Pages

Friday 3 May 2019

तुम


चुप रहूँ तो शायद दिल तेरा ख़ुशलिबास हो 
दुआ हर लम्हा,खुश रहे तू न कभी उदास हो

तुम बिन जू-ए-बेकरार,हर सिम्त तलब तेरी
करार आता नहीं,कैसी अनबुझी मेरी प्यास हो

आजा के ओढ़ लूँ ,तुझको चाँदनी की तरह 
चाहती हूँ रुह मेरी तुमसे,रु-ब-रु बेलिबास हो

होगी तुम्हें शिकायत लाख़ मेरे महबूब सनम
दश्त-ए-ज़िंदगी में,तुम ही तो सब्ज़ घास हो


पिरोया है तुझे मोतियों-सा साँसों के तार में
ख़्वाहिश है वक़्त-ए-आख़िर तुम मेरे पास हो

#श्वेता सिन्हा

ख़ुशलिबास-सुंदर परिधान
जू-ए-बेकरार-बैचेन नदी
सब्ज़ - हरा-भरा
दश्त-ए-ज़िंदगी- ज़िंदगी के रेगिस्तान में

Wednesday 1 May 2019

मज़दूर



मज़दूर का नाम आते ही
एक छवि ज़ेहन में बनती है
दो बलिष्ठ भुजाएँ दो मज़बूत पाँव
 बिना चेहरे का एक धड़,
और एक पारंपरिक सोच,
बहुत मज़बूत होता है एक मज़दूर
कुछ भी असंभव नहीं
शारीरिक श्रम का कोई
भी काम सहज कर सकता है
यही सोचते हम सब,
हाड़ तोड़ मेहनत की मज़दूरी
के लिये मालिकों की जी-हुज़ूरी करते
पूरे दिन ख़ून-पसीना बहाकर
चंद रुपयों की तनख़्वाह
अपर्याप्त दिहाड़ी से संतुष्ट
जिससे साँसें खींचनेभर 
गुज़ारा होता है
उदास पत्नी,बिलखते बच्चे
बूढ़े माता-पिता का बोझ ढोते
जीने को मजबूर
एक ज़मीन को बहुमंजिला 
इमारतों में तब्दील करता
अनगिनत लोगों के ख़्वाबों 
की छत बनाता
मज़दूर,जिसके सर पर
मौसम की मार से बचने को
टूटा छप्पर होता है
गली-मुहल्ले,शहरों को
क्लीन सिटी बनाते
गटर साफ़ करते,कड़कती धूप में
सड़कों पर चारकोल उड़ेलते,
कल-कारखानों में हड्डियाँ गलाते  
सँकरी पाताल खदानों में
जान हथेली पर लिये 
अनवरत काम करते मज़दूर
अपने जीवन के कैनवास पर
छैनी-हथौड़ी,कुदाल,जेनी,तसला 
से कठोर रंग भरते,
सुबह से साँझ तक झुलसाते हैं,
स्वयं को कठोर परिश्रम की
आग में,ताकि पककर मिल सके
दो सूखी रोटियों की दिहाड़ी
का असीम सुख।


 #श्वेता सिन्हा


Sunday 28 April 2019

तुझमें ही...मन#१

बरबस ही सोचने लगी हूँ
उम्र की गिनती भूलकर
मन की सूखती टहनियों पर
नरम कोंपल का अँखुआना

ख़्यालों के अटूट सिलसिले
तुम्हारे आते ही सुगबुगाते,
धुकधुकाते अस्थिर मन का
यूँ ही बात-बेबात पर मुस्कुराना

तुम्हारे एहसास की गंध से मताये
बेज़ान,पंखहीन,स्पंदनहीन पड़़े
बंद मन की झिर्रियों से छटपटाती,
बेसुध तितलियों का मचलना

तुम्हारी हर बात को समेटकर
सीने से लिपटाये हुये घंटों तक
झरोखे,छत,घर के कमरों में फैला
अपने लिये तुम्हारे एहसास चुनना

देर तक तुम्हारे मौन होने पर
बेचैन हो मन ही मन पगलाना
उदास आँखों के सूनेपन में पसरी
तुम्हारी तस्वीरों के रंगों को भरना

सोचती हूँ क्यों एहसास मन के
यूँ मन को भावों से ढके रहते हैं?
बदलते मौसम से बेअसर,बेख़बर
मेरा सिर्फ़ तुझमें ही खोये रहना

#श्वेता सिन्हा