Pages

Saturday, 26 January 2019

एक त्योहार

(१)
सत्तर वर्षों से
ठिठुरता गणतंत्र
पदचापों की
गरमाहट से
जागकर
कोहरे में लिपटा
राजपथ
पर कुनमुनाता है।

गवाह 
प्राचीर लालकिला
देश की सुख-समृद्धि
वैभवपूर्ण,संपूर्ण
शौर्य गाथा
अतिथियों की 
करतल ध्वनियों पर
गर्व से लहराता तिरंगा 
राजा दर्प से
और इतराता है।

झाँकियाँ रंगबिरंगी
प्रदेशों और विभागों की
सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
 गिनवाती
नाचते-गाते 
आदमकद पुतले,
कठपुतली सरीखे 
पात्रों के साथ
मिलकर रचाते है
मनोरंजक नाटक
समझदार दर्शक 
समय समाप्ति की
प्रतीक्षा में अधीर
कृत्रिम मुसकान 
चिपकाये अलसाता है।
हमारा समृद्ध,गौरवशाली
पारंपरिक गणतंत्र
ऐसे ही मनाया जाता है।

(२)
सोच रही हू्ँ
एक दिवस और;
उत्साह और उमंग से
परिपूर्ण
राजपथ पर
सजना चाहिये
जनतंत्र दिवस के नाम
झूठी,शान बघारती,
उपलब्धियाँ
महज आँकड़े 
गिनवाने की भीड़ 
की नहीं
प्रादेशिक,आँचलिक
सामाजिक कुरीतियों,
कमियों की, 
जन हितों की 
अनदेखी की
सच्ची झाँकियाँ, 
आत्ममंथन,
कार्यावलोकन को
प्रेरित करती,
कराहते पीड़ित,वंचितों 
के लिए खुशियाँ मनाने का
कोई एक दिन तो हो
महज 
आशाओं के पंख
पर सवार
दिवास्वप्न मात्र नहीं
औपचारिकता,कृत्रिमता
से परे
जन के मन का
राष्ट्र का सत्य से 
साक्षात्कार का दिवस
एक त्योहार
ऐसा भी होना ही चाहिए।

#श्वेता सिन्हा

12 comments:

  1. वाहः बहुत उम्दा

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब स्वेता जी ,गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना ,ये हमारा सबसे पवन त्यौहार है ,सादर स्नेह

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय श्वेता जी, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना आप को
    सादर

    ReplyDelete
  4. जमीनी सच से साक्षात्कार.

    ReplyDelete
  5. आत्मचिंतन का अध्याय राजनीति की पाठशाला में कब का बंद हो गया है, क्यों कि उसके अच्छे दिन आ गये हैं। झूठ के पंख जो और बड़े हो गये हैं।
    कुछ अलग हट कर लिखी आपकी इस रचना को व्याकुल पथिक का प्रणाम, श्वेता जी।

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब स्वेता जी
    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    https://kavivirajverma.blogspot.com/

    ReplyDelete
  7. ठिठुरता गणतंत्र
    पदचापों की
    गरमाहट से
    जागकर
    कोहरे में लिपटा
    राजपथ
    पर कुनमुनाता है।


    वाह क्या बात हैं।
    गहरी अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  8. बिल्कुल ठीक कहा आपने आदरणीया दीदी जी
    जन मन का एक त्योहार होना चाहिए जहाँ.... साक्षात्कार का एक दिन होना चाहिए जिससे हम अपने देश को उन्नति के और करीब ले जाए अपनी खामियों से वाक़िफ़ हो कर उसमें सुधार कर सकें
    बहुत उम्दा सोच है आपकी
    सर्वोत्कृष्ट रचना
    आपकी कलम को कोटिशः नमन शुभ रात्रि दीदी जी

    ReplyDelete
  9. Waah waah. Your patriotic composition is also speechless and beautiful like other compositions. Each words is filled with patriotism. Great and Salute.

    ReplyDelete
  10. जागकर
    कोहरे में लिपटा
    राजपथ
    पर कुनमुनाता है।

    वाह क्या बात हैं।
    शहर से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ..

    ReplyDelete
  11. Very nice बहुत खूब स्वेता जी

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।