नवतिथि का स्वागत सहर्ष
नव आस ले आया है वर्ष
सबक लेकर विगत से फिर
पग की हर बाधा से लड़कर
जीवन में सुख संचार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो
प्रकृति का नियम परिवर्तन
काल-चक्र जीवन विवर्तन
अवश्यसंभावी उत्थान पतन
समय सरिता में भीगकर
सूखे स्वप्नों में हो प्रस्फुटन
धैर्य के मोती पिरो के दर्द में
जीवन का तुम श्रृंगार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो
हृदय अपमान भूल,मान नहीं
चबा जा बीज दंश, आन नहीं
बिकता बेमोल भूख,धान नहीं
कुछ नहीं चाहूँ मन मेरे संत हो
आगत दिवस सारे दुखों का अंत हो
अलक्षित क्षण यह आस कर
पल-पल यहाँ त्योहार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो
समय के खेल में मानव विवश है
कुछ नहीं मेरा यहाँ क्यों हवस है?
नियति पर जोर किसका वश है?
जो किया संचित वो साथी कर्म है
उलझी पहेली कौन समझा मर्म है
माया जगत के तुम अतिथि
इस सत्य को स्वीकार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो
-श्वेता सिन्हा
श्वेता जी बेहतरीन सृजन...,
ReplyDeleteमाया जगत के तुम अतिथि
हो सके इस सत्य को स्वीकार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो....बहुत सुन्दर भाव ।
सादर आभार मीन जी..बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
ReplyDeleteआभारी हूँ संजय जी...बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteहर क्षण से खुलकर प्यार कर लो..
ReplyDeleteबहुत खूब... महोदया।
आभारी हूँ रवींद्र जी...बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteसुंदर भावों से सजी सुंदर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई श्वेता जी।
ReplyDeleteबेहद आभारी हूँ दीपा जी बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत खूब भावों से सृजित रचना
ReplyDeleteआभारी हुँ ऋतु जी...बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteलगता है 'हर क्षण' आप एक नई रचना का सृजन करतीं हैं। आप वाकई सृजनकर्त्ता हो। नव वर्ष का स्वागत बेहतर ढंग से किया आपने। शुभकामना।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ भाई आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया मनोबल में वृद्धि कर जाती है।
Deleteबहुत शुक्रिया।
बेहद खूब श्वेता जी।
ReplyDeleteनव वर्ष ही क्यों इतना सुखमयी हो...ये तो जनवरी दो को पुराना हो जाना है फिर 2020 को नया कहेंगे.. ये दूर की बात हो गयी।
हर क्षण सुखमयी हो आनेवाला।
समय की सरिता में क्षण ही तो डुबकी लगाता है
संगठित होकर साल बनाता है।
रचना का सार समझने के लिए बेहद शुक्रिया आपका रोहित जी...बहुत दिनों के पश्चात आपकी प्रतिक्रिया पाकर अति प्रसन्नता हो रही...बहुत आभार रोहित जी।
Deleteप्रकृति का नियम परिवर्तन
ReplyDeleteकाल-चक्र जीवन विवर्तन
अवश्यसंभावी उत्थान पतन
समय सरिता में भीगकर
सूखे स्वप्नों में हो प्रस्फुटन
धैर्य के मोती पिरो के दर्द में
जीवन का तुम श्रृंगार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो.
वाह क्या रचनात्मकता हैं,आपकी लेखनी और शब्दों का चयन दोनों लाज़वाब हैं.दोनों को नमन
बेहद आभारी हूँ डॉ. साहब..बहुत शुक्रिया आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए।
DeleteWow what a creativity, your writing and selection of words are both good. Its like golden ring with diamond stone. Waah waah.......
ReplyDeleteThanku so much chandra...thanks for all Ur prisious words and support.
Deleteमाया जगत के तुम अतिथि
ReplyDeleteइस सत्य को स्वीकार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो,
बहुत ही सुंदर रचना,श्वेता।
बहुत आभारी हूँ आदरणीया ज्योति जी...बेहद शुक्रिया आपका।
DeleteBahut sundar
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ नीतू बेहद शुक्रिया।
Deleteसुंदर रचना। नववर्ष की शुभकामनाएं��
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ अंकुर जी..बेहद शुक्रिया आपका।आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभेच्छाएँ।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/01/103.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदयतल से बेहद आभारी हूँ राकेश जी...शुक्रिया आपका।
Deleteखुल कर प्रेम ही क्यों जो करना है कर लेने चाहिए ...
ReplyDeleteसमय पर किसी का बस नहीं है ... आज है जो कल नहीं है ...
नव तिथि, नव आशा का स्वागत जरूरी है ...
एक लाजवाब आशा का संचार करती हुयी सुन्दर रचना ...
बेहद सुंदर प्रतिक्रिया नासव जी..सारगर्भित।
Deleteआभारी हूँ हृदयतल हे बहुत शुक्रिया आपका।
नियति पर जोर किसका वश है?
ReplyDeleteजो किया संचित वो साथी कर्म है......
बहुत खूब श्वेता जी
बहुत आभारी हूँ कामिनी जी...बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteमाया जगत के तुम अतिथि
ReplyDeleteइस सत्य को स्वीकार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो!!!!
प्रिय श्वेता क्या बात लिखी आपने ! अगर यही बात हर कोई समझ जाए तो जीवन कितना सरल हो जाए | मेरा प्यार इस सुंदर जीवन दर्शन के लिए |