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Saturday, 22 June 2019

बरखा

लह-लह,लह लहकी धरती
उसिनी पछुआ सहमी धरती
सही गयी न नभ से पीड़ा
भर आयी बदरी की अँखियाँ
लड़ियाँ बूँदों की फिसल गयी
टप-टप टिप-टिप बरस गयी  

अंबर की भूरी पलकों में
बदरी लहराते अलकों में
ढोल-नगाड़े सप्तक नाद
चटकीली मुस्कान सरीखी
चपला चंचल चमक गयी
बिखर के छ्न से बरस गयी

थिरके पात शाख पर किलके
मेघ मल्हार झूमे खिलके
पवन झकोरे उड़-उड़ लिपटे
कली पुष्प संग-संग मुस्काये
बूँदें कपोल पर ठिठक गयी 
जलते तन पर फिर बरस गयी

कण-कण महकी सोंधी खुशबू
ऋतु अंगड़ाई मन को भायी
अवनि अधर को चूम-चूम के
लिपट माटी की प्यास बुझायी
गंध नशीली महक गयी
मदिर रसधारा बरस गयी 

व्यथित सरित के आँगन में
बूँदों की गूँजी किलकारी
सरवर तट झूमा इतराया 
ले संजीवनी बरखा आयी
तट की साँसें बहक गयी
नेह भरी बदरी बरस गयी 

क्यारी-क्यारी रंग भरने को
जीवन अमृत जल धरने को
अवनि अन्नपूर्णा करने को
खुशी बूँद में बाँध के लायी
कोख धरा की ठहर गयी
अंबर से खुशियाँ बरस गयी

#श्वेता सिन्हा




25 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 23, 2019 को साझा की गई है पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभारी हूँ दी आपका अनुपम आशीष बना रहे।

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  2. अनुपम कृति ¡ मनोहर सुंदर काव्य सृजन। शब्दों का अभिनव प्रयोग बहुत प्यारी सरस रचना।

    वरखा ने सच लगता दिल के तार छेड़ दिए
    लेखनी ने पन्ने पर देखो नव रंग बिखेर दिए।

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  3. वाह,अनुपम रचना

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23 -06-2019) को "आप अच्छे हो" (चर्चा अंक- 3375) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  5. अनुपम ये तो सचमुच बरखा का आगमन हो गया!!!!

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  6. भारत को विविधताओं से भरा देश इसीलिए कहते हैं कि कहीं झमाझम बारिश तो कहीं बूँद-बूँद को तरसते लोग.
    जहाँ बरसात की प्रतीक्षा वहाँ इस कविता के ज़रिए रसमर्मज्ञ पावस ऋतु का पावन आनन्द उठाएँगे
    सुन्दर भावों को कलात्मकता की ओढ़नी में लपेटा गया है.

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  7. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २४५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...

    रहा गर्दिशों में हरदम: २४५० वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. अंबर की भूरी पलकों में
    बदरी लहराते अलकों में
    ढोल-नगाड़े सप्तक नाद
    चटकीली मुस्कान सरीखी
    चपला चंचल चमक गयी
    बिखर के छ्न से बरस गयी...
    सुना था मानसून थोड़ा लेट है... मगर कहाँ... श्वेता की रचना में तो झूम के आया है और वह भी पूरी खूबसूरती के साथ :-)

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  9. शब्दों में बारिश की रिमझिम सुनाई दे रही है।

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  10. बहुत सुंदर और मनभावन रचना ,श्वेता जी

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  11. अद्भुत रचना 👌👌

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  12. वाह प्रकृति और बरखा का सुन्दर चित्रण

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  13. बदरी के साथ साथ भाव भी बरस गये

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  14. सुन्दर भावपूर्ण रचना ... बद्री के आने के साथ बूंदों का एहसास दिल को आनंदित कर देता है और फिर बूँदें तो सोंधी खुशबू ले आती हैं ...

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  15. अहा, बहुत सुंदर मनोहारी रचना 👌

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  16. कण-कण महकी सोंधी खुशबू
    ऋतु अंगड़ाई मन को भायी
    अवनि अधर को चूम-चूम के
    लिपट माटी की प्यास बुझायी
    गंध नशीली महक गयी
    मदिर रसधारा बरस गयी
    वाह!!!
    बहुत ही खूबसूरती से बरसी भावों की बदरी अब आसमान की बदरी भी बरस जाय....
    बहुत ही लाजवाब सृजन ।

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  17. बहुत सुन्दर रचना

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  18. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  19. क्यारी-क्यारी रंग भरने को
    जीवन अमृत जल धरने को
    अवनि अन्नपूर्णा करने को
    खुशी बूँद में बाँध के लायी
    कोख धरा की ठहर गयी
    अंबर से खुशियाँ बरस गयी ।

    कितना मनोहारी दृश्य उपस्थित किया और अंत में बरखा से होने वाले परिवर्तन को भी बखूबी लिखा है । बहुत सुंदर सृजन ।

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  20. बहुत सुन्दर मनहर सृजन

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।