझरों से
सजाता
रक्तिम किरणों की 
महावर।

स्याह होते 
रेत के किनारों पर
ताड़ की 
फुनगी पर 
ठोढ़ी टिकाये
चाँद सो गया 
चुपचाप बिन बोले
चाँदनी के 
दूधिया छत्र खोले।

मौन प्रकृति का 
रुप सलोना
मुखरित मन का 
कोना-कोना
खुल गये पंख 
कल्पनाओं के
छप से छलका 
याद का दोना।

भरे नयनों के 
रिक्त कटोरे
यादों के 
स्नेहिल स्पर्शों से
धूल-धूसरित, 
उपेक्षित-सा
पड़ा रहा 
तह में बर्षों से।

 -श्वेता सिन्हा

14 comments:

  1. अद्भुत छता बिंबो की! सुंदर!!!

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  2. वाह !! बेहतरीन सृजनात्मकता श्वेता जी !

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  3. Waah waah, this is what we call the composition writing, each word is arranged like pearl.
    Great.. Keep writing.

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  4. बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया
    सादर

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  5. सुंदर बिम्ब विधान के साथ सुकोमल रचना प्रिय श्वेता | हार्दिक शुभकामनाएं और मेरा प्यार |

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  6. उद्दीपन बिम्ब या प्रतिबिम्ब है मुझे नहीं पता.
    लेकिन साहित्य के रसपान का स्वाद अव्व्ला है.
    'याद का दोना' क्या खूब लगाया है आपने...वाह

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  7. वाह आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर
    मनभावन रचना
    सादर नमन शुभ रात्रि

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  8. लाजवाब सृजन....
    वाह!!!

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  9. "...
    ताड़ की
    फुनगी पर
    ठोढ़ी टिकाये
    चाँद सो गया
    चुपचाप बिन बोले
    चाँदनी के
    दूधिया छत्र खोले।
    ..."

    कल्पनाशक्ति लाजवाब है।

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  10. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  11. वाह अद्भुत दृश्यांकन बहुत ही सुन्दर बिंबात्मक
    भावपूर्ण रचना

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  12. सुन्दर प्रस्तुति।

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  13. बहुत खूबसूरत रचना

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।