Pages

Monday, 13 January 2020

कैसे जीवन जीना हो?


नैनों में भर खारे मोती 
विष के प्याले पीना हो,
आशाओं के दीप बुझा के
कैसे जीवन जीना हो..?

मन के चाहों को छू-छूकर
चिता लहकती धू-धूकर
भावों की राख में लिपटा मन
कैसे चंदन-सा भीना हो?

आशाओं के दीप बुझा के
कैसे जीवन जीना हो..?

भोर सिसकती धुंध भरी
दिन की आरी भी कुंद पड़ी
गीली सँझा के आँगन में
कैसे रातें पशमीना हो?

आशाओं के दीप बुझा के
कैसे जीवन जीना हो...?

जर्जर देह के आवरण के
शिथिल हिया के आचरण के
अवशेष बचे हैं झँझरी कुछ
कैसे अंतर्मन सीना हो...?

आशाओं के दीप बुझा के
कैसे जीवन जीना हो...?

#श्वेता सिन्हा

14 comments:

  1. Replies
    1. जी आभारी हुँ सर।
      सादर शुक्रिया।

      Delete
  2. जी आभारी हूँ दी आपका स्नेह बना रहे।
    सादर शुक्रिया।

    ReplyDelete
  3. नैनों में भर खारे मोती
    विष के प्याले पीना हो,
    आशाओं के दीप बुझा के
    कैसे जीवन जीना हो..?
    बहुत खूब रचना प्रिय श्वेता. बहुत दिन बाद सरस, मधुर काव्य ,जो तुम्हारी विशेष पहचान है , पढ़कर अच्छा लगा । लोहड़ी और संक्रांति पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें तुम्हारे लिए। 🌹🌹🌹🌹

    ReplyDelete
  4. ऐसे ही जीने की आदत, तुझे डालनी ही, अब होगी,
    अरमानों की चिता जलाकर, उमर यूँ ही, ढालनी ही होगी.
    शिक़वे-गिले सब, ताक पे रख दे, लब सीने का हुनर सीख ले,
    या फिर दिल में छुपा, बग़ावत, तुझे पालनी ही अब होगी.


    ReplyDelete
  5. भोर सिसकती धुंध भरी
    दिन की आरी भी कुंद पड़ी
    गीली सँझा के आँगन में
    कैसे रातें पशमीना हो?
    बहुत ही बेहतरीन कविता।एक एक शब्दों को जोड़ कर पूरी बात लिखी गई है।

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन सृजन स्वेता।सस्नेह

    ReplyDelete
  7. श्वेता दी यहीं जीवन हैं। कुछ खट्टा और कुछ मीठा। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  8. वाह!श्वेता , सुंदर भावाभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  9. जर्जर देह के आवरण के
    शिथिल हिया के आचरण के
    अवशेष बचे हैं झँझरी कुछ
    कैसे अंतर्मन सीना हो...

    बहुत खूब......

    ReplyDelete
  10. आशाओं के दीप बुझा के
    कैसे जीवन जीना हो...?
    बेहद सुन्दर, अप्रतिम सृजन....

    मन के चाहों को छू-छूकर
    चिता लहकती धू-धूकर
    भावों की राख में लिपटा मन
    कैसे चंदन-सा भीना हो?
    वाह!!!!
    अद्भुत शब्दविन्यास... बहुत ही उत्कृष्ट

    ReplyDelete
  11. जर्जर देह के आवरण के
    शिथिल हिया के आचरण के
    अवशेष बचे हैं झँझरी कुछ
    कैसे अंतर्मन सीना हो...?
    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ लिखी हैं आपने आदरणीया श्वेता जी। जीवन जीने का नजरिया ही तो हमें खास बनाता है और यदि भूल सुधार हेतु मन पश्चाताप या प्रयास करे तो जीवन और भी आसान हो सकती है। शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  12. सकारात्मक जीवन जीने की प्रेरणा देती रचना।
    बेहतरीन और कमाल की रचना है।
    कितने ही दर्द आएं
    कितनी ही मुश्किलें आएं पर हमें कभी आशा नहीं खोनी चाहिए।

    प्रस्तुत करने का लहजा लाज़वाब रहता है आपका।

    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र 

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।